ब्रिटेन के अस्पतालों में ट्रांस महिलाओं के साथ भेदभाव को लेकर नेशनल हेल्थ सर्विस (NHS) ने कड़ा रुख अख्तियार किया है। बोर्ड की तरफ से कहा गया है कि महिला वार्ड में ट्रांस महिला के एडमिट होने का विरोध करना एक तरह का ‘नस्लवाद’ है। लिंग परिवर्तन करवाने वालों (ट्रांस सर्विस यूजर्स) के पक्ष में बनाई गई एनएचएस आयरशायर और एरॉन की नई पॉलिसी के अनुसार यदि कोई भी महिला मरीज़ एक ट्रांस महिला (लिंग परिवर्तन करवा कर महिला बनी) के साथ वार्ड शेयर करने के इनकार करती है तो उसे वार्ड खाली करना पड़ सकता है।
नियम जारी करते हुए एनएचएस वर्कर्स को साफ हिदायत दी गई है कि उन्हें इस तरह के विरोध का सामना कैसे करना है। उन्हें विस्तार से समझाया गया है कि यदि कोई महिला पास के बेड पर इलाज करा रहे ट्रांस महिला को पुरुष बताकर वार्ड शेयर करने से इनकार करे तो वर्कर्स शिकायती महिला को समझाएँ, “वार्ड केवल महिलाओं के लिए है, यहाँ किसी भी पुरुष की उपस्थिति नहीं है।”
इसमें उन्हें आगे सलाह दी गई है, “अगर एक श्वेत महिला ने एक काले रोगी के साथ एक वार्ड साझा करने के बारे में एक नर्स से शिकायत की या एक पुरुष ने एक समलैंगिक पुरुष के साथ एक वार्ड में होने की शिकायत की, तो हम उम्मीद करेंगे कि हमारे कर्मचारी एक नियम के तहत कार्य करेंगे जो व्यक्त व्यवहार से संबंधित है।”
पॉलिसी में कहा गया है कि हमारा समाज ‘ट्रांसफॉबिक’ व्यवहार कर रहा है। ऐसे व्यवहार की तुलना नस्लवाद से करते हुए कहा गया है कि ट्रांस जेंडर्स को समाज में अब भी प्रशंसा की दृष्टि से नहीं बल्कि हीन भावना के साथ देखा जाता है। पॉलिसी में एनएचएस स्टाफ को समझाया गया है कि एक श्वेत महिला यदि किसी अश्वेत समाज के मरीज के साथ वार्ड शेयर करने से इनकार करे या एक हेट्रोसेक्सुअल (विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण रखने वाला) मर्द किसी गे (पुरुष समलैंगिक) के साथ वार्ड शेयर करने से इनकार करे तो स्टाफ को यह पता होना चाहिए कि उन्हें इस परिस्थिति से कैसे निपटना है।
आपको बता दें कि ब्रिटेन में कई महीला मरीजों ने ट्रांस महिलाओं के साथ वार्ड शेयर करने में असहज महसूस करते हुए इसकी शिकायत की। इसे लेकर एनएचएस ने पॉलिसी बनाई है। कड़े विरोध के बाद फिलहाल यह कहा जा रहा है कि पॉलिसी की समीक्षा की जा रही है। दूसरी तरफ एनएचएस से जुड़े एक लाख से ज्यादा नर्सिंगकर्मी हड़ताल पर चले गए हैं। हड़ातिलों की माँग है कि उनकी वेतन में 19 प्रतिशत की वृद्धि हो, जबकि सरकार सिर्फ 5 प्रतिशत वेतन वृद्धि पर अड़ी है। हड़ताल की वजह से 76 से ज्यादा अस्पतालों में 70 हजार से ज्यादा मरीज़ प्रभावित हो रहे हैं।