कहा जाता है कि भारत की राजधानी दिल्ली ही वह जगह है, जहाँ महाभारत कालीन इंद्रप्रस्थ स्थित था। इसके साक्ष्य जुटाने के लिए समय-समय पर प्रयास होते रहे हैं। अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इंद्रप्रस्थ को खोज निकालने के लिए अंतिम प्रयास के तहत खुदाई का काम शुरू करने जा रहा है। यह खुदाई दिल्ली के पुराना किला में किया जाएगा। इसे पांडवों का किला माना जाता है।
बताते चलें कि पुराना किला की इससे पहले भी खुदाई हो चुकी है। 15 अगस्त 1947 में देश की आजादी के बाद से इस किले की पाँच बार खुदाई हो चुकी है। यह छठी बार खुदाई होगी। पिछली खुदाई में यहाँ से भगवान विष्णु, गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियों के साथ-साथ मौर्यकाल से लेकर विभिन्न कालों के अवशेष मिल चुके हैं। यहाँ मिले अवशेष लगभग 2500 वर्ष तक पुराने हैं।
दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, अंतिम प्रयास के तहत इस किले की खुदाई अगले महीने से शुरू हो सकती है। भारत सरकार के सुझाव के बाद इस बार खुदाई में अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किए जाने की उम्मीद है। नवीनतम तकनीक के तहत उत्खनन से पहले ASI लिडार सर्वेक्षण की योजना बना रहा है। इसके माध्यम से जमीन के अंदर दबे अवशेषों के बारे में पता लगाया जाता है।
इसकी जिम्मेदारी ASI के वरिष्ठ अधिकारी वसंत स्वर्णकार के हाथ में दी गई है। वे पुराना किला की तीन बार खुदाई करा चुके हैं। पहले हाे चुकी खोदाई में काफी कुछ मिला है। हालाँकि, इससे पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ पुराना किला में थी, इसकी स्पष्ट सबूत नहीं मिले हैं। शास्त्रों के तहत दी जानकारी के बारे में पुराना किला ही वह स्थान है, जहाँ पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ होने की बात प्रतीत होती है।
कहा जाता है कि पांडवों ने ईसा पूर्व 1400 वर्ष सबसे पहले दिल्ली को अपनी राजधानी इन्द्रप्रस्थ के रूप में बसाया था। ASI के अधिकारिक रेकॉर्ड के अनुसार, शेरशाह सूरी (1538-45) ने दीनपनाह नगर में तोड़फोड़ पुराना किला बनाने का काम शुरू किया था, लेकिन वह बनवा नहीं पाया। इसे मुगल हुमायूँ मुगल ने पूरा करवाया। उस दौरान यह किला यमुना नदी के किनारे था।
साल 1954-55 में पहली बार यहाँ पर खुदाई ASI के पूर्व महानिदेशक प्रोफेसर बीबी लाल की देखरेख में कराई गई थी। इसके बाद यह खुदाई 1969-1973 में कराई गई। इसके 41 साल बाद 2013-14 में, फिर 2017-2018 में और आखिर में 2022-23 में यहाँ खुदाई हुई। हर बार की खुदाई में यहाँ कई प्रकार के अवशेष मिले हैं। यह व्यापार का केंद्र भी रहा है। इसके भी अवशेष मिले हैं।
अब तक खुदाई में यहाँ टेराकोटा के खिलौने और भूरे रंग के चित्रित मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े मिले। ये बर्तन ईसा से 1000 वर्ष पूर्व के हैं। ऐसे प्रमाण वाले बर्तन महाभारत से संबंधित अनेक स्थलों पर पाए जा चुके हैं। इनका काल 1000 ईसा पूर्व निर्धारित किया गया था। इसके अलावा 2500 वर्ष पुराने अवशेषों में चूड़ी, सिक्के, राजमुद्रा, पानी निकासी के लिए नालियाँ समेत कई चीजें मिली हैं।
हालाँकि, अब तक की खुदाई में यहाँ कोई स्ट्रक्चर नहीं मिला है। लेकिन साल 2023 में हुई खुदाई में यहाँ से मौर्य काल, शुंग काल, कुषाण काल, गुप्त गुप्त, राजपूत काल, सल्तनत काल और फिर मुगल काल के अवशेष मिलते रहे हैं। इनमें मौर्यकालीन कुआँ मिला है, जो करीब 2,000 साल पुराना पुराना बताया जाता है। गुप्त काल के घरों की निशानी भी यहाँ मिली।
पांडवों की इस राजधानी का पता लगाने के लिए पुराना किला के अलावा, अन्य कई जगहों पर खुदाई हो चुकी है। हालाँकि, साल 1955 में पुराने किले के दक्षिण-पूर्वी भाग में हुई खुदाई में मिट्टी के पात्रों के टुकड़े पाए गए जो कि महाभारत काल की वस्तुओं से मेल खाते हैं। हालाँकि, ASI अभी भी एक मजबूत प्रमाण की तलाश कर रही है, जिसको लेकर बार-बार खुदाई कराई जा रही है।
दिल्ली के लालकोट और किला राय पिथौरागढ़ किले की साल 1957-58 में, लालकोट किले की 1958-60 में, मकदूम साहेब दरगाह की साल 1973-74 में, सीरी फोर्ट की साल 1976-77 में, सीरी फोर्ट दीवार की 2003 में, लाल काेट और अनंगताल किले की 1992 से 95 में, सलीमगढ़ किला की साल 2007-8 में और तुगलकाबाद किला की साल 2000-2005 में खुदाई हो चुकी है।