Monday, December 23, 2024
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सहिष्णुता ही हिंदू धर्म की पहचान है: तमिलनाडु मंदिर में दो संप्रदायों को पूजा का मिला बराबर अधिकार, मद्रास HC ने सुनाया फैसला

कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए श्री वरदराज पेरुमल मंदिर में वडगलाई और ठेंगलई को अपने अपने मंत्र पढ़ने की छूट दी। जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने कहा कि सहिष्णुता हिंदू धर्म की पहचान है और ऐसे तुच्छ मामलों पर लड़ने की जगह भगवान की आराधना का अधिकार दोनों पक्षों को दिया जाना चाहिए।

तमिलनाडु के एक मंदिर में दो संप्रदायों के पूजा के अधिकार की रक्षा करते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने हिंदू धर्म पर विशेष टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि किसी भी कीमत पर किसी पक्ष को पूजा करने से नहीं रोका जा सकता। इसके बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए श्री वरदराज पेरुमल मंदिर में वडगलाई और ठेंगलई संप्रदाय को अपने-अपने मंत्र पढ़ने की छूट दी। जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने कहा कि सहिष्णुता हिंदू धर्म की पहचान है और ऐसे तुच्छ मामलों पर लड़ने की जगह भगवान की आराधना का अधिकार दोनों पक्षों को दिया जाना चाहिए।

बता दें कि पूजा के अधिकार को लेकर जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम की अदालत में एक याचिका डाली गई थी जिसका संबंध दो संप्रदायों से था। ये दोनों पक्ष- वडगलाई और ठेंगलई हैं। कोर्ट तक ये मामला तब पहुँचा जब श्री वरदराज पेरुमल मंदिर की कार्यकारी ट्रस्टी द्वारा वडगलाई संप्रदाय को मंदिर में जाप करने से रोकने के लिए नोटिस जारी हुआ। ट्रस्टी के इसी नोटिस के बाद पूरा विवाद भड़का। वडगलाई समाज ने कोर्ट से कहा कि वो मंदिर में अपने पूजा के अधिकार के तहत अनुमति चाहते हैं कि उन्हें भी प्रार्थना की अनुमति मिले।

याचिकाकर्ता ने कहा कि वे ठेंगलाई संप्रदाय के अधिकारों का अनादर नहीं कर रहे थे लेकिन उन्हें इस तरह उनके गुरु की पूजा करने से रोक कर उनके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। वहीं प्रतिवादी ने मामले में जवाब देते हुए कहा कि साल 1915 से सिर्फ ठेंगलाई समुदाय को ही उनके मंत्र पढ़ने की अनुमति है।

सुनवाई के दौरान हर पक्ष की दलील सुन कोर्ट ने कहा कि सहिष्णुता हिंदू धर्म की पहचान है। दोनों समुदायों को अधिकार है कि वो अपनी अपनी आस्था प्रदर्शित करें। न्यायाधीश बोले कि वो किसी कीमत पर किसी से उसका पूजा का अधिकार नहीं छीनेंगे। इसके बाद उन्होंने मंदिर समिति को निर्देश दिए कि वो दोनों संप्रदाय को पूजा करने दें।

जस्टिस ने कहा, “सहिष्णुता हिंदू धर्म की पहचान है। आपसी तालमेल, एक दूसरे का आदर और केवल प्रभु की आराधना करने से मंदिर में होने वाले गतिविधियों की पवित्रता बरकरार रहेगी। इसलिए दोनों समुदायों को लड़ने की बजाय श्री वरदराज पेरुमल की सेवा करने की अपेक्षा की जाती है।”

कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते समय सुनिश्चित किया कि किसी भी संप्रदाय की आस्था को ठेस न पहुँचे। इसी के साथ उन्होंने मंदिर के अंदर परंपराओं के पालन हेतु नियम भी लागू किए गए। इसके मुताबिक ठेंगलई संप्रदाय को पहले उनका पाठ करने की अनुमति दी जाएगी जिसका नाम श्रीशैला दयापथ्रम हैं और बाद में वडागलाई संप्रदाय को पाठ का जाप करन की अनुमति मिलेगी जिसे रामनुज दया पथ्रम कहा जाता है।

निर्देशानुसार, 10-12 सेकेंड का समय दोनों संप्रदायों को मिलेगा। इसके बाद सारे भक्तों के साथ मिलकर दोनों संप्रदाय नालाइरा दिव्य प्रबंधन का पाठ कर सकते हैं बिना दूसरे श्रद्धालुओं को कोई असुविधा दिए। फिर सारे अनुष्ठान पूरे होने पर अपने मंत्र का जाप ठेंगलई संप्रदाय के लोगों द्वारा किया जाएगा फिर यही प्रक्रिया वडगलाई संप्रदाय द्वारा अपनी जाएगी। इसके बाद ही अनुष्ठान प्रक्रिया पूरी होगी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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