इस बार पद्म पुरस्कार पाने वालों में एक नाम कर्नाटक की ट्रांसवुमन (Transwoman) कलाकार मजम्मा जोगाठी का भी है, जिन्होंने पद्मश्री प्राप्त करते समय राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को अपने अंदाज़ में नजर उतारी। उन्होंने पुरस्कार लेने से पहले अपनी साड़ी की आँचल को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के सिर पर रखा और फिर दोनों हाथों से भूमि को छुआ। वहाँ उपस्थित लोगों ने मुस्करा कर और तालियाँ बजा कर उनका स्वागत किया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी उन्हें हाथ जोड़ कर नमस्कार किया।
ट्रांसवुमन मजम्मा जोगाठी (Matha B Manjamma Jogati) के बारे में बता दें कि वो जोगम्मा विरासत की देशी नृत्यांगना हैं। ‘कर्नाटक जनपद अकादमी’ के अध्यक्ष के पद पर पहुँचने वाली वो पहली ट्रांसवुमन हैं। अपने जावें में उन्होंने लोगों के घृणा का सामना करने से लेकर और फिर इस ऊँचाई तक का सफर काफी संघर्षों के बाद पूरा किया है। उनका मानना है कि मानव तो मानव होता है, कोई कम या अधिक मानव नहीं होता। कला के बारे में भी उनकी यही सोच है।
वो कहती हैं कि कई लोगों के लिए तो कला ही ज़िंदगी है। उन्होंने जाति, वंश, समुदाय और लिंग के बंधनों को तोड़ कर ये ऊँचाई हासिल की है। इसके साथ ही वो धर्म की मशाल को भी हमेशा जलाए रखती हैं। उनका जन्म ‘मंजुनाथ शेट्टी’ के रूप में हुआ था, लेकिन ‘महिला’ बनने के कारण उनके माता-पिता ने भी उन्हें घर से निकाल दिया था। वो गलियों पर कई वर्षों तक भटकती रहीं। कइयों ने उनका बलात्कार किया। भीख माँग कर गुजारा करना पड़ा और आत्महत्या तक के प्रयास किए।
अब वो एक सफल नृत्यांगना हैं। वो ‘येलम्मा’ की भक्ति हैं। उनकी प्रतिमा को सिर पर रख कर नृत्य करती हैं। ‘कर्नाटक जनपद अकादमी’ की स्थापना 1979 में हुई थी। 64 वर्षीय मजम्मा जोगाठी पहले इसकी सदस्य हुआ करती थीं। उन्होंने बताया कि जब वो पहली बार अकादमी की कुर्सी पर 2019 में बैठी थीं, तब उनके हाथ काँप रहे थे। उन्होंने सपने में भी इसके बारे में नहीं सोचा था। वो बचपन से ही महिला बनना चाहती थी और तौलिए को स्कर्ट जैसे पहन लेती थीं।
#WATCH | Transgender folk dancer of Jogamma heritage and the first transwoman President of Karnataka Janapada Academy, Matha B Manjamma Jogati receives the Padma Shri award from President Ram Nath Kovind. pic.twitter.com/SNzp9aFkre
— ANI (@ANI) November 9, 2021
स्कूल में भी वो लड़कियों के साथ ही घूमने-फिरना और नृत्य करना पसंद करती थीं। उनके भाई ने समझा कि उनके अंदर कोई ‘देवी’ घुस गई है और उन्हें एक खंभे से बाँध कर पीटा गया। एक पुजारी ने बाद में कहा था कि उन पर ‘देवी शक्ति’ का आशीर्वाद है। उनके पिता ने कह दिया कि वो उनके लिए मर चुकी हैं। 1975 में उन्हें होस्पेट के नजदीक हुलीगेयममा मंदिर ले जाया गया, जहाँ उनका नया नामकरण हुआ। उनकी माँ उन्हें महिला के कपड़ों में देख कर रोते हुए कह रही थीं कि उन्होंने अपना बेटा खो दिया।
उनके माता-पिता उन्हें घर नहीं ले गए। वो भीख माँगने लगीं। कई दिन बीमारी के कारण अस्पताल में रहीं। एक बार 6 लोगों ने मिल कर उनके रुपए लूट लिए और उनका बलात्कार किया। आत्महत्या का विचार आया, लेकिन तभी उन्होंने एक पिता-पुत्र को सिर पर बर्तन रख कर नृत्य करते देखा। ये ‘जोगती नृत्य’ था। इसके बाद वो इसे सीखने लगीं और पारंगत हो गईं। थिएटरों में उन्हें प्रदर्शन के मौके मिले। 2010 में उन्हें ‘कर्नाटक राज्योत्सव अवॉर्ड’ मिला और हावेरी के ‘कर्नाटक फोक यूनिवर्सिटी’ के BA में उनकी जीवनी पढ़ाई जाती है।