बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार (मई 19, 2021) को डॉक्टरों की सुरक्षा के मद्देनजर कोई कदम न उठाने पर महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार को देखकर ऐसा नहीं लग रहा है कि वह डॉक्टरों पर होने वाले हमलों को रोकने के संबंध में गभीर हैं।
कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश दिपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की पीठ ने राज्य स्वास्थ्य विभाग के उप सचिव द्वारा दायर हलफनामे का जिक्र करते हुए अपनी टिप्पणी की। इस हलफनामे को 13 मई को जारी एक आदेश के मद्देनजर दायर किया गया था।
पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए थे कि वो इस बात की जानकारी दें कि डॉक्टरों पर या अस्पताल स्टाफ पर हमले की कितनी घटनाएँ दर्ज हैं और उन्हें प्रोटेक्ट करने के लिए क्या कदम उठाए गए।
इसी आदेश के मद्देनजर हलफनामे में स्वास्थ्य विभाग ने ये तो बता दिया कि पूरे राज्य भर में डॉक्टरों पर हमले के 436 केस दर्ज हुए लेकिन इनकी तारीख या फिर इनसे जुड़ी अतिरिक्त जानकारी बताने में असफल रहे।
पीठ ने एक पन्ने का हलफनामा देखकर हैरानी जताते हुए कहा कि इसमें उच्च न्यायालय द्वारा अपने पहले के आदेश में पूछे गए किसी भी प्रश्न का जवाब नहीं है। पीठ ने कहा, “ये हैरानी की बात है कि एक पन्ने का हलफनामा दायर किया गया। अगली बार से हम ऐसे हलफनामे नहीं स्वीकारेंगे जब तक कि सरकारी वकील द्वारा इसकी जाँच नहीं की जाती।”
कोर्ट ने कहा, “हम केवल एक ही शब्द उपयोग कर सकते हैं वह दयनीय है। यह बिल्कुल बेहूदा है। राज्य अपने डॉक्टरों की सुरक्षा को लेकर बिल्कुल भी गंभीर नहीं है। फिर भी, जनता उम्मीद करती है कि डॉक्टर अपना सब कुछ देंगे।”
सुनवाई के दौरान पीठ ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग के उप सचिव को अगले सप्ताह तक अतिरिक्त हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने ये भी बताया कि उन्हें हलफनामे में क्या-क्या चाहिए। कोर्ट ने कहा कि हलफनामे में याचिकाकर्ताओं द्वारा पिछले सप्ताह इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने और डॉक्टरों व चिकित्सा कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए दिए गए विभिन्न सुझावों पर राज्य की प्रतिक्रिया भी शामिल होनी चाहिए।
बता दें कि इस संबंध में जनहित याचिका डॉ राजीव जोशी द्वारा दायर की गई थी। उन्होंने स्वास्थ्यकर्मियों पर होने वाले हमलों में रोकथाम के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की माँग की थी। याचिका में बताया गया था कि महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा ऐसी घटनाएँ हुई और महाराष्ट्र सरकार ऐसे हमलों को रोकने के लिए बने बनाए कानूनी प्रावधान भी लागू नहीं कर पाई। अब मामले की सुनवाई 27 मई को होगी।