श्री जगन्नाथपुरी मंदिर की 35000 एकड़ जमीन से जुड़ी खबर वायरल होने के बाद मंदिर प्रशासन ने सामने आकर स्पष्टीकरण दिया है। प्रशासन ने बताया है कि मंदिर की भूमि बेचे जाने की खबरें पूर्ण रूप से फर्जी और प्रेरित हैं। इन्हें मीडिया में गलत तरह से रिपोर्ट किया गया।
पुरी में श्री जगन्नाथ मंदिर कार्यालय (SJTA) ने इस संबंध में लगातार ट्वीट शेयर किए हैं। इसमें उन्होंने बताया कि मंदिर की जो जमीन लंबे समय से अलग-अलग लोगों के कब्जे में हैं, उसको लेकर साल 2003 में ‘एकीकृत नीति’ बनाई गई थी। अब उसी के अनुसार मंदिर कमेटी द्वारा जमीन का निपटान किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि एकीकृत नीति का उद्देश्य भगवान जगन्नाथ की जमीन की रक्षा करना था। अब तक 2001 से 2010 तक, 291 एकड़ भूमि का निपटान किया गया और 2011 से 2021 तक 96 एकड़ एकड़ भूमि का निपटान किया गया है। जमीन का उपयोग जनता के लाभ के लिए जैसे स्कूलों, मेडिकल कॉलेज, सड़कों आदि के रूप में किया गया।
SJTA ने कहा कि जगन्नाथ महाप्रभु की 35,000 एकड़ जमीन को बेचने की रिपोर्टिंग पूरी तरह से गलत और प्रेरित है। हम ओडिशा के लोगों और भगवान जगन्नाथ के लाखों भक्तों से ऐसी रिपोर्टिंग से गुमराह न होने का आग्रह करते हैं। उन्होंने बताया कि सरकार और अन्य को सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए भूमि के आवंटन के बारे में निर्णय जगन्नाथ मंदिर समिति द्वारा लिया जाता रहा है।
बता दें कि मंदिर प्रशासन की यह प्रतिक्रिया उन खबरों के जवाब में आई है जिसमें दावे किए जा रहे थे कि मंदिर 35000 एकड़ जमीन बेची जा रही है। दरअसल, मंगलवार को कानून मंत्री प्रताप जेना ने इस मामले पर बयान दिया था। उन्होंने बताया था कि पूर्व राज्यपाल बीडी शर्मा की अध्यक्षता में गठित एक कमेटी और जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन समिति से स्वीकृति मिलने के बाद राज्य सरकार ने मंदिर की 35,272 एकड़ जमीन बेचने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
उन्होंने कहा था कि भगवान जगन्नाथ के नाम पर 24 जिलों में 60,426 एकड़ जमीन की पहचान की गई है, ये जमीनें पूरे राज्य में फैली हैं। इनमें करीब 395 एकड़ बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आँध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार में है। इन जमीनों में से अबतक मंदिर प्रशासन द्वारा 34,876 एकड़ जमीन पर सफलतापूर्वक दावा किया जा चुका है, इनके फंड मंदिर में जमा करवाए जाएँगे।
उल्लेखनीय है कि इस खबर के सोशल मीडिया पर वायरल होने के साथ ही हिंदुओं मंदिर और उनपर सरकार के नियंत्रण को लेकर बहस तेज हो गई थी। मंदिर से जुड़ी इन रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया था कि जिन लोगों ने 30 साल से अधिक समय से मंदिर की जमीन का अतिक्रमण किया है, वे रुपए देकर भूमि पर कब्जा कर सकते हैं। 30 साल से कम और 20 साल से ज्यादा रहने वाले लोग 9 लाख प्रति एकड़ के हिसाब से ले सकते हैं। ऐसे ही 20 से भी कम लेकिन 12 साल से ज्यादा रहने वालों को 15 लाख रुपए देकर जमीन का अधिकार मिल जाएगा।