बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई के प्रसिद्ध सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्ट से महाराष्ट्र सरकार को धनराशि के ट्रांसफर/प्रस्तावित ट्रांसफर को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को स्वीकार कर लिया है। कोर्ट ने कहा है कि अदालत के निर्णय के अधीन ही धनराशि स्थानांतरित की जा सकती है।
इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे की खंडपीठ द्वारा की गई है। पीठ ने महाराष्ट्र सरकार और श्री सिद्धिविनायक गणपति मंदिर ट्रस्ट प्रबंधन समिति को याचिका के जवाब में इस साल 18 सितंबर तक एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। अक्टूबर महीने में मामले की फिर से सुनवाई होगी।
Bombay High Court issues notices to Maharashtra government & Siddhivinayak Temple Trust on a PIL challenging the transfer of Rs 10 crores to the government by the trust.
— ANI (@ANI) August 21, 2020
सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्ट से महाराष्ट्र सरकार को धन हस्तांतरण के लिए चुनौती देने वाली याचिका भगवान गणेश की भक्त गोरेगाँव निवासी लीला रंगा द्वारा दायर की गई थी। रंगा नियमित रूप से सिद्धिविनायक मंदिर में जाती थी और दान करती थी। याचिका में राज्य सरकार द्वारा 5 करोड़ रुपये के फंड ट्रांसफर के संबंध में पारित दो प्रस्तावों को चुनौती देने की माँग की गई थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप संचेती और अधिवक्ता घनश्याम मिश्रा ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि ये दोनों फंड ट्रांसफर विशेष कानून के प्रावधानों के तहत ‘अवैध’ हैं, जो इस बात को नियंत्रित करने के लिए पारित किए गए थे कि मंदिर में एकत्रित धन का उपयोग कैसे किया जाएगा। संचेती ने यह भी कहा कि निधि के लिए महाराष्ट्र सरकार की ओर से पहल की गई है। ट्रस्ट ने इस मामले में शुरुआत नहीं की है। उन्होंने माँग की कि फंड ट्रांसफर को रोकने के लिए अंतरिम आदेश दिया जाए।
5 करोड़ रुपये का पहला हस्तांतरण ‘शिव भोज’ नामक सरकारी योजना के लिए किया गया था। यह योजना गरीबों और बेसहारा लोगों को 10 रुपये में भोजन प्रदान करता है। वहीं 5 करोड़ रुपये की अगली किश्त कोरोना वायरस महामारी के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष में स्थानांतरित की गई थी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि दोनों में से कोई भी लेन-देन विशेष कानून के तहत कवर नहीं किया गया था। श्री सिद्धि विनायक गणपति मंदिर ट्रस्ट (प्रभुदेवी) अधिनियम, 1980 के प्रावधानों के तहत फंड का ट्रांसफर अवैध है। अधिनियम की धारा 18 के तहत ट्रस्ट का धन केवल बहुत ही विशिष्ट उद्देश्यों के लिए हस्तांतरण किया जा सकता है। इसके अलावा जो उद्देश्य मंदिर से जुड़े नहीं हैं और दान के लिए उपयोग किए जा सकते हैं, वे हैं – श्रद्धालुओं के लिए रेस्टहाउस, ट्रस्ट की संपत्तियों और शैक्षणिक संस्थानों, स्कूलों, अस्पतालों या डिस्पेंसरी के रखरखाव के लिए इस्तेमाल।
हालाँकि, यह भी केवल ट्रस्ट की समिति द्वारा अधिकृत होने पर ही किया जा सकता है। इसके अलावा अगर ट्रस्ट के पास दान के लिए अतिरिक्त धन इकट्ठा हो। वहीं ट्रस्ट 5 साल के भीतर ट्रस्ट एक साथ अधिक धन हस्तांतरित करने से रोकता भी है।
याचिकाकर्ता की ओर से बहस कर रहे वकीलों ने आरोप लगाया कि फंड ट्रांसफर और पिछले महीने राज्य सरकार द्वारा ट्रस्ट की प्रबंध समिति के अध्यक्ष को दिए गए विस्तार के बीच संभावित एक कनेक्शन हो सकता है।