एक इस्लामिक संगठन है जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema-E Hind)। इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष है- मौलाना सैयद अरशद मदनी। आतंकवाद से जुड़ा कोई भी मामला हो यह कट्टरपंथी संगठन उसमें कूद ही जाता है। इसका ताजा नमूना है 2008 का अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट।
विशेष अदालत ने 18 फरवरी 2022 को अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट मामले में 38 आतंकियों को फाँसी और 11 को आजीवन कारवास की सजा सुनाई। इस फैसले के बाद आतंकियों के बचाव में खड़ा होने में जमीयत ने देर नहीं की। मदनी ने इस फैसले को ‘अविश्वसनीय’ बताते हुए कहा कि इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। जरूरत हुई तो सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी जाएगी।
यह पहला मौका नहीं है जब जमीयत आतंकियों या आतंकवाद के आरोपितों के बचाव में खड़ा हुआ है। करीब दशक भर से वह लगातार आतंकवाद के उन मामलों में कानूनी सहायता मुहैया कराता रहा है, जिसमें मुस्लिम आरोपित रहे हैं। इसके बचाव में सफाई देते हुए इस्लामी संगठन कहता है कि वह उन ‘बेगुनाह मुस्लिमों’ को कानूनी सहायता मुहैया कराता है, जिन्हें फर्जी तरीके से फँसाया जाता है। जमीयत के लीगल सेल की स्थापना मदनी ने 2007 में की थी। इसके जरिए ही आतंकवाद के आरोपितों के मामले जमीयत देखता है और वकील मुहैया कराता है।
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 2007 से लेकर अब तक इस्लामिक संगठन ऐसे करीब 700 आरोपितों की मदद कर चुका है। इससे भी चिंताजनक पहलू यह है कि वह आतंकवाद के 192 आरोपितों को बरी करा चुका है। इनमें से ज्यादातर बरी इसलिए नहीं हुए क्योंकि वे बेगुनाह थे। अधिकतर आरोपित तकनीकी पहलुओं या सबूत की कमी या पुलिस की कमजोर जाँच की वजह से बरी किए गए।
7/11 मुंबई ट्रेन विस्फोट, 2006 मालेगाँव विस्फोट और औरंगाबाद आर्म्स जैसे कई मामलों में कानूनी सेवाएँ जमीयत ने ही मुहैया कराई है। इतना ही नहीं 26/11 के मुंबई आतंकी हमले, 2011 का मुंबई ट्रिपल ब्लास्ट केस, मुलुंड ब्लास्ट केस, गेटवे ऑफ इंडिया ब्लास्ट में भी आरोपितों के बचाव में जमीयत उतरा था।
अल-कायदा, लश्कर-ए-तैयबा और ISIS तक का किया है बचाव
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की वेबसाइट को देखें तो वहाँ पर उन आतंकी मामलों का जिक्र मिलता है, जिनमें वह आरोपित मुस्लिमों का बचाव कर रहा है। पुणे के जर्मन बेकरी बम ब्लास्ट के मामले में आरोपित रहे हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी मिर्जा हिमायत बेग को 2013 में जमीयत ने मुफ्त में कानूनी मदद दी थी। इसी तरह से कई और मामले हैं जिनमें जमीयत ने आतंकियों को कानूनी सहायता दी। मसलन;
- लश्कर कनेक्शन मामला (अब्दुल रहमान बनाम राज्य एसएलपी)
- कोच्चि का ISIS साजिश केस (केरल राज्य बनाम अर्शी कुरैशी और अन्य)
- ISIS साजिश मामला मुंबई (अर्शी कुरैशी और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य)
- ISIS साजिश का मामला (राजस्थान राज्य बनाम सिराजुद्दीन)
- 26/11 मुंबई हमला केस (सैयद ज़बीउद्दीन बनाम महाराष्ट्र राज्य)
- चिन्नास्वामी स्टेडियम बम विस्फोट केस (राज्य बनाम कातिल सिद्दीकी और अन्य)
- जंगली महाराज रोड पुणे बम विस्फोट मामला (एटीएस बनाम असद खान और अन्य)
- इंडियन मुजाहिदीन केस (महाराष्ट्र बनाम अफजल उस्मानी और अन्य)
- जावेरी बाजार सीरियल ब्लास्ट (राज्य बनाम अजाज शेख और अन्य)
- सिमी साजिश केस (मध्य प्रदेश राज्य बनाम इरफान मुचले और अन्य)
- जामा मस्जिद ब्लास्ट केस (दिल्ली स्टेट बनाम कतील सिद्दीकी व अन्य)
- इंडियन मुजाहिदीन साजिश केस (राज्य बनाम यासीन भटकल और अन्य)
- अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट केस 2008 (राज्य बनाम जाहिद और अन्य)
कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने न केवल आतंक के आरोपितों की सहायता की है, बल्कि हिंदू नेता कमलेश तिवारी के हत्यारों को भी लीगल और फाइनैंशियल सपोर्ट दिया था। जमीयत ने कमलेश तिवारी की हत्या करने के पाँचों आरोपितों के लिए कानूनी लड़ाई में हर तरह सहायता करने की बात कही थी। इसके साथ ही संगठन ने पिछले साल ही यूपी में अलकायदा के आतंकियों का बचाव करने के लिए अपने वकीलों को लगाने का ऐलान किया था। उसने कहा था कि वो दो संदिग्ध आतंकियों को सभी तरह की कानूनी मदद देगा। अब एक बार फिर से यह संगठन 56 निर्दोष नागरिकों की हत्या करने और 21 बम विस्फोट करने की साजिश रचने वाले 49 आतंकियों के समर्थन के लिए आगे आया है।
बहरहाल जमीयत को किसी का भी बचाव करने का अधिकार है, अगर उसे लगता है कि इन्हें गलत तरीके से फँसाया जा रहा है। लेकिन इसका एक पक्ष यह भी है यह इस्लामी कट्टरपंथियों को यह संदेश भी देता है कि हर हाल में जमीयत उनके साथ खड़ा रहेगा। यह संदेश मजहबी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करने जैसा है।