अयोध्या में चल रहे मंदिर-मस्जिद विवाद में मस्जिद पक्ष को गहरा झटका लगा है। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने बयान दिया है कि अयोध्या के विवादित ढाँचे को मस्जिद नहीं माना जा सकता। मदनी ने यह भी कहा कि श्रीराम देश की बहुसंख्यक आस्था के प्रतीक हैं। कट्टरपंथियों द्वारा श्रीराम के अनादर के बारे में उन्होंने दोटूक कहा कि इसकी इजाज़त कतई नहीं दी जा सकती।
मदनी के अनुसार किसी के घर या मंदिर को जबरन छीनकर अल्लाह का घर नहीं बनाया जा सकता। बीबीसी गुजराती के एक कार्यक्रम में अहमदाबाद में मदनी ने यह बयान दिया। साथ ही उन्होंने किसी को सेक्युलर, किसी को कम्युनल का ‘सर्टिफिकेट’ बाँटने पर भी आपत्ति जताई। उनके अनुसार हर पक्ष का अपना एक नजरिया होता है।
किसी भी पक्ष की ‘हार’ न हो, इसलिए महमूद मदनी ने आपसी बातचीत द्वारा इस मामले का हल निकालने का भी सुझाव दिया। गौरतलब है कि उच्चतम न्यायलय ने भी लगभग 60 साल से अदालत में चल रहे इस मामले को एक बार फिर बातचीत के सुपुर्द कर दिया है। साथ ही मध्यस्थता के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस कलीफुल्ला की अध्यक्षता में एक मध्यस्थता पैनल का भी निर्माण मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने किया है।
सामान्यतः मौलाना मदनी प्रधामंत्री नरेन्द्र मोदी के विरोधी माने जाते हैं। वे चौधरी अजित सिंह के राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) द्वारा राज्यसभा भी भेजे जा चुके हैं, और मोदी के पक्ष में बयान देने वाले गुलाम मोहम्मद वस्तानवी की दार-उल-उलूम से रुखसती में भी उनका हाथ होने की खबर मीडिया में आई थी।