बाबरी मस्जिद के वकील और ऑल इंडिया बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक ज़फ़रयाब जीलानी ने मुस्लिम बौद्धिकों के संगठन ‘इंडियन मुस्लिम फॉर पीस’ की साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए जन्मभूमि की जमीन हिन्दुओं को देने की अपील ठुकरा दी। उनकी कम लोकप्रियता का मज़ाक उड़ाते हुए जीलानी ने कहा, “मैं लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीर शाह (संगठन के सदस्य, पूर्व सैन्य उप-प्रमुख) को जानता हूँ…. लेकिन और कौन जानता है? वे कौन होते हैं सद्भावना के नाम पर पेशकश करने वाले? क्या वृहत्तर मुस्लिम जनसंख्या उन लोगों के बारे में कुछ जानती है? मुझे नहीं पता कि उनका एजेंडा क्या है, और मुझे परवाह नहीं कि उन्हें इस मामले में क्या कहना है। 0.1% मुसलमानों को भी उनके बारे में मालूम नहीं है।”
मध्यस्थता पैनल के पास मामला दोबारा ले जाने की कोशिश
‘इंडियन मुस्लिम फॉर पीस’ नाम के संगठन ने गुरुवार (10 अक्टूबर) को बैठक की थी। इस बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया कि करोड़ो हिन्दुओं की आस्था को देखते हुए विवादित ज़मीन राम मंदिर के निर्माण के लिए दे दी जाए। बैठक में कुल चार प्रस्ताव पारित किए गए, जिन्हें बाबरी मस्जिद के पक्षकार सुन्नी वक़्फ बोर्ड के ज़रिए सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता कमेटी को भेजे जाने की बात थी।
वे प्रस्ताव थे:
- मंदिर-मस्जिद मसले का हल कोर्ट के बाहर हो।
- मस्जिद बनाने के लिए कोई अच्छी जगह दी जाए।
- प्रोटेक्शन ऑफ़ रिलीजन क़ानून-1991 के तहत तीन महीने की सज़ा को बढ़ाकर तीन साल या उम्र क़ैद की जाए।
- अयोध्या के रास्ते में जितनी भी मस्जिदें, दरगाह या इमामबाड़े हैं, उनकी मरम्मत की सरकार अनुमति दे।
वक्फ़ बोर्ड का भी ठेंगा
बैठक में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के पूर्व कुलपति रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल ज़मीरउद्दीन शाह ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला हमारे पक्ष में आ भी जाए तो मस्जिद बनना मुमकिन नहीं है। इसलिए बहुसंख्यक हिन्दुओं की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए ज़मीन उन्हें दे दी जाए। इससे सौहार्द बना रहेगा। उन्होंने दावा किया कि इस बात पर सुन्नी सेंट्रल बोर्ड भी उनके साथ है। लेकिन सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पदाधिकारियों ने इस तरह की किसी भी बातचीत से इनकार कर दिया था। और अब बाबरी मस्जिद के क़ानूनी पक्षकारों के मुखिया जीलानी ने भी उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया है।