सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को महाराष्ट्र सरकार से कहा कि वह अप्रैल में पालघर में साधुओं की मॉब लिंचिंग मामले में आरोपित पुलिसकर्मियों की कथित भूमिका की जाँच और कार्रवाई की स्थिति के बारे में अवगत कराए।
जस्टिस अशोक भूषण और आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने राज्य सरकार से संबंधित ट्रायल कोर्ट के समक्ष दायर की गई चार्जशीट को पेश करने का आदेश देते हुए कहा है कि वो इसकी जाँच करना चाहती है।
उन्होंने कहा कि इस बात पर अदालत को विचार करना है कि क्या इस मामले में कोई पुलिसकर्मी शामिल था या क्या कर्तव्य का पालन करने में कोई ऐसी लापरवाही हुई है, जिसके कारण अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए? पीठ ने मामले की आगे की सुनवाई को तीन सप्ताह के लिए स्थगित कर दी। इस घटना में तीन लोग मारे गए थे।
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की खिंचाई करते हुए पूछा है कि पालघर केस में कई महीने हो गए हैं, आपने पुलिसकर्मियों के खिलाफ किस तरह की कार्रवाई की? आप इस मामले में क्या कर रहे हैं?
इस मामले में केंद्र सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को यह देखना चाहिए कि इस मामले में जाँच कैसे की गई है। सीबीआई जाँच तभी की जाए, जब कोर्ट राज्य सरकार की जाँच से संतुष्ट न हो।
पालघर में साधुओं की मॉब लिंचिंग मामले की जाँच सीबीआई या एनआईए को सौंपने का महाराष्ट्र पुलिस विरोध कर चुकी है। महाराष्ट्र पुलिस का कहना था कि अभी जाँच जारी है और वह जाँच की डिटेल सार्वजनिक नहीं कर सकती।
पालघर मॉब लिंचिंग मामले की जाँच सीबीआई या एनआईए से कराने की माँग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में PIL दाखिल हुई थी। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है।
पालघर में पुलिस के ही सामने तीन साधुओं की भीड़ ने की थी हत्या
यह घटना राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान 16 अप्रैल की रात की है, जब मुंबई के कांदिवली के रहने वाले 2 साधू और एक ड्राइवर लॉकडाउन के बीच अपने गुरु के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए गुजरात के सूरत जा रहे थे। रास्ते में पालघर के कासा पुलिस स्टेशन के आदिवासी इलाके में गडचिंचले गाँव में लोगों ने साधुओं और उनके ड्राइवर को बुरी तरह पीटा और पुलिस तमाशा देखती रही। मॉब लिंचिंग में तीनों की मौत हो गई।