बिहार के सीवान से सांसद रहा बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन तिहाड़ जेल से बाहर नहीं निकल पाएगा। अपने पिता की मौत का हवाला दे उसने पैरोल माँगी थी। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इसे स्वीकृति नहीं दी गई है।
शनिवार (19 सितंबर 2020) रात राजद के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन के पिता का निधन हो गया। उसके बाद उसने पैरोल की अर्जी दाखिल की थी। शहाबुद्दीन के पिता शेख मोहम्मद बसीबुल्लाह की तबीयत पिछले कुछ समय से काफी ज़्यादा खराब थी। उन्होंने 90 साल की उम्र में अंतिम साँस ली। यह जानकारी मिलने के बाद राजद के तमाम नेता और कार्यकर्ता पूर्व सांसद के गाँव प्रतापपुर पहुँचे।
पूर्व सांसद के वकीलों ने शनिवार देर रात से ही उन्हें रिहा कराने के प्रयास शुरू कर दिए थे ताकि वे अपने पिता के जनाज़े को कंधा दे सकें। आवेदन के तहत शहाबुद्दीन ने जेल प्रशासन से 2 हफ्ते की पैरोल पर बाहर जाने की अनुमति माँगी थी।
साल 2017 के फरवरी महीने में सर्वोच्च न्यायालय ने शहाबुद्दीन को दिल्ली की तिहाड़ जेल शिफ्ट करने का आदेश दिया था। दरअसल अदालत में कई याचिकाएँ दायर की गई थीं जिसमें शहाबुद्दीन को तिहाड़ जेल शिफ्ट करने की माँग की गई थी। इन याचिकाओं पर सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था।
इसके पहले शहाबुद्दीन की बिहार के भागलपुर जेल से हुई रिहाई ने सुर्खियाँ बटोरी थीं। साल 2016 के सितंबर महीने में उसे भागलपुर जेल से रिहा किया गया था। शहाबुद्दीन की रिहाई की ख़बर सामने आते ही तमाम समर्थक और कार्यकर्ता जेल के बाहर जमा हो गए थे।
शहाबुद्दीन के जेल से निकलते ही सैकड़ों गाड़ियों का काफ़िला उसके साथ चल पड़ा था। ख़बरों की मानें तो उस काफ़िले में लगभग 1300 गाड़ियाँ मौजूद थीं और यह सभी गाड़ियाँ राष्ट्रीय राजमार्ग पर बिना टोल दिए आगे बढ़ गई थीं। इस घटना के बाद काफी विवाद हुआ था।
उल्लेखनीय है कि 16 अगस्त 2004 को सीवान के प्रतापपुर में व्यवसायी चंद्रकेश्वर प्रसाद के दो बेटों गिरीश, सतीश और राजीव का अपहरण किया गया था। इनमें से दो भाइयों को तेज़ाब से नहला कर जान से मार दिया गया था और तीसरा भाई राजीव उनके चंगुल से भागने में कामयाब हुआ था। इसके बाद मृतकों की माँ और भाई राजीव ने बयान दिया था जिसके आधार पर मुफस्सिल थाने में शहाबुद्दीन के विरुद्ध मामला दर्ज कराया गया था। इस घटना में शहाबुद्दीन को मुख्य आरोपित बनाया गया था। इस मामले में विशेष अदालत ने शहाबुद्दीन को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी। हाई कोर्ट से भी इस मामले में शहाबुद्दीन को राहत नहीं मिल पाई थी।