12 फरवरी को रिलीज हुई ‘पीरियड: द एंड ऑफ सेंटेंस’ फिल्म ने ऑस्कर जीतकर पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त की। हर ओर इस फिल्म के चर्चे हुए। ये फिल्म हापुड़ के गाँव काठीखेड़ा में सैनिटरी नेपकिन बनाने वाली महिलाओं पर बनी डॉक्युमेंट्री है। इसमें ऐक्शन इंडिया नामक एनजीओ (जो सैनेटरी पैड बनाने का काम भी करती है) में काम करने वाली सुमन और स्नेहा नाम की लड़कियों ने एक्टिंग की थी। जिसके बाद उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सुमन- स्नेहा और उनकी टीम को लखनऊ बुलाकर 1-1 लाख रुपए दिए थे।
सुमन-स्नेहा को नहीं मालूम था कि अखिलेश द्वारा दी गई ये राशि उनकी नौकरी ले बैठेगी। जी हाँ, इस 1 लाख की राशि के कारण स्नेहा और सुमन को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। स्नेहा बताती हैं कि 1 लाख की राशि उन्हें एनजीओ को देने को कही गई, लेकिन जब उन्होंने इससे इंकार कर दिया तो उन पर नौकरी छोड़ने का दबाव बनाया जाने लगा।
एएनआई से हुई बातचीत में सुमन ने बताया कि उनकी डॉक्यूमेंट्री को ऑस्कर मिलने के बाद 8 मार्च को अखिलेश यादव ने अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर उन्हें 1-1 लाख रुपए दिए थे और 17 मार्च को उन्हें ऑफिस में बुलाया गया कि वह उस चेक को एनजीओ के नाम जमा करा दें। उनसे कहा गया कि ये पैसा एनजीओ का है क्योंकि उन्हें (सुमन) ये राशि उसी काम के लिए मिली है जो उन्होंने फर्म में रहते हुए किया।
Sneha who appeared in ‘Period. End of Sentence’ that won Oscars’19 for ‘Best Documentary Short Subject’, says, “We’ve left the unit (NGO Action India) as we’ve not been paid our salaries for Apr&May.They asked Suman to given them one lakh which she received as prize money” #Hapur pic.twitter.com/Wzd256MsLc
— ANI UP (@ANINewsUP) June 3, 2019
सुमन ने उनसे इसके लिए कुछ समय माँगा और एनजीओ में अपने काम को शुरू रखा। इसके बाद उन्हें महीने के आखिरी में उनकी सैलरी नहीं मिली। जब इसके बारे में पता किया तो उन्हें कहा गया या तो वो 1 लाख रुपए जमा करो या फिर जॉब छोड़ दो। उन्होंने उस राशि को न देने का फैसला लिया। वहीं स्नेहा का कहना है कि उन्हें भी एनजीओ ने दो महीने की सैलरी नहीं दी है।
स्नेहा बताती हैं कि जब उन्होंने इस बारे में एनजीओ से पूछा तो जवाब मिला कि उन्हें पैसों की जरूरत नहीं है क्योंकि अखिलेश यादव पहले ही उन्हें एक लाख रुपए दे चुके हैं। स्नेहा को सैलरी न देने के लिए एनजीओ ने ये भी कहा कि दो महीने स्नेहा ने काम नहीं किया है जबकि स्नेहा के पास इसका सबूत है कि इस अवधि में वो कार्यस्थल पर मौजूद थीं।
Girls from Oscar Winner ‘Period. End of Sentence’ in Crisis https://t.co/4jYzR2EBbx :Auto pickup by wikyou
— IndiaNews (@IndiaNews777) June 3, 2019
सुमन और स्नेहा अपनी नौकरियाँ वापस चाहती हैं। स्नेहा कहती हैं कि फिल्म के ऑस्कर जीत लेने के बाद वो ताउम्र घर में नहीं गुजार सकतीं। नौकरी चले जाने से उन्हें ऐसा महसूस हो रहा है जैसे उनके बच्चे को किसी और को दे दिया गया हो।
दोनों महिलाओं ने एनजीओ के शुरुआती समय में उसे आगे बढ़ाने में किए गए अपने प्रयासों और संघर्षों के बारे में बात की। उन्होंने बताया किस प्रकार बिना सैलरी के भी उन्होंने इस एनजीओ के लिए काम किया। कभी-कभी उन्हें 6,000 रुपए मिले, जो पर्याप्त नहीं होते थे लेकिन फिर भी उन्होंने एनजीओ के लिए काम करना नहीं छोड़ा।
नवभारत टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक साल 2010 में सुमन की शादी काठीखेड़ा गाँव में सुरक्षा गार्ड बलराज से हुई थी। शादी के कुछ समय बाद सुमन इस एनजीओ ‘ऐक्शन इंडिया’ से जुड़ीं, जो महिलाओं के लिए काम करती थी। सुमन को गाँव में सैनिटरी पैड बनाने की प्रेरणा मिली। जिसके बाद उन्होंने इस काम में अपनी ननद स्नेहा और उनकी सहेलियों को भी जोड़ा।
स्नेहा बताती हैं कि कई पाबंदियों और शर्म के कारण शुरू में उन्होंने परिवार वालों को नहीं बताया था कि वे पैड बनाती हैं। धीरे-धीरे जब पता चला तो उन्होंने किसी तरह अपने घर-परिवार को समझाया। ऑस्कर विनिंग फिल्म
पीरियड: द एंड ऑफ सेंटेंस फिल्म उन्हीं का संघर्षों को बयाँ करती है।