दिल्ली में कोरोना के हालात कितने भयावह हो चुके हैं इसका अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल है। दिल्ली में कोरोना के मरीज़ों के साथ जिस तरह लापरवाही बरती जा रही है उसका एक उदाहरण सामने आया है। मंगलवार के दिन दिल्ली एम्स के ट्रामा सेंटर में कोरोना की वजह से मरने वाले दो लोगों के शरीर ही बदल गए। अस्पताल प्रबंधन की तरफ से हुई इस लापरवाही के चलते हिंदू परिवार ने एक मुस्लिम महिला का अंतिम संस्कार कर दिया और मुस्लिम परिवार के व्यक्तियों ने एक हिंदू महिला को दफ़न कर दियाl
7 जुलाई के दिन आएशा (परिवर्तित नाम) के परिजनों को अस्पताल बुलाया गया और एम्स दिल्ली के ट्रामा सेंटर वालों ने उन्हें सूचित किया कि उसकी मृत्यु हो चुकी है। अब वह शव ले जा सकते हैं, जैसे ही आएशा के परिजन मौके पर पहुँचे अस्पताल प्रबंधन ने उन्हें बताया, “हम शव देने की तैयारी पूरी कर चुके हैं, अंतिम क्रिया की तैयारी शुरू कर दीजिए।”
इसके बाद आएशा के भाई ने अपनी बहन का चेहरा देखने की बात कही, जिस पर अस्पताल प्रशासन ने कहा कि चेहरा दफ़नाने की जगह पर ही दिखाया जाएगा। फिर कोरोना वायरस के आधिकारिक प्रोटोकॉल के तहत शरीर प्लास्टिक में बंद करके आएशा के परिजनों को दे दिया गया।
दफ़नाने के ठीक पहले आएशा के बच्चों ने एक अंतिम बार चेहरा देखने का निवेदन किया। जिस पर उसके भाई का कहना था कि ‘हमें दिल्ली गेट कब्रिस्तान पर एक कर्मचारी ने बताया कि हमें चेहरा देखने के लिए 500 रूपए देने पड़ेंगे। जैसे ही मैंने चेहरा देखने के लिए 500 रूपए दिए उसके बाद हम सभी दंग रह गए क्योंकि वह आएशा नहीं थी। वह एक हिन्दू परिवार की महिला, सरिता (परिवर्तित नाम) थी।
ऐसा होने के बाद आएशा के परिजनों ने वापस एम्स दिल्ली से संपर्क किया। जिस पर अधिकारियों ने कहा कि कोई गलती हुई है, हम एक घंटे के भीतर सही शरीर देंगे। लेकिन एक घंटे बाद उन्हें यह पता चला कि आएशा का अंतिम क्रिया हिंदू रीति रिवाज़ों से हो चुकी है। वहीं दूसरी तरफ जिस हिंदू परिवार ने दिल्ली के पंजाबी बाग़ में आएशा का अंतिम संस्कार अपनी बेटी समझ कर किया था।
उन्हें भी जैसे इस बात का पता चला वह हैरान रह गए लेकिन ऐसी सूरत में वह असहाय थे। इस पर एक समाचार समूह से बात करते हुए एम्स ट्रामा सेंटर के अधिकारी ने कहा, हम इस मामले की जाँच कर रहे हैं। एक कर्मचारी को निकाला जा चुका है और दूसरे को निलंबित किया गया है।
पिछले महीने भी कुछ इस तरह के मामले दिल्ली के अस्पताल में सामने आ चुके हैं। इन मामलों में भी महामारी को लेकर अस्पताल की तरफ से होने वाली लापरवाही का साफ़ उदाहरण पेश हुआ था। गुज़रे महीने न्यूज़ 18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल में शवों की अदला-बदली हो गई थी।
जिसके चलते एक परिवार अपनी माता का अंतिम संस्कार नहीं कर पाया था और वहीं दूसरे परिवार ने कुल 2 शवों का अंतिम संस्कार कर दिया था। जिसके बाद दोनों परिवारों ने अस्पताल प्रशासन पर आरोप लगाया कि उनके परिजनों को सही देखभाल नहीं मिली। साथ ही वह अपने लोगों का सही से अंतिम संस्कार तक नहीं कर पाए।
इस तरह के एक और मामला लोकनायक अस्पताल से सामने आया था जिसमें दो एक तरह के नाम वालों का शव बदल गया था। नतीजतन कलीमुद्दीन नाम के व्यक्ति ने अपने पिता को दो बार दफन कर दिया था। दरअसल 7 जून के दिन मोइनुद्दीन नाम के दो व्यक्तियों की मृत्यु हुई थी, जिसके बाद इस तरह की लापरवाही हुई थी।
मामले पर अस्पताल के एक अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा ‘कभी-कभी हमारे लिए यह काम बहुत मुश्किल हो जाता है। क्योंकि मरने के बाद एक इंसान का चेहरा पूरी तरह बदल जाता है उस पर कोई भाव नहीं रह जाते हैं। हम पूरी कोशिश करेंगे कि हमारी तरफ से इस तरह की लापरवाही दोबारा न हो।’