तमिलनाडु के मदुरै में एक बड़ा विवाद छिड़ गया है जब मयिलादुथुराई कलेक्ट्रेट ने ‘पट्टिना प्रवेशम’ के पारंपरिक अनुष्ठान को आयोजित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया, भक्तों की परंपरा धर्मपुरम अधीनम के द्रष्टा को पालकी में बिठाकर कन्धों पर ले जाने की परंपरा है। दरअसल, शैव मठ के महंत को पालकी में बिठाकर कंधों पर ले जाने की परंपरा पर मयिलादुथुराई कलक्ट्रेट ने मानवाधिकारों का हवाला देकर रोक लगा दी है।
वहीं इसके खिलाफ मठ के पदाधिकारी और अनुयायियों ने मोर्चा खोल दिया है और आदेश को दरकिनार करके पट्टिना प्रवेशम यात्रा निकालने का ऐलान कर दिया है। इस बार 22 मई, 2022 को यह यात्रा निकलनी है।
तमिलनाडु बीजेपी के स्टेट प्रेसिडेंट के.अन्नामलाई ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए ट्वीट किया, “धर्मपुरा पर अधीनम की सदियों पुरानी ‘पट्टिना प्रवेशम’ पर प्रतिबंध तमिलनाडु की सभ्यता और संस्कृति का अपमान है। मैं व्यक्तिगत रूप से अपने कंधों पर पालकी उठाने के लिए उपस्थित रहूँगा। हम अधिनम से अनुरोध करेंगे कि इस अवैध आदेश को उलट कर हमें कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति दी जाए।”
Ban on Dharmapura Adheenam’s centuries old ‘Pattina Pravesham’ is an affront to T N’s civilisational culture
— K.Annamalai (@annamalai_k) May 4, 2022
I’ll be personally there to carry the Adhinam on Palanquin on my shoulders
We will request the Adhinam to allow us to conduct the event by overturning this illegal order pic.twitter.com/4nMPYt9sMf
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मयिलादुथुराई के राजस्व मंडल अधिकारी जे बालाजी ने प्रतिबंध आदेश जारी किया था और यह भी दावा किया था कि यह प्रथा “मानवाधिकारों का उल्लंघन” है। वहीं अनुवाईयों का कहना है कि 500 साल पुरानी परंपरा को इस तरह बैन करने का अधिकार किसी अधिकारी के पास नहीं है। यहाँ तक कि अंग्रेजों के जमाने में और आजादी के बाद भी किसी मुख्यमंत्री ने इस पर रोक नहीं लगाई थी। यह धार्मिक मामलों में सीधा हस्तक्षेप है। वहीं अब इस मामले में मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से दखल देने की माँग की गई है।
बता दें कि मदुरै अधीनम को दक्षिण भारत में शैवों का सबसे प्राचीन मठ माना जाता है। ये मठ तमिलनाडु के मदुरै में मीनाक्षी अम्मन मंदिर के पास स्थित है, जो देश के सबसे महत्वपूर्ण शिवशक्ति मंदिरों में से एक है। इस मठ में पट्टिना प्रवेशम नाम से एक परंपरा है। इसमें धरमापुरम अधीनम के महंत को पालकी में बिठाकर लोग कंधों पर शोभायात्रा के रूप में ले जाते हैं।
मदुरै अधीनम के श्री हरिहर श्री ज्ञानसंबंदा देसिका स्वामीगल के 293वें महंत ने कहा कि धरमापुरम अधीनम का शैव सम्प्रदाय के लोगों के लिए वही महत्व है जो कैथोलिक ईसाइयों के लिए वेटिकन सिटी का है। मदुरै अधीनम ने कहा कि महंत को पालकी में ले जाना लोगों का अपने गुरु के प्रति सम्मान का प्रतीक है। वे स्वेच्छा से गुरु को अपने कंधों पर लेकर चलते हैं। तमिलनाडु सरकार को इस प्राचीन शैव मठ की परंपरा का सम्मान करना चाहिए, ना कि विरोध करते हुए प्रतिबन्ध लगाना चाहिए।
मीडिया रिपोर्ट में यह दावा किया जा रहा है कि द्रविड़ कड़गम के नेता और वामपंथी इस प्रथा का ये कहकर विरोध कर रहे हैं कि ये मानवाधिकारों के खिलाफ है। द्रविड़ कड़गम के मयिलादुथुराई जिला सचिव के थलपतिराज का कहना है कि इंसानों द्वारा किसी इंसान को पालकी में ले जाना मानवाधिकारों का उल्लंघन है। उनके विरोध और उसकी वजह से कानून व्यवस्था की स्थिति का हवाला देकर मयिलादुथुराई जिले के रेवेन्यू ऑफिसर ने 27 अप्रैल को आदेश जारी करके महंत को पालकी में ले जाने पर रोक लगा दी है। हालाँकि, कार्यक्रम के आयोजन पर पाबंदी नहीं लगाई गई है।