ओडिशा के पुरी में स्थित महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर के भीतरी रत्न भंडार में रखा खजाना गुरुवार (18 जुलाई) को निकाल लिया गया। पुरी के महाराजा गजपति दिव्यसिंह देव चतुर्थ की उपस्थिति में कमिटी के 11 सदस्य मौजूद थे। यह कमिटी राज्य सरकार द्वारा गठित की गई थी। यहाँ 7 अलमारियाँ और संदूकें मिली हैं। इनमें हीरे जवाहरात और सोने हैं।
यहाँ मोटे काँच की तीन और लोहे की एक (6.50 फुट ऊंची, 4 फुट चौड़ी) अलमारियाँ मिलीं। इसके अलावा 3 फीट ऊँचे और 4 फीट चौड़े लकड़ी के दो संदूक और एक लोहे का संदूक था। सभी के अंदर कई सारे बॉक्स रखे हुए थे, जिनमें सोना रखा गया था। इन सभी बॉक्स से खजाने को निकालकर महाप्रभु के शयन कक्ष में रखा गया। इसमें लगभग 7 घंटे लग गए।
इससे पहले 14 जुलाई को 46 साल बाद रत्न भंडार को खोला गया। बाहरी रत्न भंडार में 6 संदूक मिले थे। इन संदूकों में 95.325 किलोग्राम सोना और 19.480 किलोग्राम चाँदी मिली थीं। इन सभी को यहाँ से निकाल करके स्ट्रॉन्ग रूम में शिफ्ट कर दिया गया था। रविवार 14 जुलाई को भीतरी रत्न भंडार भी खोला गया था, लेकिन यहाँ घुप्प अंधेरा और मकड़ी के जाले आदि लगे हुए थे।
काफी संख्या में चमगादड़ भी निकले। अंधेरा और गंदगी को देखते हुए समिति ने चार दिन बाद खोलने का निर्णय लिया था। इसके बाद इसे 18 जुलाई 2024 को सुबह 9:15 बजे खोला गया। यहाँ से 50.6 किलोग्राम सोना और 134.50 किलोग्राम चाँदी मिली है। आजतक की रिपोर्ट के मुताबिक, यहाँ सोने-चाँदी के 12 बॉक्स मिले हैं। इनकी कुल कीमत 100 करोड़ रुपए से अधिक बताई जा रही है।
गजपति महाराज दिव्यसिंह देव ने बताया कि भंडार घर में ताला लगाकर चाबी सरकारी ट्रेजरी में दे दी है। बाहरी और भीतरी रत्न भंडार का सारा कीमती सामान भगवान जगन्नाथ के शयन कक्ष में है। दोनों भंडार ASI को सौंप दिए जाएँगे। वो दीवारों की लेजर स्कैनिंग करके इनकी मरम्मत का खाका तैयार करेगी। सोना और आभूषणों की लिस्टिंग और ऑडिट पर अभी फैसला नहीं हुआ है।
इसके पहले अफवाह उड़ी थी कि भीतरी रत्न भंडार में साँप और कई सुरंग देखे गए हैं। हालाँकि, यह अफवाह साबित हुआ। मंदिर प्रशासक और समिति सदस्य अरविंद पाढ़ी ने बताया कि भीतरी रत्न भंडार में न साँप दिखे और न ही किसी सुंरग का पता चला है। यह सब अफवाह थी। स्नेक हेल्पलाइन के सदस्य सुवेंदु मलिक ने बताया कि हम पूरे समय भंडार कक्ष के बाहर मौजूद रहे।
कब-कब खोला गया रत्न भंडार?
