दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार (6 नवंबर 2023) को अपने एक फैसले में कहा है कि किसी नाबालिग पीड़िता के प्राइवेट पार्ट को कपड़ों के ऊपर से छूना पॉक्सो एक्ट के तहत पेनिट्रेटिव यौन अपराध नहीं माना जा सकता है। यह मामला 6 साल की एक बच्ची से जुड़ा हुआ है, जिसका यौन शोषण उसके ट्यूशन टीचर के भाई ने 5 अगस्त 2016 को किया था। इस अपराधी को निचली अदालत ने 10 साल जेल और जुर्माने की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट के फैसले में अब दोषी को 5 साल की सजा सुनाई गई है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह मामला दिल्ली के तीस हजारी न्यायिक क्षेत्र का है। 5 अगस्त 2016 को 6 साल की एक बच्ची अपनी महिला ट्यूशन टीचर के घर पढ़ने गई थी। इस दौरान टीचर का भाई बच्ची को अकेला पाकर उसके साथ छेड़खानी करता है। 3 दिनों बाद 8 अगस्त को इस मामले की शिकायत पुलिस में दी जाती है। पुलिस को दिए गए बयान (CrPC 161) में बच्ची ने बताया कि आरोपित ने उसके प्राइवेट पार्ट (गुदा) पर हाथ लगाया। इसकी वजह से पीड़िता ने खुद को दर्द होने की बात कही। इस आधार पर बच्ची का मेडिकल टेस्ट करवाया गया।
लाहौरी गेट थाना पुलिस ने इस मामले में 9 अगस्त को IPC की धारा 376 व पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 6 के तहत FIR दर्ज करके उसी दिन आरोपित को गिरफ्तार कर लिया। 9 अगस्त को अदालत में पीड़िता ने अपना बयान (CrPC 164) दर्ज करवाया। इस बयान में 6 साल की पीड़ित बच्ची ने बताया कि आरोपित ने उसके प्राइवेट पार्ट (गुदा) में उंगली डाली थी। इसके चलते आरोपित के नाखूनों से पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में घाव हो गया था। साथ ही विरोध करने पर गला दबाया और किसी को बताने पर जान से मार डालने की भी धमकी दी थी।
तीस हजारी कोर्ट में यह मामला ट्रायल पर चला और आरोपित को 10 साल की जेल के साथ 5 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई गई। इसी सजा को आरोपित पक्ष ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका लगा कर चुनौती दी थी। इसी याचिका पर जस्टिस अमित बंसल ने सुनवाई की।
दिल्ली हाईकोर्ट में बचाव पक्ष ने निचली अदालत के फैसले को त्रुटिपूर्ण बताया। आरोपित के वकीलों ने बताया कि निचली अदालत ने पीड़िता के CrPC 161 और CrPC 164 के बयानों में आए विरोधाभास पर ध्यान नहीं दिया। साथ ही मेडिकल रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया, जिसमें बच्ची के मेडिकल परीक्षण में किसी घाव के निशान नहीं पाए गए थे।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने बताया कि आरोपित के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 6 के तहत अपराध नहीं बनता है। इसी केस की सुनवाई के दौरान ‘सिम्पल टच’ को अदालत ने पॉक्सो एक्ट की धारा 3 (C) के तहत अपराध नहीं माना। जस्टिस बंसल के मुताबिक अभियोजन पक्ष इस बात के सबूत नहीं पेश कर पाया कि पीड़िता को किसी प्रकार की चोट लगी या घाव हुआ था। हालाँकि हाईकोर्ट ने आरोपित को पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 10 के तहत दोषी मानते हुए 10 साल की सजा को 5 साल कर दिया।