मद्रास हाईकोर्ट ने मंदिर के रास्ते में मुस्लिमों द्वारा नमाज पढ़ने पर प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया। हिंदू पक्ष द्वारा दायर याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि 30 मिनट के लिए नमाज पढ़ने से कोई नुकसान नहीं है और ना ही इससे किसी व्यक्ति पर कोई असर पड़ेगा।
मदुरै जिले के थिरुप्पारनकुंद्रम में स्थित काशी विश्वंथर मंदिर की ओर जाने वाले नेल्लीथोपु (रास्ते) में मुस्लिम पक्ष नमाज पढ़ता है। इसको लेकर हिंदू पक्ष ने याचिका दायर की थी। इस पर जस्टिस आर सुब्रमण्यम और जस्टिस एल विक्टोरिया गौरी की पीठ ने रोक लगाने से इनकार कर दिया।
रिपोर्ट के मुताबिक, मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने बुधवार (28 जून 2023) को इस पर सुनवाई करते हुए तमिलनाडु सरकार की हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग को अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। इसके लिए कोर्ट ने चार सप्ताह का समय दिया है।
कोर्ट में याचिका अघिला भारत हनुमान सेना की ओर से दायर की गई थी। याचिका में संगठन के राज्य सचिव रामलिंगम ने कहा कि जो भक्त थिरुप्परकुंड्रम के शीर्ष पर स्थित काशी विश्वंथर मंदिर में प्रार्थना करने जाते थे, वे नेल्लीथोपु स्थान पर आराम करते थे और अपना भोजन करते थे।
अपनी याचिका में उन्होंने कहा कि इसी बीच सिकंदर बदुशा दरगाह के जमात सदस्यों ने नेल्लीथोपु स्थान पर नमाज अदा करना शुरू कर दिया। उन्होंने आगे कहा कि जमात के सदस्य आमतौर पर पल्लीवासल (मस्जिद) में नमाज करते हैं। इस प्रकार की घटना पहले कभी नहीं हुई है।
रामलिंगम ने कहा कि सिकंदर बदुशा दरगाह भी थिरुप्पाराकुंड्रम पर्वत पर स्थित है और नमाज करने के लिए पास में ही दूसरी जगह खाली जमीन उपलब्ध थी। इसके बावजूद उन्होंने नेल्लीथोपु को ही नमाज के चुना। जमात के सदस्य लोगों के बीच भय उत्पन्न कर रहे हैं। साथ ही कचरा आदि फेंक कर मार्ग को भी प्रदूषित कर रहे हैं।
याचिका में आगे कहा गया है कि जमात के सदस्य दावा कर रहे हैं कि थिरुप्परकुंड्रम अरुलमिघु सुब्रमण्यम स्वामी थिरुकोइल पर्वत को ‘सिकंदर पर्वत’ के रूप में जाना जाता था। इस तरह वे भूमि पर अतिक्रमण करने और कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। हालाँकि अदालत ने इस पर किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई।
काशी विश्वंथर मंदिर जिस थिरुप्पाराकुंड्रम पर्वत पर स्थित है, उसी पर्वत पर स्थित दरगाह में कथित इस्लामी संत सुल्तान सिकंदर बदुशाह शहीद की कब्र है। इनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने 12वीं शताब्दी के दौरान मदुरै का दौरा किया था।