Friday, November 15, 2024
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दिल्ली हाईकोर्ट ने शिव मंदिर के ध्वस्तीकरण को ठहराया जायज, बॉम्बे HC ने विशालगढ़ में बुलडोजर पर लगाया ब्रेक: मंदिर की याचिका रद्द, मुस्लिमों की याचिका पर इंस्पेक्टर तलब

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गगेडेला की खंडपीठ ने कहा कि सोसाइटी मंदिर के स्वामित्व संबंधित दस्तावेज नहीं पेश कर पाई, साथ ही इसके खिलाफ भी कोई साक्ष्य नहीं दे पाई कि मंदिर यमुना जलक्षेत्र में बना हुआ है।

अतिक्रमण ध्वस्त करने को लेकर दिल्ली और मुंबई स्थित उच्च न्यायालयों ने अलग-अलग किस्म का फैसला सुनाया है। जहाँ दिल्ली उच्च न्यायालय ने ध्वस्तीकरण का आदेश सही ठहराया, वहीं बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रशासन को ध्वस्तीकरण रोकने के लिए कहा। दिल्ली वाला मामला एक शिव मंदिर का है, महाराष्ट्र वाला मामला विशालगढ़ का है जहाँ अधिकतर मुस्लिमों की दुकानें और घर हैं। अब सवाल तो उठ सकते हैं कि दोनों जगह एक तरह के ही मामलों में अलग-अलग किस्म के फैसले क्यों?

‘शिव मंदिर का ध्वस्तीकरण सही, अवैध रूप से बना था’: दिल्ली हाईकोर्ट

सबसे पहले चलते हैं दिल्ली, जहाँ हाईकोर्ट ने कहा कि यमुना किनारे स्थित मैदानी इलाके में शिव मंदिर को ध्वस्त करना सही है। अदालत ने इसे इको-सेंसेटिव जोन बताते हुए कहा कि इसे संरक्षित किया जाना चाहिए। DDA (दिल्ली विकास प्राधिकरण) से ये मामला जुड़ा है। दिल्ली हाईकोर्ट की एकल पीठ ने जो फैसला सुनाया था, उसे जारी रखा गया। ‘प्राचीन शिव मंदिर’ की तरफ से इस आदेश के खिलाफ याचिका डाली गई थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि पहले से उन्हें कोई नोटिस नहीं दिया गया था, जो स्वभाविक न्याय के सिद्धांत के विरुद्ध है।

साथ ही कहा गया था कि ये जमीन उत्तर प्रदेश की है, अतः दिल्ली प्रशासन का इस पर अधिकार नहीं बनता। मंदिर पहले ही ध्वस्त किया जा चुका है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गगेडेला की खंडपीठ ने कहा कि सोसाइटी मंदिर के स्वामित्व संबंधित दस्तावेज नहीं पेश कर पाई, साथ ही इसके खिलाफ भी कोई साक्ष्य नहीं दे पाई कि मंदिर यमुना जलक्षेत्र में बना हुआ है। अदालत ने कहा कि बिना किसी अनुमति के इसे बनाया गया, साथ ही कहा कि यमुना फ्लडप्लेन्स को ऐसे अतिक्रमणों से बचाना होगा भले ही संरचना धार्मिक क्यों न हो।

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दिल्ली और उत्तर प्रदेश के बीच अतिक्रमण हटाने को लेकर MoU पर हस्ताक्षर किया गया था। DDA को अवैध अतिक्रमण हटाने के लिए अनुमति दे दी गई थी। हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी तरह का दस्तावेज मंदिर सोसाइटी पेश नहीं कर पाई। बता दें कि जहाँगीरपुरी में जब अवैध अतिक्रमण पर बुलडोजर चल रहा था तो सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। जहाँगीरपुरी में अधिकतर मुस्लिम हैं। कचरा कारोबारियों से सड़कों से लेकर पार्क तक कब्जा रखा है।

‘एक भी संरचना नहीं गिराई जाए’ बॉम्बे हाईकोर्ट

वहीं महाराष्ट्र के विशालगढ़ में किले पर कब्ज़ा को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने ध्वस्तीकरण की कार्रवाई रोकने का आदेश दिया। मकबूल अहमद मुजवर व अन्य ने इस मामले में याचिका दायर की थी। बर्गेस कोलाबावाला और फिरदोश पूनीवाला ने इस याचिका पर सुनवाई की। जजों ने पूछा कि ध्वस्तीकरण की कार्रवाई बारिश के मौसम में क्यों की गई? हाईकोर्ट ने कहा, “हम यह स्पष्ट कर देते हैं कि अगले आदेश तक एक भी संरचना, चाहे वह वाणिज्यिक हो या घरेलू, नहीं गिराई जाएगी।”

राज्य सरकार की तरफ से उच्च न्यायालय को बताया गया कि केवल कमर्शियल संरचनाओं को ध्वस्त किया गया है, अदालत के स्टे ऑर्डर में जो संरचनाएँ आती हैं उनमें से एक को भी छुआ तक नहीं गया है। वहीं अदालत ने कहा कि अगर इस बयान के हिसाब से काम नहीं हुआ होगा तो अधिकारियों को जेल भेजने से भी गुरेज नहीं किया जाएगा। मुस्लिम याचिकाकर्ताओं ने कहा कि प्रतिबंध के आदेश के बावजूद हथौड़ा लेकर प्रदर्शनकारी किले के ऊपर चढ़ गए थे।

उन्होंने इस दौरान सांप्रदायिक नारेबाजी का भी आरोप लगाया। महिलाओं-बच्चों को परेशान किए जाने और गाड़ियों को क्षतिग्रस्त किए जाने का भी आरोप लगाया गया। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि ‘दक्षिणपंथी शिवभक्तों’ ने गजपुर स्थित ‘रज़ा सुनील जामा मस्जिद’ को तबाह करने की कोशिश की, जबकि पुलिस देखती रही। वीडियो देखते के बाद हाईकोर्ट ने शाहूवाड़ी पुलिस थाने के इंस्पेक्टर को अगली सुनवाई में मौजूद रहने का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने पूछा कि क्या कानून-व्यवस्था बनाए रखना पुलिस का काम नहीं है?

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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