सूरत नगर निगम केवल तीन महीनों में वक्फ बोर्ड की दूसरी संपत्ति खो सकता है। इसके पीछे रिकॉर्ड को अपडेट करने में की गई लापरवाही बताई जा रही है। वक्फ बोर्ड को सूरत नगर निगम की जमीन पर बने अवैध मदरसे को गिराने पर रोक लगाने की अनुमति दे दी गई है। इसका कारण है जिला प्रशासन द्रारा कथित तौर पर समय पर रिकॉर्ड अपडेट नहीं करना।
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वार्ड नंबर 3 में सिटी सर्वे नंबर 4936 और 4939 में अनवर-ए-रब्बानी तालीम-उल-इस्लाम के नाम से एक मदरसा चल रहा है। लंबे समय से इस बात को लेकर विवाद है कि यह सूरत नगर निगम के स्वामित्व वाली भूमि पर अवैध रूप से बनाया गया है। इसलिए पहले इसे ध्वस्त करने के लिए जिला प्रशासन ने पुलिस बंदोबस्त की भी माँग की थी। हालाँकि वक्फ बोर्ड में रजिस्टर्ड मदरसे पर वक्फ व न्यासियों के बीच विवाद के चलते पुलिस बल की व्यवस्था नहीं की गई थी।
घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सूरत महानगरपालिका के प्रतिनिधियों ने सुनवाई के दौरान अदालत में पेश होने तक की जहमत नहीं उठाई। अंचल अधिकारी द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार 1969 से नगर सर्वेक्षण रिकॉर्डों में यह भूमि निजी सम्पत्ति थी जबकि पालिका टाउन प्लानिंग के अनुसार यह भूमि सरकार की थी। इसलिए, मध्य क्षेत्र ने उस समय उसे वापस करने के लिए कहा था और निगम ने टाउन प्लानिंग ऑफिस से निजी संपत्ति का अधिग्रहण किया था। हालाँकि यह रिकॉर्ड नगर निगम के रिकॉर्ड में अपडेट नहीं किया गया।
मामले को लेकर प्रशासन ने अब वक्फ बोर्ड से जवाब माँगा है और उन्हें जवाब देने के लिए 16-17 फरवरी तक का समय दिया है। विभाग ने कहा है कि मदरसे की पहली मंजिल अवैध है और स्थानीय कार्यकर्ताओं ने इसे ध्वस्त करने की माँग की है।
गौरतलब है कि 29 दिसंबर 2021 को अवैध मदरसे को ढाहने का नोटिस जारी किया गया था। हालाँकि, अब गुजरात राज्य वक्फ बोर्ड ने ट्रिब्यूनल कोर्ट का रुख किया है। इस पर यथास्थिति तब तक बनी रहेगी, जब तक सूरत नगर पालिका उस पर उचित प्रतिक्रिया नहीं देती। मदरसा पिछले 60 साल से यहाँ पर स्थित पर है। नगर पालिका अवैध रूप से बने मदरसे को तोड़कर उसके ऊपर पार्किंग स्थल बनाना चाहती है। सूरत नगर निगम के स्वामित्व वाली यह दूसरी संपत्ति है, जो केवल तीन महीनों में वक्फ बोर्ड से हार सकती है। वह भी रिकॉर्ड अपडेट करने में की गई लापरवाही की वजह से।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले नवंबर 2021 में सूरत नगर निगम मुख्यालय मुगलिसरा को वक्फ संपत्ति घोषित किया गया था। बोर्ड ने दावा किया था कि शाहजहाँ के मुगल शासन के दौरान, उनकी बेटी जहाँआरा बेगम सूरत की मालकिन थीं और उनके विश्वासपात्र इशाकबैल यज़्दी उर्फ हकीकत खान ने 1644 में इमारत का निर्माण किया था। इसका नाम हुमायूँ सराय रखा गया था। यह कथित तौर पर हज यात्रियों को आराम करने के लिए दान किया गया था।
वक्फ बोर्ड ने दावा किया था कि चूँकि संपत्ति एक मुस्लिम शासक द्वारा वक्फ संपत्ति के रूप में दान की गई थी, इसलिए उद्देश्य नहीं बदलता है और इसलिए कॉर्पोरेशन बिल्डिंग वक्फ बोर्ड का हिस्सा होगा। बोर्ड ने शरिया और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए दावा किया था कि ‘एक बार जो वक्फ की संपत्ति होगी, वह हमेशा के लिए वक्फ की ही संपत्ति रहेगी’।