जम्मू कश्मीर पुलिस ने दिसंबर 30, 2020 को लावेपुरा में मारे गए तीनों आतंकियों के शवों को उनके परिवार को सौंपने से इनकार कर दिया है। पुलिस ने स्पष्ट किया है कि वो तीनों आतंकवादी से और इससे जुड़े सबूत जल्द ही उनके परिजनों के साथ साझा किया जाएगा। सोमवार (जनवरी 18, 2021) को इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (IGP) विजय कुमार ने ये जानकारी दी। तीनों को श्रीनगर के बाहर के इलाके लावेपुरा में एक एनकाउंटर में मार गिराया गया था और उनके शव दफना दिए गए थे।
अतहर मुश्ताक, अज़ाज़ अहमद गनी और जुबैर अहमद लोन को 2 दिनों तक पुलिस ने घेर रखा था लेकिन बार-बार आत्मसमर्पण के लिए कहे जाने के बावजूद उन तीनों ने फायरिंग शुरू कर दी, जिसकी जवाबी कार्रवाई में वो मारे गए। तीनों के परिवार सशस्त्र बलों के दावों को नकार रहे हैं। पुलिस का कहना है कि वो न सिर्फ आतंकवादी थे, बल्कि आतंकियों की मदद भी कर रहे थे। अब तक पुलिस ने इससे जुड़े 60% सबूत इकट्ठे कर लिए हैं।
IGP ने बताया कि जब शत-प्रतिशत सबूत इकट्ठे कर लिए जाएँगे, फिर उनके परिजनों से उसे शेयर किया जाएगा। इन तीनों ने कैसे आतंक का रास्ता अपनाया और उनकी करतूतें क्या थीं, इन सब के बारे में परिजनों को जानकारी दी जाएगी। परिजन कह रहे हैं कि उन्हें इस्लामी रीति-रिवाज से दफनाने के लिए इन आतंकियों की लाशें चाहिए, लेकिन पुलिस ने कहा है कि उन्हें लाशें सौंपे जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता।
पुलिस ने कहा कि दफ़न करने की प्रक्रिया तो संपन्न हो गई है, वो भी इन तीनों के परिजनों के सामने। तीनों के माता-पिता, परिवार के अन्य सदस्य और मजिस्ट्रेट भी प्रक्रिया के समय मौजूद थे। सेंट्रल कश्मीर के सोनमर्ग स्थित एक कब्रिस्तान में तीनों को दफनाया गया था। कोरोना वायरस संक्रमण के सामने आने के बाद से ही परिवार वालों को मृत आतंकियों के शव दफनाने के लिए नहीं दिया जा रहा है।
“We have evidence that they were involved in militancy. They were providing logistic support to militants. Once 100 percent evidence is collected, we will share it with their families,” said Kashmir IGP Vijay Kumar. #Lawaypora #LawayporaEncounterhttps://t.co/RHCBjHufmz
— The New Indian Express (@NewIndianXpress) January 19, 2021
IGP ने कहा कि कोरोना की समस्या घाटी में अब भी बनी हुई है। अगर किसी नागरिक की किसी वजह से मौत होती है तो उस मामले में कुछ निश्चित प्रोटोकॉल हैं, जिन्हें फॉलो किया जाता है। लेकिन, आतंकियों के मामले में अगर परिजनों को शव दे दिए जाते हैं तो हजारों की संख्या में लोग आ जुटते हैं, जो ठीक नहीं है। इसके बाद पुलिस को उन्हें रोकने में खासी दिक्कत आती है। पुलिस ने कहा कि दूरदर्शी हितों को देखते हुए ऐसा किया जा रहा है।
अतहर मुश्ताक के अब्बा ने तो बेलौ गाँव में एक खाली कब्र भी खोद रखी है और उनका कहना है कि वो तब तक वहाँ बैठे रहेंगे, जब तक उनके बेटे की लाश उन्हें नहीं मिल जाती। पुलिस ने बताया है कि एनकाउंटर स्थल से एक असाल्ट राइफल और दो पिस्टल भी मिले हैं, लेकिन परिजन कह रहे हैं कि वो तीनों आम नागरिक थे। जम्मू कश्मीर में इससे पहले भी आतंकियों की ‘अंतिम यात्रा’ में लोगों का जुटान होता रहा है।
इससे पहले पुलिस ने 2 वीडियो जारी किए थे, जिनमें से एक दिसंबर 29 की शाम का है, जबकि एक उसके अगले दिन की सुबह का है। दोनों में ही पुलिस उन तीनों आतंकियों को चेतावनी देती ही दिख रही है, लेकिन उधर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आती है। आतंकियों ने जिस घर को अपना अड्डा बनाया था, उसे चारों तरफ से घेर लिया गया था। इतनी देर तक चेताए जाने के बावजूद उन्होंने फायरिंग की, जिसके बाद उन्हें मार गिराया गया।