ताज़ा भ्रष्टाचार सूचकांक को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री मोदी का ‘न खाऊँगा, न खाने दूँगा’ वाला वाक्य चरितार्थ हो रहा है। अगर हम मंगलवार (जनवरी 29, 2019) को आई रिपोर्ट से 2013 के डाटा की तुलना करें, तो पता चलता है कि भारत ने इस मामले में काफ़ी तरक्की की है। इस तुलनात्मक अध्ययन से पहले हाल के आँकड़ों पर नजर डाल कर देखते हैं कि विश्व के अन्य देशों में भारत का स्थान क्या है, और ऐसे कौन से देश हैं जो भ्रष्टाचार के मामले में भारत से आगे या पीछे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी ‘ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल (Transparency International)’ प्रत्येक वर्ष सभी देशों की एक सूची जारी करता है, जिस से यह पता चलता है कि किस देश में कितना भ्रष्टाचार है। इसके लिए सभी देशों को एक रेटिंग दी जाती है, जिसके घटने बढ़ने से पता चलता है कि भ्रष्टाचार कम हुआ है या बढ़ा है। जिस देश का स्कोर जितना ज्यादा होगा, वह उतना कम भ्रष्ट होगा। जिस देश का रैंक जितना नीचे होगा, वहाँ भ्रष्टाचार भी ज्यादा होगा।
अपने विश्लेषण में ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल (TI) ने 88 स्कोर के साथ डेनमार्क और 87 स्कोर के साथ न्यूज़ीलैंड को विश्व का सबसे कम भ्रष्ट देश पाया है। एशिया-पैसिफ़िक क्षेत्र में न्यूज़ीलैंड के बाद ऑस्ट्रेलिया आता है, जिसका स्कोर 85 है। TI ने कहा है कि ये दोनों लोकतान्त्रिक देश हैं और इन्होने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में सफलता पाई है लेकिन सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग जैसे अलोकतांत्रिक जैसे देश भी हैं, जिन्होंने भ्रष्टाचार को नियंत्रण में रखा है।
इस क्षेत्र में 41 ‘Corruption Perceptions Index (CPI)’ स्कोर के साथ भारत ने अपनी रेटिंग में पिछले वर्ष (2017) के मुक़ाबले सुधार किया है। उस वर्ष भारत का CPI स्कोर 40 था जिसमे 1 अंक का सुधार आया है। पहली नज़र में देखने पर भले ही यह मामूली लगे, लेकिन इस सिक्के के और भी पहलू हैं। 2013 में भारत का CPI स्कोर 36 था। यानी कि देश में जड़ तक फ़ैल चुके भ्रष्टाचार को कम करने के लिए देश एक बार एक एक सीढ़ी चढ़ रहा है। भारत में भ्रष्टाचार की स्थिति कैसी थी, इसका अंदाज़ा 2011 में अन्ना हजारे के आंदोलन की व्यापकता के पैमाने से मापा जा सकता है। 2013 में 94वें रैंक से भारत अब 78वें रैंक पर पहुँच गया है- यानी 16 स्थानों की छलांग।
ताज़ा रिपोर्ट में TI ने भारत के बारे में चर्चा करते हुए में कहा है:
“जैसे कि भारत अब आगामी लोकसभा चुनाव के लिए तैयार हो रहा है, इसके CPI स्कोर में महत्वपूर्ण सुधार आया है, जो 40 से बढ़ कर 41 हो गया। 2011 में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ सार्वजनिक आंदोलन (अन्ना हजारे अनशन) के बावज़ूद, जहाँ जनता ने सरकार से माँग की कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाए और विस्तृत जान-लोकपाल एक्ट को लागू करे, ये आंदोलन ख़त्म हो गए और इनका कोई ख़ास असर नहीं हुआ। ज़मीनी स्तर पर भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए कुछ भी इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार नहीं किया गया।”
TI ने भारत को ‘Countries to Watch’ की सूची में रखा है। इसका अर्थ है कि संस्था को उम्मीद है कि जिस तरह से साल दर साल भारत की रैंकिंग और सूचकांक में सुधार आते जा रहे हैं, उस से आगे बेहतर परिणाम आने की उम्मीद है। वहीं अगर 2013 की बात करें तो, उस दौरान अपने रिपोर्ट ने केंद्र स्तर पर नित नए भ्रष्टाचार के ख़ुलासों को भारत के ख़राब प्रदर्शन का कारण बताया था। TI ने 2013 में कहा था:
“भारत का ख़राब CPI स्कोर एक विडम्बनापूर्ण स्थिति का परिचायक है- यहाँ भ्रष्टाचार ने विकास को बाधित कर रखा है। पिछले दो वर्ष में देश को हिला कर रख देने वाले बड़े पैमाने पर लगातार हो रहे भ्रष्टाचार से प्रभावी रूप में निपटने में असमर्थता- यह सब अभी भी कायम है।”
अगर हम TI के दोनों बयानों की तुलना करें तो पता चलता है कि हमारे देश ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर काफ़ी तरक़्क़ी की है। जहाँ उस समय अंतरराष्ट्रीय एजेंसियाँ बड़े पैमाने पर हो रहे भ्रष्टाचार की बात करती थी, अब भारत को पॉजिटिव नजरों से देखते हुए ऐसे देशों की सूची में रखती है, जिनका प्रदर्शन बेहतर होने की उम्मीद है। जहाँ उस समय बात होती थी कि भ्रष्टाचार ने विकास को बाधित कर रखा है, अब एजेंसी भारत के प्रदर्शन को ‘महत्वपूर्ण सुधार’ बताती है। उस समय एजेंसी भारत को भ्रष्टाचार से निपटने में असमर्थ बताती थी।
अगर भारत के पड़ोसी देशों की बात करें तो एशिया-पैसिफ़िक क्षेत्र में अफ़ग़ानिस्तान उत्तर कोरिया के बाद सबसे भ्रष्ट देश है। CPI स्कोर 33 के साथ पकिस्तान भारत से ख़ासा पीछे है और बांग्लादेश 26 CPI स्कोर के साथ सबसे भ्रष्ट देशों की सूची में शामिल है। चीन का रैंक 87 है तो पकिस्तान 117वें स्थान पर है। दोनों ही देश भारत से पीछे हैं। यह दिखाता है कि एशिया-पैसिफ़िक क्षेत्र में भारत अपने पड़ोसी देशों के मुक़ाबले बेहतर प्रदर्शन कर रहा है।