बता दें कि इस मंदिर के रत्न भंडार को पहले 1805 में चार्ल्स ग्रोम की ओर से खजाने का डॉक्यूमेंटेंशन किया गया था, उस दौरान 64 सोने चांदी के आभूषण थे। साथ ही 128 सोने के सिक्के, 1,297 चांदी के सिक्के, 106 तांबे के सिक्के और 1,333 प्रकार के कपड़े थे। उसके बाद 1905 में खोला गया था। फिर साल 1926 में इस मंदिर के रत्न भंडार को खोला गया है।
इसके बाद 1978 में इसे फिर से खोला गया और आभूषणों एवं सोने-चाँदी की सूची बनाई गई। इस दौरान इसमें करीब 128 किलोग्राम सोना 222 किलोग्राम चाँदी मिले थे। इस दौरान सोने-चाँदी के कई वस्तुओं का आंकलन ही नहीं किया गया था। कहा जाता है कि साल 1985 में भी रत्न भंडार को खोला गया था, लेकिन लिस्ट को अपडेट नहीं किया गया।
ओडिशा हाईकोर्ट ने साल 2018 में राज्य सरकार को रत्न भंडार खोलने के लिए निर्देश दिए थे। हालाँकि, 4 अप्रैल 2018 को कोर्ट के आदेश पर जब 16 लोगों की टीम रत्न भंडार के कक्ष तक पहुँची थी। हालाँकि, उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा था, क्योंकि ये दावा किया गया कि रत्न भंडार की चाबी खो गई है। जब चाबी नहीं मिली तो हंगामा हुआ।
इसके बाद ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने 4 जून 2018 को इस मामले में न्यायिक जाँच के आदेश दे दिए गए हैं। जाँच कमिटी ने 29 नवंबर 2018 को चाबी से जुड़ी अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी, लेकिन सरकार ने इसे सार्वजनिक नहीं किया। रत्न भंडार की चाबी का भी कुछ पता नहीं चल सका। बता दें कि रत्न भंडारे में दो कमरे हैं। एक बाहरी और आंतरिक कमरा है।
बाहरी कमरे की 3 चाबियाँ थीं, जिनमें से एक गजपति महाराज, दूसरी मंदिर प्रशासन और तीसरी एक सेवक को सौंपा गया था। वहीं आंतरिक कमरे की एक चाबी गायब थी। दरअसल, आंतरिक रत्न भंडार खोलने के लिए गठित कमिटी के अध्यक्ष सेवानिवृत न्यायमूर्ति विश्वनाथ रथ ने गजपति महाराजा दिव्य सिंह देव से अनुरोध किया था कि वे रत्न भंडार में उपस्थित रहकर प्रक्रिया की निगरानी करें।
किसने दिए मंदिर में इतने आभूषण
राजतंत्र में राजा-महाराजा विभिन्न क्रिया-कलापों के लिए मंदिरों को दाना दिया करते थे। आम जनता और धनाढ्य लोग भी मंदिर में दान देते रहे हैं। कहा जाता है कि 9वीं सदी शुरू होकर 10वीं में बनकर तैयार हुए जगन्नाथ मंदिर में तत्कालीन क्षत्रिय महाराजा अनंग भीमदेव ने कई लाख माधा सोना दान किया था। एक तोला सोने में दो माधा होता है, यानी एक माधा पाँच ग्राम का होता है।
इस हिसाब से महाराजा ने करीब 5 किलोग्राम सोना मंदिर को दान किया था। इसके अलावा भी कई क्षत्रिय शासकों ने भगवान जगन्नाथ को सोना एवं बहुमूल्य रत्न अर्पित किया था। 15वीं सदी में सूर्यवंशी क्षत्रिय महाराजा कपिलेंद्र देव ने मंदिर में सोना, चाँदी और कई कीमती हीरे आदि दान किए थे। कहा जाता है कि इन सामानों को कई हाथियों पर लादकर मंदिर लाया गया था।
इनके अलावा महाराजा रणजीत सिंह ने भी इस मंदिर को काफी सोना दान किया था। महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी वसीयत में कोहिनूर हीरे को जगन्नाथ मंदिर को देने की बात कही थी। इसके बाद भी राजाओं ने यहाँ दान दिया। दान में सोना-चाँदी मिलने के बाद मंदिर में ‘सुना बेशा’ की परंपरा शुरू हुई। इस परंपरा के तहत भगवान जगन्नाथ का सोने से श्रृंगार किया जाता है।