राजस्थान की राजधानी जयपुर में पूर्व राजघराने की संपत्ति पर कब्जा करने का एक प्रकरण सामने आया है। महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय म्यूजियम ट्रस्ट सिटी पैलेस के प्रशासक प्रमोद यादव ने नगाड़ा बजाने वाले एक पूर्व कर्मचारी के खिलाफ माणक चौक थाने में शिकायत दर्ज करवाई है।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक शिकायत में कहा गया है कि जलेबी चौक स्थित सिरहड्योढ़ी दरवाजे पर गणेशजी की मूर्तियों की स्थापना शुरू से ही है। वहाँ पूजा होती है और रियासत काल से नगाड़ा बजता रहा है। म्यूजियम ट्रस्ट ने भी पुरानी परिपाटी के अनुसार नगाड़ा बजाने के लिए अब्दुल सलाम को नौकरी पर रखा था, जो साल 2018 में रिटायर हुआ। इसके बाद नगाड़ा बजाने के लिए नए लोग रख लिए गए पर सलाम का परिवार अब तक इस प्रॉपर्टी पर डटा हुआ है।
ट्रस्ट के प्रशासक के अनुसार रिटायरमेंट के बाद अब्दुल को सभी लाभ दिए गए थे। लेकिन उसने कब्जा नहीं छोड़ा। उनके अनुसार अब्दुल को यह सम्पत्ति सेवा में रहने के दौरान उपयोग के लिए दी गई थी। लेकिन अपने भाई इस्लाम खाँ और अम्मी मुन्नी बेगम से मिलीभगत कर जाली दस्तावेज तैयार कर संपत्ति पर खुद का कब्जा दिखा बिजली-पानी के कनेक्शन ले लिए।
प्रॉपर्टी पर कब्जे की बात जब ट्रस्ट के संज्ञान में आई तो उन्होंने अब्दुल को संपत्ति से अपना कब्जा खाली करने को कहा। अब्दुल ने कागज और बिजली-पानी का कनेक्शन दिखा जगह छोड़ने से इनकार कर दिया। साथ ही म्यूजियम की संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बताने लगा और धार्मिक भावनाएँ भड़काने की भी कोशिश की।
रिपोर्ट्स के अनुसार, जलेबी चौक एवं उससे सटी सारा सम्पत्ति (जिसमें सिरहड्योढ़ी दरवाजा भी आता है) केंद्र सरकार और महाराजा मान सिंह के बीच में निष्पादित कोविनेंट (प्रसंविदा) के अनुसार संपादित महाराजा सवाई मानसिंह के स्वामित्व एवं कब्जे की व्यक्तिगत सम्पत्ति थी। हालाँकि, महाराजा सवाई मानसिंह के स्वर्गवास के बाद महाराजा सवाई भवानी सिंह सिटी पैलेस एरिया की सम्पत्ति एवं जलेबी चौक की सम्पत्ति 1972 के प्रन्यास के जरिए महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय म्यूजियम ट्रस्ट में निहित कर दी गई और उसके बाद से इसकी देखरेख ट्रस्ट के हाथ में है। इस प्रॉपर्टी को लेकर नगर निगम, राज्य सरकार और महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय म्यूजियम ट्रस्ट के बीच एक केस भी चल रहा है जिस पर स्टे है।
इस संबंध में ऑपइंडिया ने माणकचौक थाने और ट्रस्ट के प्रशासक से बात करने की कोशिश की, लेकिन संपर्क नहीं हो पाया। दैनिक भास्कर ने माणकचौक थाने के एसएचओ सुरेंद्र यादव के हवाले से बताया है कि पुलिस ने दोनों पक्षों से रिकॉर्ड माँगा है। अब्दुल इस जमीन पर पुराने समय से अपना कब्जा बता रहा है।
राजमहल में चलता मिला था मदरसा
उल्लेखनीय है कि इससे पहले मध्य प्रदेश स्थित विदिशा जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर प्राचीन उदयपुर नगर में तकरीबन एक हजार साल पुराने परमार वंश के राजमहल पर मदरसा चलते हुए पाया गया था। राजमहल पर मदरसा चलाने वालों ने वहाँ निजी संपत्ति का बोर्ड लगाया हुआ था। काजी ने सफाई में कहा था कि यह एक हजार साल पुराना ना होकर चार सौ साल पुराना है, जिसका निर्माण उनके पूर्वजों द्वारा पूरा कराया गया था। काजी के अनुसार, जहाँगीर और शाहजहाँ ने उनके परिवार के नाम यह संपत्ति कर डाली थी। इस विषय के सोशल मीडिया पर उछलने के बाद वहाँ के तहसीलदार स्वयं इस महल में पहुँचे थे और उन्होंने एक्शन लेते हुए महल से इस बोर्ड को भी हटा दिया था, जिसमें इसे काजी की निजी सम्पत्ति बताया गया था।