मैरिटल रेप को अपराधिक बनाने के लिए आज (11 मई 2022) दिल्ली हाईकोर्ट से फैसला आने वाला था, लेकिन न्यायधीशों के अलग-अलग मत होने की वजह से ऐसा नहीं संभव हो पाया। जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस हरिशंकर ने इस मुद्दे पर अलग-अलग राय दीं। अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में जा सकता है।
मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश राजीव शकधर ने कहा– “ये IPC की धारा 375 और आर्टिकल 14 का उल्लंघन है। इसलिए पत्नी से जबरन संबंध बनाने पर पति को सजा दी जानी चाहिए।” वहीं जस्टिस सी हरिशंकर ने इस मुद्दे पर कहा वो राजीव शकधर से सहमत नहीं है और नहीं मानते हैं कि ये अपवाद असंवैधानिक है।
बता दें कि दोनों जजों की राय अलग-अलग होने के कारण इस विवाद पर कोई फैसला नहीं आ सका। अब आगे याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट में अपील डाल सकते हैं।
Delhi HC delivers split verdict on criminalisation of marital rape
— ANI Digital (@ani_digital) May 11, 2022
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मैरिटल रेप को लेकर माँग
मैरिटल रेप को आपराधिक घोषित किए जाने के लिए 2015 से आवाज उठती रहीं। माँग की गई कि मैरिटल रेप को आपराधिक घोषित करने के लिए धारा 375 के उस अपवाद को खत्म किया जाए, जो कहता है कि अगर पत्नी 15 साल से ऊपर है तो मैरिटल रेप अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा।
दिल्ली कोर्ट ने ऐसी याचिकाओं पर गौर करते हुए इसी वर्ष की शुरुआत में आरआईटी फांउडेशन और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेन्स एसोसिएशन की याचिकाओं पर संज्ञान लिया था। कोर्ट ने कहा था कि आखिर विवाहित महिलाओं को अपने पति को न कहने के अधिकार से कैसे वंचित रखा जा सकता है जबकि अन्य सभी गैर-सहमति वाले मामले में रेप का केस दर्ज हो सकता है।
सुनवाई के दौरान भी नहीं मिला था जजों का मत
केस की सुनवाई के शुरुआत में ही जस्टिस राजीव शकधर ने इस दलील को माना था कि एक वेश्या को भी हक होता है कि वो अपने ग्राहक को मना करे तो आखिर महिला जो कि पत्नी है उसे पति को मना करने के अधिकार से कैसे दूर किया जा सकता है। जबकि जस्टिस सी हरि शंकर ने एक वेश्या और ग्राहक के रिश्ते की तुलना पति-पत्नी के रिश्ते से करने पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा था कि ग्राहक की जो उम्मीद सेक्स वर्कर से होती है उसे वैवाहिक रिश्ते के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। अगर आप ऐसा करते हैं तो ये आप बहुत गलत है। इस मामले पर सुनवाई पूरी होने के बाद 21 फरवरी को फैसला पीठ ने सुरक्षित रखा था।