बांग्लादेश ने मंगलवार (10 दिसंबर 2024) को स्वीकार किया कि शेख हसीना को पीएम पद से हटाने के बाद मुल्क में अल्पसंख्यक हिंदुओं को निशाना बताया गया। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने माना कि अल्पसंख्यक, खासकर हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की 88 घटनाएँ हुई हैं। हालाँकि, ये आँकड़े वास्तविक नहीं लगते और घटनाएँ इससे कहीं ज्यादा हैं, फिर भी बांग्लादेश ने यह सच्चाई स्वीकार की।
मोहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने भी कहा कि 5 अगस्त से 22 अक्टूबर तक अल्पसंख्यकों से संबंधित घटनाओं के 88 मामले दर्ज किए गए हैं। इन घटनाओं में 70 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने कहा, “मामलों और गिरफ्तारियों की संख्या में वृद्धि होने की आशंका है, क्योंकि पूर्वोत्तर सुनामगंज, मध्य गाजीपुर और अन्य क्षेत्रों में हिंसा की नई घटनाएँ सामने आई हैं।”
हालाँकि, तीन महीनों से भी कम समय में हुई इतनी घटनाओं को अलग मोड़ देने की कोशिश करते हुए आलम ने कहा कि कुछ घटनाओं को छोड़कर हिंदुओं पर उनकी आस्था के कारण हमला नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि इनमें ऐसे भी मामले हैं, जिनमें पीड़ित शेख हसीना के नेतृत्व वाली पिछली सत्तारूढ़ पार्टी आवामी लीग के सदस्य थे। वहीं, कुछ मामले ऐसे हैं, जिनमें लड़ाई व्यक्तिगत है।
शफीकुल आलम ने कहा कि 22 अक्टूबर के बाद हुई घटनाओं के बारे में मीडिया को जल्द ही विवरण साझा किया जाएगा। बता दें कि कुछ दिन पहले ही भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री बांग्लादेश की यात्रा पर थे। वहाँ उन्होंने मोहम्मद यूनुस और अपने समक्ष से मुलाकात कर अल्पसंख्यकों पर हमलों को लेकर चिंता जताई थी। इसके बाद बांग्लादेश का यह बयान आया है।
सरकार के दावों से अलग है कहानी
बांग्लादेश की सरकार भले ही अपनी छवि बचाने के लिए यह दावा करे अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ हुई हिंसा, उनकी आस्था को लेकर नहीं बल्कि राजनीतिक एवं व्यक्तिगत था। लेकिन, सच्चाई इससे अलग है। बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं का कहना है कि उन्हें मुल्क में आवाज नीची करके बात करना पड़ता है। रिक्शेवाले भी आँख दिखाते हैं। गाड़ी ओवरटेक करने पर भी पिटाई कर दी जाती है।
ढाका में रेडीमेड कपड़ों की फैक्ट्री चलाने वाले उद्यमी संजीव जैन ने हिंदी अखबार एवं सोशल मीडिया दैनिक जागरण को इसके बारे में बताया। 10 दिन पहले ही बांग्लादेश से लौटे जैन ने बताया कि वहाँ स्थिति बहुत बिगड़ गई है। वहाँ अल्पसंख्यकों का जीना हराम होता जा रहा है। उन्होंने बताया कि जब वे ढाका गए थे तो खुद दाढ़ी बढ़ाकर गए थे।