कड़ी धूप में 59 साल की एल वरुदम्मल एक खेत से खर-पतवार निकाल रही हैं। लाल साड़ी, चोली के ऊपर सफेद शर्ट पहने और सिर पर लाल गमछा लपेटे वरुदम्मल गाँव में रहने वाली किसी आम महिला जैसी ही हैं। पास के ही एक दूसरे खेत में उनके पति 68 वर्षीय लोगनाथन जमीन समतल करने में लगे हैं। दोनों को देखकर यह अंदाजा बिल्कुल नहीं लगाया जा सकता कि वे एक केंद्रीय मंत्री के माता-पिता हैं।
वरुदम्मल और लोगोनाथन का बेटा एल मुरुगन इसी महीने केंद्र में राज्यमंत्री बने हैं, ले ये दोनों अब भी खेतों में पसीना बहा रहे हैं। दोनों को अपने बेटे से अलग जिंदगी पसंद है। इन्हें अपना पसीना बहाकर कमाई रोटी खाना अच्छा लगता है।
जब शनिवार (जुलाई 17, 2021) को टाइम्स ऑफ इंडिया उनके गाँव पहुँचा तो भूस्वामी ने दोनों से बातचीत की इजाजत दे दी। वरुदम्मल हिचकते हुए आईं और बोलीं, “मैं क्या करूँ, अगर मेरा बेटा केंद्रीय मंत्री बन गया है तो?” अपने बेटे के नरेंद्र मोदी सरकार की कैबिनेट का हिस्सा होने पर उन्हें गर्व तो है, मगर वो इसका श्रेय नहीं लेना चाहतीं। उन्होंने कहा, “हमने उसके (करिअर ग्रोथ) लिए कुछ नहीं किया।”
खबर मिलने के बाद भी खेतों में डटे रहे
दलित वर्ग के अरुणथथियार समुदाय से आने वाले ये दंपत्ति नमक्कल के पास एजबेस्टस की छत वाली झोपड़ी में रहते हैं। ये कभी कुली का काम करते हैं तो कभी खेतों में, कुल मिलाकर रोज कमाई करने वालों में से हैं। बेटा केंद्रीय मंत्री है, इस बात से इतनी जिंदगी में कोई फर्क नहीं है। जब उन्हें पड़ोसियों से इस खबर का पता चला कि उनका बेटा केंद्रीय मंत्री बन गया है, तब भी खेतों में काम कर रहे थे।
बेटे पर नाज मगर खुद्दारी बरकरार
मार्च 2000 में जब मुरुगन को तमिलनाडु बीजेपी का प्रमुख बनाया गया था, तब वे अपने माता-पिता से मिलने कोनूर आए थे। मुरुगन के साथ समर्थकों का जत्था और पुलिस सुरक्षा थी मगर माता-पिता ने बिना किसी शोर-शराबे के बड़ी शांति से बेटे का स्वागत किया। वे अपने बेटे की कामयाबियों पर नाज करते हैं मगर स्वतंत्र रहने की उनकी अपनी जिद है। पाँच साल पहले उनके छोटे बेटे की मौत हो गई थी, तब से वे बहू और पोतों की जिम्मेदारी सँभाल रहे हैं।
‘बेटे की लाइफस्टाइल में फिट नहीं हो पाए’
पिता के अनुसार, मुरुगन एक मेधावी छात्र थे। सरकारी स्कूल से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद चेन्नई के अंबेडकर लॉ कॉलेज में बेटे की पढ़ाई के लिए लोगनाथन को दोस्तों से रुपए उधार लेने पड़े थे। मुरुगन बार-बार उनसे कहते कि चेन्नई आकर उनके साथ रहें। वरुदम्मल ने बताया, “हम कभी-कभार जाते और वहाँ चार दिन तक उसके साथ रहते। हम उसकी व्यस्त लाइफस्टाइल में फिट नहीं हो पाए और कोनूर लौटना ज्यादा सही लेगा।” मुरुगन ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद माँ-बाप से फोन पर बात की।
उनके पास नहीं है अपनी जमीन, दूसरों के खेतों में करते हैं काम
भू-स्वामी ने बताया कि बेटे के केंद्रीय मंत्री बन जाने के बावजूद दोनों के बर्ताव में कोई बदलाव नहीं आया है। गाँव में ही रहने वाले वासु श्रीनिवासन ने कहा कि जब राज्य सरकार कोविड के समय राशन बाँट रही थी तो लोगनाथन लाइन में लगे थे। उन्होंने बताया, “हमने उससे कहा कि लाइन तोड़कर चले जाओ मगर वो नहीं माने।” श्रीनिवासन के मुताबिक, दोनों अपनी सादगी के लिए जाने जाते हैं। उनके पास जमीन का एक छोटा टुकड़ा भी नहीं है।
लोगनाथन और वरुदम्मल ने कहा कि वे अंतिम साँस तक अपने पैरों पर खड़े रहना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “हमारा बेटा एक उच्च पद पर पहुँच गया है। माता-पिता के रूप में यही हमारे लिए काफी है।”