शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने ऐलान किया है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए 21 फरवरी को भूमि पूजन किया जाएगा। कुंभ मेला क्षेत्र के सेक्टर 9 स्थित ‘गंगा सेवा अभियानम’ के शिविर में आयोजित परम धर्म संसद के समापन पर शंकराचार्य ने यह ऐलान किया है। उन्होंने बताया कि इसके लिए सभी अखाड़ों के संतों से बातचीत हो चुकी है। शंकराचार्य ने भूमि पूजन के लिए 4 ईंटें भी मंगवाई हैं।
आज बुधवार सुबह ही अयोध्या में चल रही धर्म संसद में धर्मगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने राम मंदिर बनाने के लिए तारीख़ का ऐलान करने का दावा किया था। उन्होंने कहा था कि आज (जनवरी 30, 2019) शाम 5 बजे वो धर्म संसद में पहुँचकर मंदिर निर्माण की तारीख़ की घोषणा करेंगे।
परम संसद में कहा गया कि आज गली-गली में धर्म संसद हो रही है। गृहस्थ लोग धर्म संसद नहीं बुला सकते हैं। 21 फरवरी को सभी हिन्दू 4-4 के गुट में, 4-4 शिला लेकर अयोध्या पहुंचे। क्योंकि 4 लोगों पर धारा 144 नहीं लागू होती, 5 लोगों के झुंड पर धारा 144 लगती है। वहीं, नन्दा, जया, भद्रा, पूर्णा नाम की 4 शिलाएँ शंकराचार्य को सौंपी गई। इन्हीं 4 नामों की शिलाएँ लेकर 21 फरवरी को अयोध्या पहुँचने के लिए परम धर्म संसद ने सभी हिंदुओं का आह्वान किया है।
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा, “मंदिर एक दिन में नहीं बनेगा, लेकिन जब शुरू होगा तभी तो बनेगा। इसलिए 21 फरवरी को शिलान्यास के जरिए मंदिर का निर्माण शुरू होगा। ये धर्म संसद भगवान को परमात्मा मानती है, लेकिन दूसरी धर्म संसद भगवान राम को परमात्मा नहीं महापुरुष मानते हैं। इसीलिए सरदार वल्लभभाई पटेल की तरह उनका पुतला बनाना चाहते हैं। हमारे यहाँ मूर्ति लोहे या सीमेंट की नहीं, अष्टधातु, लकड़ी या मिट्टी की बनती है। हमें कंबोडिया के अंकोरवाट की तरह विशाल मंदिर अयोध्या में बनवाना है। अयोध्या को वेटिकन सिटी का दर्जा दिया जाए। स्वामी अवमुक्तेश्वरानन्द ने कहा धर्म संसद सिर्फ धर्माचार्य शंकराचार्य ही बुला सकते हैं।”
इससे पहले केंद्र ने मंगलवार को अयोध्या में विवादास्पद राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद स्थल के पास अधिग्रहण की गई 67 एकड़ जमीन को उसके मूल मालिकों को लौटाने की अनुमति माँगने के लिये उच्चतम न्यायालय का रुख किया था। एक नई याचिका में केन्द्र ने कहा कि उसने 2.77 एकड़ विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल के पास 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था।
याचिका में कहा गया कि राम जन्मभूमि न्यास (राम मंदिर निर्माण को प्रोत्साहन देने वाला ट्रस्ट) ने 1991 में अधिग्रहित अतिरिक्त भूमि को मूल मालिकों को वापस दिए जाने की माँग की थी। शीर्ष अदालत ने पहले विवादित स्थल के पास अधिग्रहण की गई 67 एकड़ जमीन पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। केंद्र सरकार ने 1991 में विवादित स्थल के पास की 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था।