दिल्ली की साकेत कोर्ट ने शुक्रवार (24 मई) को सामाजिक कार्यकर्ता और नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को मानहानि मामले में दोषी ठहराया है। उनके खिलाफ तत्कालीन केवीआईसी अध्यक्ष वीके सक्सेना (अब दिल्ली एलजी) की ओर से याचिका दायर की गई थी। इस मामले में अब मेधा पाटकर को जेल और जुर्माना, दोनों ही तरह की सजा मिल सकती है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये केस 21 साल पुराना था। साल 2000 से ही वीके सक्सेना और मेधा पाटकर कोर्ट की लड़ाई में उलझे थे। साल 2000 में मेधा पाटकर ने अपने खिलाफ आपत्तिजनक ऐड छापने के मामले में वीके सक्सेना पर केस दर्ज कराया था। इसके जवाब में वीके सक्सेना, जो उस समय केवीआईसी के अध्यक्ष थे, उन्होंने मेधा पाटकर पर 2 केस दर्ज कराए थे। जिस केस में मेधा पाटकर दोषी पाई गई हैं, वो साल 2003 में दर्ज कराया गया था।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, साकेत कोर्ट के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने मेधा पाटकर को आपराधिक मानहानि का दोषी पाया है। कानून के मुताबिक, उन्हें सजा के तौर पर दो साल की जेल या जुर्माना या फिर दोनों मिल सकते हैं।
कोर्ट ने कहा कि, मेधा पाटकर ने आईपीसी की धारा 500 के तहत दंडनीय अपराध किया है। उसे इसके लिए दोषी ठहराया जाता है। उनकी हरकतें जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण थीं, जिसका उद्देश्य शिकायतकर्ता के अच्छे नाम को खराब करना था। उनके कार्यों ने वास्तव में जनता की नजर में उसकी प्रतिष्ठा और साख को काफी नुकसान पहुँचाया है।
कोर्ट ने पाया कि पाटकर ने अपने बयान में सक्सेना को कायर कहा और हवाला लेनदेन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाया था, ये न केवल मानहानिकारक थे, बल्कि नकारात्मक धारणाओं को भड़काने के लिए भी तैयार किए गए थे। यह आरोप कि सक्सेना गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रख रहे थे, उनकी ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा पर सीधा हमला था।
जानकारी के मुताबिक, साल 2000 में मेधा पाटकर और वीके सक्सेना के बीच तनातनी हुई थी। उस समय वीके सक्सेना अहमदाबाद बेस्ड एनडीए नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष थे। उन्होंने अपने खिलाफ टीवी पर आपत्तिजनक बयानबाजी को लेकर 2 केस दर्ज कराए थे। मेधा पाटकर ने उनके खिलाफ प्रेस में भी बयान जारी किया था।