एक बच्चे के जन्म का दिन माता-पिता के लिए सबसे खुशी वाला दिन होता है। दोनों जन उसी क्षण से अपने मन में उस नवजात को हर खुशी देने के सपने देखने लगते हैं। बाद में उसके किशोर होने पर उसे अच्छी शिक्षा देने के लिए खुद को झोंक देते हैं। फिर युवा होने पर उसके उज्जवल भविष्य की प्रार्थना करने लगते हैं… यही करते-करते एक दिन वो दोनों प्राणी बूढ़े हो जाते हैं और आस भरी नजरों से सिर्फ यही सोचते हैं कि अब उनके बच्चे उनका ख्याल रखेंगे। लेकिन क्या असल में ऐसा हो पाता है? क्या हर माता-पिता को उनके त्याग और समर्पण के बदले बुढ़ापे में बच्चों का सहारा मिलता है? नहीं… बच्चा अगर सूरत के चुन्नी भाई और मुक्ताबेन की बड़ी औलाद पीयूष जैसा हो तो बिलकुल भी नहीं।
सूरत के चुन्नी भाई और उनकी पत्नी मुक्ताबेन ने हाल में अपनी औलाद के कारण एक आखिरी खत लिखकर मौत को गले लगा लिया। अपने आखिरी खत में वो साफ-साफ कह गए कि उनके अंतिम संस्कार में उनके बच्चों को न शामिल किया जाए और उतना ही खर्च हो जितने की जरूरत हो, इसके अलावा कुछ भी नहीं।
आप सोचेंगे कितने निष्ठुर माता-पिता रहे होंगे जो अपने बच्चे से अंतिम संस्कार का अधिकार छीन लिया और दुनिया के सामने उसे बुरी संतान साबित कर गए…कुछ लोग शायद ऐसा भी सोचें कि बच्चे ने अगर कुछ गलत किया भी था तो इसमें आत्महत्या करने की क्या जरूरत थी, जैसे खत में बच्चे को दूर रहने को कहा है वैसे असल जिंदगी में भी कह देते… लेकिन हमारे लिए ये सारी चीजें सोचना आसान है क्योंकि हम उस मनोवस्था को समझ ही नहीं पा रहे जो आखिर समय में चुन्नी भाई और उनकी पत्नी की रही होगी। पीयूष उनकी बड़ी औलाद था। बचपन से उसे पढ़ाने लिखाने में चुन्नी भाई ने खुले हाथ से खर्च किया। जब बड़ा हुआ तो उसका काम सेट करवाने के लिए अपनी सारी संपत्ति लगा दी। पीयूष उसमें भी सफल नहीं हुआ तो अपने नाम पर चुन्नी भाई ने कर्जा लेकर उसे 35 लाख रुपए दिलवा दिए। उन्हें लगा बेटा कमाएगा तो सारा कर्जा चुकता हो जाएगा। मगर बेटे ने क्या किया…उन पैसों को भी व्यापार में डुबा दिया।
इतने पर भी चुन्नी भाई और मुक्ताबेन ने अपने बेटे का हाथ नहीं छोड़ा। वो उसे सेटल करवाने के प्रयास करते रहे। उन्होंने पीयूष की शादी करवाई उसका घर बसवाया। एक बच्चा हुआ। बाद में उन्होंने पीयूष को कनाडा भेजा। इन सबके बीच पीयूष को एक भी बार ख्याल नहीं आया कि जो 40 लाख रुपए उसके पिता ने उसके काम के लिए उधार लिए थे वो कैसे वापस दिए जाएँगे। देखते-देखते पीयूष कनाडा में रम गया। वहीं उसकी बीवी भी अपने बच्चे को लेकर अलग घर में रहने लगी। सब जानते हुए भी पीयूष को न माता-पिता की चिंता रही, न कर्जा लौटाने की बात। अपना कमाना अपना खाना वाली नीति पर पीयूष जिंदगी गुजारता था। इधर सूरत में माता-पिता इस शर्मींदगी में जीवन जीते रहे कि इतना कर्जा लौटाया कैसे जाएगा…।
कर्ज देने वाले चुन्नी भाई की खुद्दारी जानते थे इसलिए वो उनसे ज्यादा कुछ नहीं कहते थे, पर चुन्नी भाई को ये कर्ज अंदर ही अंदर खा रहा था। इसी बीच एक दिन उन्हें पता चला कि उनका बेटा पीयूष सालों बाद कनाडा से सूरत आया था लेकिन उनसे मिले बिना, हाल-चाल जाने बिना ही वापस लौट गया…। दोनों पति-पत्नी को ये बात सदमे की तरह लगी। उन्होंने किसी से कुछ कहा तो नहीं लेकिन मन में घुटते रहे। एक दिन दोनों ने निर्णय लिया कि जिस बच्चे के लिए उन्होंने अपना सब कुछ लुटा दिया, 40 लाख रुपए के कर्जे में आ गए, जब वही उन्हें नहीं पूछ रहा तो उन्हें अब आगे नहीं जीना।
बंद कमरे में दोनों 5 पन्नों का खत लिखा और फिर एक साथ मौत को गले लगा लिया। घटना के वक्त छोटा बेटा संजय बगल वाले कमरे में अपनी पत्नी के साथ सो रहा था, उसे इसके बारे में पता भी नहीं चला। बाद में जब नींद खुली तब तक माता-पिता जा चुके थे। उनके पास वो खत अब सुसाइड नोट बन चुका था जिसमें उन्होंने अपने दिन की सारी बात लिखी थी। उन्होंने अपनी बहू से भी सवाल किया था कि वो तो बहुत बड़े घर से शादी होकर उनके यहाँ आई थी, फिर उसकी परवरिश में ऐसी क्या कमी रह गई जो उसने भी उनके साथ ऐसा किया…।
उनका ये सुसाइड पत्र एक आईना है हर उस बच्चे के लिए जो अपने माता-पिता के प्रेम को भुलाकर अपनी दुनिया में खो गए हैं। वो भूल चुके हैं कि उनके माता-पिता ने उनके लिए अपनी जिंदगी खपा दी, तब जाकर वो इस काबिल बने कि समाज में अपनी पहचाने जा सकें, स्कूल-कॉलेज में उच्च शिक्षा ले सकें, विदेश जाकर पढ़ सकें और इस काबिल बन सकें कि अपना नया परिवार बनाकर उसका गुजर-बसर कर सकें… क्या इतने के बावजूद माता-पिता को भुलाया जाना उचित है, उनकी परवाह किए बिना अपनी दुनिया में रमना उचित है?