पाकिस्तान के जुल्मों सितम से परेशान होकर भारत की शरण में आने वाला एक पाकिस्तानी हिन्दू परिवार दिल्ली में दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर है। इसी साल 14 मई को पाक से भागकर भारत आए गुलशेर अपने 3 बच्चों को तालीम दिलवाने के लिए यहाँ के स्कूल प्रशासन, क्षेत्र विधायक एवं वरिष्ठ अधिकारियों तक के पास जाकर मदद की गुहार लगा चुके हैं, किंतु उनकी फरियाद अब भी अनसुनी ही है। ताजा जानकारी के अनुसार थक हारकर उन्होंने अब दिल्ली के हाई कोर्ट का रुख किया है। इससे पहले उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट के वकील अशोक अग्रवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पूरे मामले से अवगत करवाते हुए पत्र लिख चुके हैं।
बता दें कि गुलशेर, दिल्ली के भाटी माइन्स में अपने तीनों बच्चों के साथ रहते हैं। यहाँ के एक सरकारी स्कूल ने उनके 3 बच्चों को कुछ समय पहले ये कह कर निकाल दिया कि वह उम्र में बड़े हैं। बच्चों के नाम मूना कुमारी (18 वर्ष), संजिना बाई (16 वर्ष), और रवि कुमार (17 वर्ष) है। इन्हें कक्षा नौवीं और दसवीं में दाखिला लेने की दरकार है, लेकिन स्कूल के मुताबिक तय उम्र से अधिक होने के कारण इन्हें एडमिशन नहीं दिया जा सकता। बच्चों के पास पाकिस्तान से स्कूल छोड़ने के प्रमाण-पत्र और एनरोलमेंट कार्ड भी हैं।
A Pakistani national who had legally migrated to India in May this year, has approached Delhi High Court seeking admission of his 3 siblings in a Delhi School. Petition contends that the Delhi Government had denied admission to his siblings due to upper age limit. pic.twitter.com/HTUNDU7lgJ
— ANI (@ANI) October 1, 2019
प्राप्त जानकारी के मुताबिक 14 मई 2019 को तीनों बच्चे अपने पिता के साथ पाकिस्तान से भारत आए थे। यहाँ इन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए 5 जुलाई को सफलतापूर्वक अपने नाम पंजीकृत करवाया और 8 जुलाई से इन बच्चों को क्लास अटेंड करने की भी अनुमति दे दी गई। लेकिन अचानक 14 सितंबर 2019 को बड़ी उम्र का हवाला देकर इन्हें स्कूल से निकाल दिया गया।
24 सितम्बर को ऑपइंडिया ने इस मामले पर विस्तृत रिपोर्ट की थी। जिसमें हमने बच्चों के पिता गुलशेर से बात करके जाना कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने पहले उनसे कहा कि बच्चों का दाखिला होगा। लेकिन, एक महीने बाद उम्र ज्यादा बताकर एडमिशन देने से मना कर दिया। बच्चों के पिता की मानें तो वे पाकिस्तान के स्कूल से मिले दस्तावेज भी यहाँ के स्कूल को दे चुके हैं और पूर्व में स्कूल द्वारा मिले आश्वाशन पर बच्चों को किताब-कॉपियाँ और ड्रेस-जूते सब दिलवा चुके हैं। अब सिर्फ घर में बैठे-बैठे उनके बच्चों का कीमती वक़्त बर्बाद हो रहा है। जिससे न केवल उनके बच्चे बल्कि वे खुद भी मानसिक रूप से प्रताड़ित हो रहे हैं।