मद्रास हाई कोर्ट ने एक अहम मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि मुस्लिम पुलिसकर्मियों को भी दाढ़ी रखने की अनुमति है। मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि पुलिस वाले सलीके से कटी हुई, साफ-सुथरी छोटी दाढ़ी रख सकते हैं, इसके लिए उन पर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। मद्रास हाई कोर्ट ने 1957 के मद्रास पुलिस राजपत्र का भी हवाला दिया।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, मद्रास हाई कोर्ट की जस्टिस एल विक्टोरिया गौरी ने 5 जून 2024 के अपने आदेश में कहा है कि भारत विविध धर्मों और रीति-रिवाजों का देश है और पुलिस विभाग अपने मुस्लिम कर्मचारियों को उनकी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दाढ़ी रखने के लिए दंडित नहीं कर सकता।
मद्रास हाई कोर्ट ने अपने आधेश में कहा, “मद्रास पुलिस राजपत्र के मानदंड इस तथ्य पर प्रकाश डालते हैं कि मुस्लिमों को ड्यूटी के दौरान भी साफ-सुथरी दाढ़ी रखने की अनुमति है। भारत विविध धर्मों और रीति-रिवाजों का देश है, इस भूमि की सुंदरता और विशिष्टता नागरिकों की मान्यताओं और संस्कृति की विविधता में निहित है। तमिलनाडु सरकार के पुलिस विभाग के लिए सख्त अनुशासन की आवश्यकता है, लेकिन विभाग में अनुशासन बनाए रखने का कर्तव्य प्रतिवादियों को अल्पसंख्यक समुदायों, विशेष रूप से मुस्लिम कर्मचारियों को दाढ़ी रखने के लिए दंडित करने की अनुमति नहीं देता है, जो वे पैगंबर मोहम्मद की आज्ञाओं का पालन करते हुए अपने पूरे जीवन में करते(धार्मिक कार्य) हैं।”
यह आदेश एक पुलिस कॉन्स्टेबल की याचिका पर पारित किया गया था, जो मक्का से लौटने के बाद बढ़ी हुई दाढ़ी में अपने वरिष्ठ अधिकारी से मिला था। साल 2018 में कॉन्स्टेबल 31 दिनों की छुट्टी लेकर मक्का की यात्रा यानी हज यात्रा पर गया था, वहाँ से लौटने के बाद उसके पैरों में संक्रमण हो गया था और उसने छुट्टी बढ़ाने की माँग को लेकर वरिष्ठ अधिकारी से मुलाकात की थी। लेकिन असिस्टेंट कमिश्नर रैंक के अधिकारी ने छुट्टी से बढ़ाने से इन्कार कर दिया, साथ ही बढ़ी हुई दाढ़ी को लेकर सफाई माँगी थी।
साल 2019 में डीसीपी ने कॉन्स्टेबल से औपचारिक तौर पर स्पष्टीकरण माँगा, जिसमें मद्रास पुलिस नियमावली के उल्लंघन की बात कही गई थी। इसके बाद कॉन्स्टेबल के खिलाफ 2 आरोप तय किए गए। पहला-दाढ़ी बढ़ाने और दूसरा-31 दिन की छुट्टी के बाद ड्यूटी पर आने की जगह 20 दिन की अतिरिक्त छुट्टी माँगना।
साल 2021 में डीसीपी ने आदेश दिया कि कॉन्स्टेबल का 3 साल का इन्क्रीमेंट सजा के तौर पर रोका जाए, जिसके बाद कॉन्स्टेबल ने कमिश्नर के सामने अपील की। कमिश्नर ने सजा को 3 साल से घटाकर 2 साल कर दी। लेकिन कॉन्स्टेबल ने हाई कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी, जिस पर हाई कोर्ट ने 5 जून को उसे राहत दी। हाई कोर्ट ने सजा को गलत बताया और कमिश्नर के आदेश को रद्द करते हुए 8 सप्ताह के भीतर कानून के तहत नया आदेश देने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि कॉन्स्टेबल को मेडिकल आधार पर आपसी सहमति के आधार पर छुट्टी दी जानी चाहिए थी।