Thursday, November 21, 2024
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दिल्ली के स्कूलों में रोहिंग्या मुस्लिमों के बच्चों को एडमिशन दिलाने हाई कोर्ट पहुँच गया ‘सोशल ज्यूरिस्ट’, याचिका खारिज: कहा- यह अंतरराष्ट्रीय मुद्दा, हम नागरिकता नहीं दे सकते

याचिका में यह भी कहा गया है कि जिन रोहिंग्या छात्रों को सरकारी स्कूलों में दाखिला मिला था, उन्हें भी कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, क्योंकि दिल्ली सरकार ने उन्हें स्कूल यूनिफॉर्म और लेखन सामग्री जैसी वैधानिक सुविधाएँ देने से इनकार कर दिया था, क्योंकि उनके परिवार के पास बैंक खाता नहीं है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार (29 अक्टूबर 2024) को म्यांमार से भारत आए रोहिंग्या मुस्लिमों के बच्चों को स्कूल में दाखिला देने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देने की माँग पर विचार करने से इनकार कर दिया। दायर की गई जनहित याचिका (PIL) में दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम के स्थानीय स्कूलों में प्रवेश देने का निर्देश देने की माँग की गई थी।

दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को सुझाव दिया कि इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्रालय से संपर्क किया जा सकता है। कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा, “इसमें पहला कदम हाई कोर्ट नहीं हो सकता। पहले सरकार से संपर्क करें… जो आप सीधे नहीं कर सकते, उसे आप अप्रत्यक्ष रूप से भी नहीं कर सकते। कोर्ट को इसमें माध्यम नहीं बनना चाहिए।”

हाई कोर्ट ने कहा कि ये बच्चे भारतीय नहीं हैं। इसलिए इसमें अंतर्राष्ट्रीय निहितार्थ शामिल हैं। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में नीतिगत निर्णय की आवश्यकता है, जिस पर निर्णय लेने के लिए भारत सरकार सबसे उपयुक्त है। उन्होंने कहा, “‘बच्चे’ का मतलब यह नहीं है कि पूरी दुनिया यहाँ आ जाएगी। ये अंतरराष्ट्रीय मुद्दे हैं। सुरक्षा और राष्ट्रीयता पर इनका असर पड़ता है।”

अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि यह मामला अंतरराष्ट्रीय मुद्दों से जुड़ा है, जिसका सुरक्षा और नागरिकता पर असर है। कोर्ट ने कहा कि रोहिंग्या विदेशी हैं, जिन्हें आधिकारिक या कानूनी रूप से भारत में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई है। इसके बाद कोर्ट ने उन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय से संपर्क करने के लिए कहा।

न्यायालय ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय का भी उल्लेख किया, जिसमें नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A की संवैधानिकता को बरकरार रखा गया है। यह निर्णय असम समझौते के अंतर्गत आने वाले अप्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने से संबंधित है। हाई कोर्ट ने कहा कि इस निर्णय के कारण राज्य में काफी उथल-पुथल मचा और आंदोलन हुआ।

कोर्ट ने कहा, “दुनिया के किसी भी देश में न्यायालय यह निर्णय नहीं करेगा कि किसे नागरिकता दी जाए।” इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने इस जनहित याचिका का निपटारा करते हुए इस पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। इस जनहित याचिका को सोशल ज्यूरिस्ट नाम के एक सिविल राइट ग्रुप ने दायर किया था।

सोशल ज्यूरिस्ट ने अपनी जनहित याचिका में कहा था कि स्कूल रोहिंग्या शरणार्थियों के बच्चों को स्कूल में प्रवेश देने से इनकार कर हैं, क्योंकि उनके पास आधार कार्ड और बैंक खाता नहीं है। उनके पास केवल संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) द्वारा जारी शरणार्थी कार्ड है। इस एनजीओ ने इसे मूल अधिकारों का हनन बताया है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि जिन रोहिंग्या छात्रों को सरकारी स्कूलों में दाखिला मिला था, उन्हें भी कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, क्योंकि दिल्ली सरकार ने उन्हें स्कूल यूनिफॉर्म और लेखन सामग्री जैसी वैधानिक सुविधाएँ देने से इनकार कर दिया था, क्योंकि उनके परिवार के पास बैंक खाता नहीं है।

दरअसल, अशोक अग्रवाल नाम के एक एडवोकेट ने दिल्ली के एक इलाके में शरणार्थी कॉलोनी का दौरा किया था। इस मुद्दे को उन्होंने दिल्ली सरकार को लिखित रूप में भी बताया। हालाँकि, जब सरकार की ओर से उन्हें कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने हाईकोर्ट में इस मामले में एक जनहित याचिका दायर किया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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