दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में फिलिस्तीन के समर्थन में झंडे लहराए गए हैं। एक विरोध प्रदर्शन में लहराए गए इन झंडों के बाद पहले तो 5 छात्रों को कारण बताओ नोटिस जारी हुआ, लेकिन बाद में घुटने टेकते हुए यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने न केवल नोटिस वापिस ले ली बल्कि भारत की यूनिवर्सिटी में हुए हुड़दंग के लिए एक तरह से पूरे इज़राइल देश को दंडित करते हुए यूनिवर्सिटी में इज़राइल से जुड़ा कोई भी कार्यक्रम करने पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया। इसे विरोध प्रदर्शन का आयोजन कर झंडा लहराने वालों की जीत के तौर पर देखा जा रहा है, जो आइसा के सदस्य बताए जा रहे हैं।
जामिया के फैकल्टी ऑफ़ आर्किटेक्चर एंड एकिस्टिक्स ने इज़राइल को अपना कंट्री पार्टनर चुनते हुए “ग्लोबल हेल्थ ज़ेनिथ: कोन्फ़्लुएन्स ’19” नामक कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम के आयोजन के खिलाफ कुछ छात्रों ने (कथित तौर आइसा आदि वामपंथी संगठनों के सदस्य) इज़राइल के दुश्मन माने जाने वाले फिलिस्तीन के झंडे लहराने शुरू कर दिए, जिस पर उन्हें यूनिवर्सिटी की ओर से नोटिस जारी हुआ। लेकिन न केवल नोटिस को बाद में वापिस ले लिया गया, बल्कि यूनिवर्सिटी, विश्वविद्यालय और देश के गेस्ट्स का अपमान करने वाले हुड़दंगियों के ही तुष्टिकरण पर उतर आई। “हम आपको दिलासा देते हैं कि अगर कोई इज़राइली प्रतिनिधिमंडल किसी कार्यक्रम में भाग लेना चाहेगा तो हम नहीं लेने देंगे।”
The Jamia Millia Islamia university has given in to the demand of protesting students and announced that it would not allow Israeli delegates to take part in events on the campus in future.https://t.co/6oEOl6aVj3
— The Telegraph (@ttindia) October 24, 2019
उस विरोध प्रदर्शन के बीच में कुछ छात्रों के बीच की आपसी झड़प भी हो गई, जिसे वामपंथियों ने “यूनिवर्सिटी प्रशासन ने हमें पीटने के लिए गुंडे बुलाए” का स्पिन भी देने की कोशिश की थी।
लेकिन ऑपइंडिया ने जब मौके पर मौजूद रहे छात्रों से बात की तो उलटी ही सच्चाई निकल कर बाहर आई। नाम न छपने की शर्त पर प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि आपसी मारपीट प्रदर्शन में हुई तो थी, लेकिन उसका प्रशासन से कोई लेना देना दूर दूर तक नहीं था। उन चश्मदीदों ने यह भी बताया कि यूनिवर्सिटी द्वारा नोटिस वापिस लिए जाने का आश्वासन मिलने के बाद भी प्रदर्शनकारियों ने हुड़दंग बंद नहीं किया।
उस के पीछे की कहानी और ही कुछ है। 22 अक्टूबर को प्रदर्शनकरी छात्रों ने यूनिवर्सिटी के वीसी के दफ्तर का घेराव किया और किसी को कैम्पस से निकलने नहीं दिया। इस दौरान अंदर कुछ मेहमान उपस्थित थे, जिनमें कई बूढ़े और बीमार भी थे- यहाँ तक कि मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित भी। उनकी हालत सुनकर भी प्रदर्शनकारी नहीं पसीजे। अंत में एक बूढ़ी महिला रोने लगीं और अपनी सेहत का हवाला देकर जाने देने की भीख माँगने लगीं।
तब वामपंथियों में से ही कुछ का दिल पसीजा और उन्होंने अपने साथियों से बीमारों को निकलने देने की बात की। तब उन्मादी कम्युनिस्टों की भीड़ ने अपने ही साथियों पर हमला कर दिया और मॉब की स्थिति पैदा होने लगी। तब हमले के पीड़ितों ने भी सेल्फ-डिफेंस में हाथ चलाया। उस हाथापाई में दोनों ही गुटों को चोट आई और कई को अस्पताल ले जाना पड़ा।
लड़ने वाले दोनों ही गुट आइसा आदि कम्युनिस्टों के थे, लेकिन लड़ाई कराने का जिम्मा प्रशासन पर डाला गया। कहा गया कि उन्हें यूनिवर्सिटी ने मारपीट करने का आदेश दिया था। उसके बाद 23 को कैम्पस में पुलिस आई। प्रशासन के आगे प्रदर्षनकारी जो भी माँगें रखते गए, उन्हें माना जाता गया। लेकिन माँग करने वालों ने एक भी माँग घायलों की किसी भी तरह की सहायता की नहीं रखी। इससे खिसियाए हुए एक गुट ने अपना प्रदर्शन जारी रखा।
हमारे सूत्रों के हिसाब से इसी गुट ने बाद में रात को हॉस्टल में भी हिंसा की। इसके अलावा ऑपइंडिया की तफ्तीश में पता चला है कि हिंसा का एक कारण यह भी था कि वामपंथियों में ही इस प्रदर्शन को लेकर मतभेद था। प्रदर्शनकारियों में से कई फिलिस्तीन के झंडे के खिलाफ थे क्योंकि यह अतिरेक था, और जामिया आखिरकार सरकार के पैसे से चलता है।
हमारे सूत्रों के विवरण की तस्दीक प्रशासन से भी होती है। बकौल यूनिवर्सिटी के पीआरओ अहमद अज़ीम, वीसी के ऑफिस का घेराव करने वाले छात्रों को कुछ छात्रों संगठनों का उकसावा मिला हुआ था। उन्होंने यूनिवर्सिटी के मेहमानों को निकलने देने में प्रदर्शनकारियों के हस्तक्षेप और डेलीगेट्स की मदद करने पर अपने ही सहपाठियों पर प्रदर्शनकारियों के हमले की बात की भी पुष्टि की।