एलोपैथ पर बाबा रामदेव के बयान और पंतजलि के कोरोनिल के खिलाफ दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (DMA) ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने आज (जून 3, 2021) योग गुरु की बातों को एक राय बताते हुए कहा कि इसे अभिव्यक्ति की आजादी के तौर पर देखा जाना चाहिए।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार DMA द्वारा फाइल किए गए मुकदमे पर जस्टिस सी हरि शंकर की एकल पीठ ने सुनवाई की। कोर्ट ने बाबा रामदेव के बयान पर कहा, “यह एक राय है…कोई भी मामला जहाँ बयानों पर रोक लगाने की बात हो उसे अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत परीक्षण किया जाता है। ये एक अधिकार है…इस्तेमाल की गई भाषा आपत्तिजनक हो सकती है।”
कोर्ट ने आगे कहा, “मुझे नहीं लगता कि आपका एलोपैथिक पेशा इतना नाजुक है.. ये किसी का विचार है कि एलोपैथिक दवाओं की अक्षमता के कारण इतने लोग मारे गए हैं। मुझे लगता है कि यह अनुच्छेद 19(1)(ए) के अंतर्गत आता है।”
कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति अपनी राय रख सकते हैं। इसके लिए उनके खिलाफ मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता है। अदालत ने कहा,
“अगर मुझे लगता है कि कुछ विज्ञान फर्जी है, कल मुझे लगता है कि होम्योपैथी नकली है…तो क्या आपका मतलब है कि वे मेरे खिलाफ मुकदमा दायर करेंगे? यह जनता की राय है।रामदेव एक व्यक्ति हैं।उन्हें एलोपैथी पर विश्वास नहीं है। उनका मानना है कि योग और आयुर्वेद से सब कुछ ठीक हो सकता है। अब ये सही या गलत हो सकता है। एलोपैथिक किसी के लिए काम करती है और किसी के लिए नहीं, यह सबका अपना-अपना नजरिया है। हम इस मामले में नोटिस जारी कर सकते हैं, लेकिन हम रामदेव को रोक नहीं सकते हैं।”
अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद बाबा रामदेव को अन्य बातों के साथ पतंजलि की कोरोनिल पर ये जानकारी फैलाने के लिए कि वो एक कोविड ट्रीटमेंट है, समन जारी किया। इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि वह बिना रामदेव बाबा का पक्ष जानें कोई भी आदेश पास नहीं कर सकते।
कोर्ट ने DMA की ओर से पेश वकील से यह भी सवाल किया, “क्या ये धारा 91 का केस है? आप यहाँ कुछ भी नहीं कह सकते हैं। आप कहते हैं, “हे भगवान! रामदेव ने कुछ कह दिया… आप लोगों को तो इस समय महामारी से बचाने के तरीके खोजने चाहिए न कि कोर्ट में आकर समय बर्बाद करना चाहिए।”
DMA की ओर से दलीलें और कोर्ट के तर्क
वरिष्ठ वकील राजीव दत्ता ने इस मामले को डॉक्टरों के अधिकार से जोड़ा और जब कोर्ट ने पूछा कि क्या बाबा रामदेव का बयान जनमानस को नुकसान पहुँचा रहा है, तो वकील ने कहा, “यह सदस्यों को प्रभावित कर रहा है। खुले में दिया गया बयान प्रभाव डालता है। वह डॉक्टरों के नाम ले रहे हैं। वह विज्ञान को फर्जी बता रहे हैं। वो भी इस महामारी में…”
दत्ता ने बताया कि रामदेव कोरोनिल को कोरोना से ठीक होने वाली दवाई बता रहे हैं। इसी पर जस्टिस बोले, “मुझे नहीं लगता कि आपका एलोपैथिक पेशा इतना नाजुक है।” उन्होंने कहा, “मान लेते हैं कि उन्होंने जो कहा है वह गलत, भ्रामक, शरारती हैं… फिर भी मैं समझता हूँ कि यह आम जनता को प्रभावित करने वाला एक बयान है। इसके लिए सीपीसी के तहत प्रावधान है। धारा 95 सीपीसी के अलावा जनहित के तहत मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता।”
सुनवाई में दत्ता ने कहा कि केंद्र सरकार भी यह बयान दे चुकी है कि कोरोनिल कोविड-19 से नहीं बचाती और इसका ऐसे प्रचार नहीं होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि बाबा रामदेव इसके इम्युनिटी बूस्टर होने पर स्पष्टीकरण दें। कोर्ट ने दत्ता के इस तर्क पर कहा कि बाबा रामदेव इस पर बयान दे चुके हैं। अब आपकी शिकायत का क्या मतलब। वह तो कहते ही हैं कि ये एक इम्यूनिटी बूस्टर है।
दत्ता फिर दलील देते हैं कि कोरोनिल से पतंजलि ने 25 करोड़ रुपए बनाए। इस पर कोर्ट ने पूछा तो क्या उन्हें इसका दोष दिया जाए कि लोगों ने कोरोनिल खरीदी? न्यायधीश हरि शंकर ने कहा कि कोरोनिल इलाज है या नहीं ये अदालत नहीं कह सकती, ये कहना मेडिकल विशेषज्ञों का काम है।
इस पूरी सुनवाई में दत्ता ने अंतरिम राहत के लिए दबाव डाला और माँग की कि रामदेव को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित करने से रोका जाए और बिना शर्त माफी माँगने को कहा जाए।
दत्ता ने कोर्ट से यह भी कहने को कहा कि कोरोनिल कोविड-19 के इलाज के रूप में काम नहीं करता है और इस बात को आयुष मंत्रालय भी कह चुका है। हालाँकि इस पर कोर्ट ने कहा, “मंत्रालय ऐसा नहीं कहता। उसने कोई निष्कर्ष नहीं दिया है… जहाँ तक मुझे पता है, एक घोषणा देना… यह एक शामिल प्रक्रिया है। इसके लिए व्यापक अध्ययन और शोध की आवश्यकता होगी।”
आगे ऐसा बयान जारी न करें
बता दें कि इस पूरे मामले पर बाबा रामदेव की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव नायर पेश हुए। उन्होंने बताया कि रामदेव ने 22 मई को अपने बयान वापस ले लिए थे। इस पर अदालत ने कहा, “आगे अपने मुवक्किल को ऐसा कोई बयान न देने के लिए कहें।” जस्टिस ने यह भी कहा, “मुझे उनके कोरोनिल पर बयान देने से कोई आपत्ति नहीं है… नायर एक बहुत सम्मानित वरिष्ठ हैं। मुझे यकीन है कि उनके मुवक्किल उनकी बात सुनेंगे।” कोर्ट ने कहा कि इस मामले में हम कोई भी आदेश जारी नहीं कर रहे हैं और हमें पूरी उम्मीद है कि भविष्य में उनके क्लाइंट कोई बयान नहीं जारी करेंगे।”