मुंबई की घाटकोपर पुलिस ने एक नाबालिग लड़की के बलात्कार के आरोपित अख्तर शेख के नाम को एफआईआर में शामिल करने से नकार दिया। चूँकि, पीड़िता दलित समुदाय से आने वाली एक नाबालिग थी फिर भी घाटकोपर पुलिस ने मामले को पोस्को एक्ट या फिर एससी/एसटी एक्ट से जोड़ना उचित नहीं समझा। इतना ही नहीं, मामले की जाँच को एक सब-इंस्पेक्टर को सौंप दिया गया। जबकि कानून में स्पष्ट है कि इस तरह के मामलों को केवल डीएसपी और एसीपी स्तर के अफसरों द्वारा ही संभाला जाएगा। इसके अलावा पीड़ित पक्ष के बयान को धारा 164 के तहत दर्ज नहीं करना इस संवेदनशील मामले को संभालने में मुंबई पुलिस द्वारा की गई लापारवाहियों का एक उदाहरण है। जिसके मद्देनजर आयोग ने मुंबई पुलिस आयुक्त से मामले में जवाब माँगा है।
स्वराज में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक कुछ दिन पहले एक नाबालिग के लापता होने की खबर आई थी। जिसमें लड़की के रात भर घर न लौटने के कारण उसके माता-पिता ने अगली सुबह पुलिस में एफआईआर कराई, जिसे पुलिस ने दर्ज तो किया लेकिन मामले के पहले ही स्तर पर उसमें गड़बड़ी कर दी।
पहले तो पुलिस ने अख्तर शेख नामक आरोपित का नाम एफआईआर में दर्ज ही नहीं किया, जबकि लड़की की माँ बार-बार अपने बयान में उसे लेकर संदेह जता रही थी। माँ के बयान को एफआईआर में बड़े ही साधारण तरीके से दर्ज किया गया कि उनकी 17 साल की बेटी एक अज्ञात व्यक्ति के साथ बिना अपनी मर्जी के कही चली गई है। इसके अलावा पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने के दौरान पोस्को (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्डरन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेस) एक्ट को भी मामले से नहीं जोड़ा। इस मामले में लड़की 4 दिन तक घर से गायब रही।
लड़की की माँ की मानें तो जिस पुलिस अफसर ने उनका केस लिया वो उन पर चिल्लाई और उसने भी शेख का नाम एफआईआर में लिखना जरूरी नहीं समझा। मामले के तूल पकड़ने पर सब इंस्पेक्टर शीतल कनाडेडकर को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) के रोष का सामना करना पड़ रहा है।
19 मार्च को पीड़िता के मिलने के बाद उसे किशोर गृह में भेज दिया गया है। जहाँ पर वो तब से अब तक रह रही है। पीड़िता की माँ की मानें तो उनकी बेटी धीरे-धीरे सभी जानकारी दे रही है। लड़की ने बताया है कि अख्तर शेख ने उसे पहले एक दरगाह में रात भर रखा और फिर तीन दिनों के लिए एक दोस्त के घर पर रखा।
पीड़िता की माँ ने बताया कि लड़की के मिल जाने के बाद जब वो आगे की जाँच की माँग के लिए सब-इंस्पेक्टर शीतल के पास गए तो उसने उन्हें दुतकार दिया। साथ ही पीड़ित पक्ष से यह भी कहा कि मामले को हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा बनाकर सामप्रदायिक बनाना चाहते हैं।
बता दें कि अख्तर शेख को घटना के 10 दिन बाद यानी 28 मार्च को गिरफ्तार किया गया और जल्द ही जमानत पर रिहा भी कर दिया गया।
घाटकोपर की इस खबर को किसी भी मीडिया हाउस द्वारा नहीं उठाया गया। इस मामले के सामने आने के पीछे राकेश पाटिल नाम का एक शख्स है जिसने इस मामले पर ट्विटर पर शृँखला लिखी। जिसके आधार पर इस खबर के बारे में जानकारी प्राप्त होती रही।
A Hindu minor girl was kidnapped by Akhtar Shaikh on 15th March from Ghatkopar, Mumbai. Girl’s family is extremely poor with Father doing some menial job and Mother working as housemaid. (1/n)
— Rakesh Patil (@PatilRakesh85) April 14, 2019
गौरतलब है कि अग्निवीर नाम के एक अधिकार संरक्षण संगठन ने इस मामले पर ध्यान दिया और इसे एनसीएससी को भेज दिया। 15 अप्रैल को, आयोग ने मामले की अनदेखी के लिए मुंबई पुलिस को एक पत्र भेजा। इसके अलावा सीताराम जुवतकर नाम के एक स्थानीय कार्यकर्ता ने स्वराज्य को बताया कि जब उन्हें इस मामले का पता चला, तो वह 2 अप्रैल को लड़की की माँ के साथ पुलिस के पास गए, जिसमें प्राथमिकी में POCSO को शामिल करने के लिए कहा गया। लेकिन उनकी मानें तो तब भी शीतल ने इस पर काम करने की जगह उसे साफ़ मना कर दिया। उन्होंने कहा कि हमें अब इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए कि लड़की मिल गई है।
बताते चलें कि यह पहली बार नहीं है कि जब ऐसे पक्षपातपूर्ण मामले सामने आए हैं, जहाँ पुलिस ने नाबालिग लड़कियों के अपहरण के मामलों में ऐसी लापरवाही दिखाई हो, खासकर जब आरोपित समुदाय विशेष से है।