कन्हैया पर चप्पल फेंकने वाले लड़के को वामपंथियों ने किया लिंच, बेहोश होने तक पीटा

कन्हैया को चंदन की चेतावनी

बिहार के लखीसराय में कन्हैया कुमार के भड़काऊ बयानों से तंग आकर उन पर चप्पल उछालने वाले चंदन कुमार गोरे पर भीड़ में मौजूद कन्हैया समर्थकों ने बहुत लात-घूसे-डंडे बरसाए। काफी मशक्कत के बाद पुलिस चंदन को भीड़ से छुड़ाकर अस्पताल पहुँचाने में सफल हुई। बावजूद इसके, इस पूरे मामले में केवल चंदन गोरे पर ही कार्रवाई हुई। उन्हें हिरासत में लिया गया। उस भीड़ के ख़िलाफ़ किसी ने कोई एक्शन नहीं लिया, जिसने प्रशासन और कन्हैया कुमार की उपस्थिति में चंदन गोरे को बुरी तरह पीटा।

इस घटना के सुर्खियों में आने के बाद घटनास्थल के वीडियोज भी आए। इन वीडियोज में देखा गया कि पुलिस के मौजूद होने के बाद भी किस तरह चंदन गोरे को पीटा गया। वीडियो में आवाजें आती रहीं- “मर जाएगा-मर जाएगा”… लेकिन फिर भी कन्हैया कुमार के समर्थकों ने शांत होने का नाम नहीं लिया और युवक को बेहोश करने तक पीटते रहे। अब यहाँ यह सोचने का विषय है कि अगर चंदन ने चप्पल फेंका तो ये बात संविधान या दंड संहिता की किस धारा में है कि उनकी लिंचिंग की जाए? कन्हैया का समूह तो संविधान बचाने निकला है, गाँधी का नाम लेता है, फिर ऐसी हिंसा क्यों?

गौरतलब है कि चंदन की पिटाई के अलावा एक अन्य वीडियो भी सोशल मीडिया पर आई है। इसमें चंदन खुद इस घटना के बारे में बताते नजर आए। चंदन को वीडियो में कहते सुना जा सकता है कि कन्हैया देश का गद्दार है और वह मंच से लोगों को भड़का रहा था। युवक के अनुसार जब कन्हैया जेएनयू में रहकर अपने हक की माँग उठा सकता है, तो फिर स्कूल की सरकारी व्यवस्था चौपट होने पर कुछ क्यों नहीं बोलता। चंदन के मुताबिक कन्हैया अपने आपको नेता बोलता है, लेकिन वो देश का गद्दार है। चंदन कहते हैं कि वे कन्हैया को जब भी देखेंगे, उसे नहीं छोड़ेंगे। इसके बाद कन्हैया कुमार को देश का गद्दार बोलते हुए कहते हैं कि वे उसके (कन्हैया) ऊपर चप्पल क्या… जो भी हाथ में आएगा, वो फेंकेंगे।

गौरतलब है कि अपनी बात रखते हुए चंदन ने खुद को गोडसेवादी भी बताया और कहा कि यहाँ गाँधीवाद बिलकुल नहीं चलेगा। इसके बाद इस बयान ने तूल पकड़ लिया। चंदन ने कहा कि वे घटनास्थल पर अकेले थे, उनके साथ उनका कोई समर्थक नहीं था। उनके मुताबिक जब गाँधी अकेले चले, गोडसे अकेले निकले तो आखिर वह क्यों कन्हैया जैसे गद्दार को खत्म करने के लिए किसी को लेकर चलें।

कन्हैया समर्थकों द्वारा पीटे जाने पर चंदन कहते हैं कि वे देशभक्त हैं, उन्हें किसी चीज का डर नहीं। जब इस देश में सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह को आतंकवादी बोल सकते हैं तो ये लोग कहाँ से देशभक्त हुए? अपनी बात कहते हुए चंदन बार-बार दोहराते हैं कि वो ऐसी (वामपंथी) विचारधारा रखने वाले को कभी नहीं छोड़ेंगे। पढ़ाई के बारे में पूछे जाने पर चंदन कहते हैं कि वो पढ़ाई नहीं करते, समाज में रहते हैं और इस तरह के वामपंथ को खत्म करने की मंशा लेकर चलते हैं।

चंदन मीडिया से बात करते हुए कहते हैं कि कन्हैया भुखमरी से आजादी माँगते हैं, जबकि जेएनयू में नाइक और जॉकी के कपड़े पहनकर बैठते हैं। चंदन की शिकायत है कि जब कन्हैया जेएनयू में बैठे थे, तब एक भी बार उन्होंने यहाँ (राज्य) के गरीबों के लिए बेहतर शिक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए आवाज नहीं उठाई। मगर आज देश को तोड़ना चाहते हैं। इसलिए ऐसी मंशा रखने वाले को वो जब भी और जहाँ भी देखेंगे तो उसे ठोकेंगे, चाहे इसके लिए उनके साथ कुछ भी हो जाए। उनका मानना है कि आज उनके जैसे अगर एक हैं, तो आने वाले समय में ये संख्या 100 होगी और सब मिलकर वामपंथ को खत्म कर देंगे। कैमरे में अपनी जनेऊ दिखाते हुए चंदन, कन्हैया कुमार को चेताते हैं कि वो जिस जनेऊ को खत्म करने की बात करते हैं, वे कन्हैया को इसी जनेऊ में लपेंट देंगे।

गौरतलब है कि चंदन को भीड़ द्वारा पीटे जाने के बाद सोशल मीडिया पर उनके समर्थकों का जमावड़ा लग गया है। कई सोशल मीडिया ग्रुपों में कहा जा रहा है, “चंदन कुमार गोरे पर यह हमला भीड़ के द्वारा जो किया गया, वह इसलिए किया गया क्योंकि पूरे समाज के लिए वो अकेले उस भीड़ से लड़ गए, वह उस बात को नहीं बर्दाश्त कर पाए, जो वहाँ बैठे नपुंसक अपने समाज के लिए नहीं कर सके। इसके विपरीत लोग कन्हैया को सुनकर ताली बजा रहे थे। जबकि चंदन अपने सनातन संस्कृति के खिलाफ बातें सुनकर बर्दाश्त नहीं कर पाए और अपना विरोध व्यक्त किया। और इसी विरोध के एवज में ‘संविधान बचाने निकली भीड़’ ने उन पर हमला कर दिया। लेकिन चंदन कुमार गोरे एक वीर है, वह अकेले डटा रहा। अभी यह प्रारंभ है और चंदन के द्वारा किया गया आरंभ इन वामपंथी विचारधारा का अंत करके छोड़ेगा।”

यहाँ स्पष्ट कर दें कि ऑपइंडिया किसी भी प्रकार की हिंसा को बढ़ावा नहीं देता। चप्पल मारना भले ही किसी की खीझ की ‌अभिव्यक्ति हो सकती है, वो एक विरोध का तरीका हो सकता है, लेकिन यह तरीका सही नहीं है, भले ही देश विरोधी वामपंथी ही इसका शिकार क्यों न हो रहे हों।

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ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया