कुछ लोग खुद को RTI एक्टिविस्ट कहते हैं, क्या यह पेशा है: प्रशांत भूषण से CJI

प्रशांत भूषण

मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोबडे का ‘पीआईएल (पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन, जनहित याचिका) कार्यकर्ताओं’ के प्रति धैर्य चुकता प्रतीत हो रहा है। पहले उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के ‘बेचारे’ छात्रों के मानवाधिकार की दुहाई देने और उन पर पुलिस की कार्रवाई की जाँच की माँग लेकर आए याचिकाकर्ताओं से कहा कि केवल छात्र होने भर से किसी को देश का कानून अपने हाथ में लेने का हक़ नहीं मिल जाता। इसके बाद उन्होंने प्रशांत भूषण को उनकी एक याचिका के लिए फटकार लगाई है

यह याचिका प्रशांत भूषण की ही एक पुरानी याचिका के बारे में थी। उस पुरानी याचिका को दायर कर प्रशांत भूषण ने आरटीआई एक्ट (सूचना के अधिकार कानून) के संबंध में राज्यों के सूचना आयुक्तों (इन्फॉर्मेशन कमिश्नरों) की नियुक्ति के बारे में सवाल उठाए थे। साथ ही उनका आरोप था कि आरटीआई एक्ट को बेवजह कमज़ोर किया जा रहा है।

इसके जवाब में एक ओर जहाँ सीजेआई ने माना कि आरटीआई को लेकर कुछ गंभीर चिंताएँ अवश्य जायज़ हैं, वहीं दूसरी ओर उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे लोग सूचनाएँ माँग रहे हैं, जिनका मामले से कोई लेना-देना ही नहीं है। भूषण के प्रति नाराज़गी का प्रदर्शन करते हुए कहा, “कुछ लोग खुद को ‘आरटीआई एक्टिविस्ट’ कहते हैं। मुझे बताइए, ये कोई व्यवसाय है क्या?”

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मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वे सूचना के सार्वजानिक होने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसको लेकर चिंतित हैं कि जिनका विषय से कोई लेना-देना नहीं है, वे किसी मुद्दे पर जानकारी चाहते हैं। भूषण को एक बार और सुनाते हुए उन्होंने कहा, “हर रोज़ कोई जानकारी चाहता है और आप उनके पीछे होते हैं। इस पर किसी तरह की कोई रोक (फ़िल्टर) होनी चाहिए।”

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जस्टिस बोबडे ने चिंता इस बात पर भी जताई कि इस जानकारी का इस्तेमाल लोगों को ब्लैकमेल करने में हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि कानून का कोई दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। जवाब में प्रशांत भूषण ने कहा कि वे अपना दिमाग लगाएँगे इसके हल के लिए।

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ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया