Sunday, November 17, 2024
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योगी सरकार की जनसंख्या नीति, एक बच्चे वाले ‘नियम’ से नाखुश VHP ने पत्र लिख इसे हटाने की माँग की

असम, केरल में बढ़ती असमानता का उदाहरण देते हुए VHP ने कहा कि वहाँ हिंदुओं का टीएफआर 2.1 की प्रतिस्थापन दर से नीचे गिर गया वहीं, मुसलमानों का टीएफआर क्रमशः 2.33 और 3.16 हो गया, जो एक समुदाय के सिकुड़ने और दूसरे के विस्तार को उजागर करता है।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाई गई नई जनसंख्या नीति को लेकर विश्व हिंदू परिषद ने सोमवार (12 जुलाई) को यूपी लॉ कमिशन को पत्र लिखा। राज्य विधि आयोग द्वारा तैयार किए गए इस मसौदे पर 19 जुलाई तक जनता से सुझाव और सिफारिशें माँगी गई हैं। इसके बाद विहिप द्वारा यह पत्र लिखा गया है। पत्र जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में सही कदम उठाने के सरकार के फैसले का स्वागत करने के साथ शुरू होता है, लेकिन बिल में शामिल एक बच्चे की नीति पर कई कमियों को उजागर किया गया है।

दरअसल, विश्व हिंदू परिषद ने पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश कानून आयोग से उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण और कल्याण) बिल, 2021 के प्रस्तावित मसौदे से एक बच्चे की नीति को हटाने की सिफारिश की है। विश्व हिन्दू परिषद की ओर से कहा गया है कि दो बच्चों वाली नीति जनसंख्या नियंत्रण की ओर ले जाती है, लेकिन दो से कम बच्चों की नीति आने वाले समय में कई नकारात्मक प्रभाव पैदा कर सकती है।

पत्र का विवरण

कुल प्रजनन दर (टीएफआर) को एक निश्चित सीमा (1.7) के भीतर तक लाने के उद्देश्य पर पुनर्विचार करने के सुझाव के साथ पत्र की शुरुआत की गई। यह प्रासंगिक है कि कुल प्रजनन दर को प्रतिस्थापन दर के रूप में भी परिभाषित किया जाता है।

जनसंख्या नियंत्रण बिल पर विहिप का पत्र

विश्व हिन्दू परिषद द्वारा अपने पत्र में कहा कि अगर वन चाइल्ड पॉलिसी लाई जाती है, तो इससे सामाज में आबादी का असंतुलन पैदा होगा। ऐसे में सरकार को इस बारे में फिर से विचार करना चाहिए, वरना इसका असर नेगेटिव ग्रोथ पर हो सकता है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए विहिप ने पत्र में चीन का उदाहरण दिया, जिसने दो महीने पहले घटती और बुजुर्ग होती जनसंख्या से परेशान होकर प्रत्येक माता-पिता को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति दी थी।

जनसंख्या नियंत्रण विधेयक पर विहिप का पत्र

पत्र में लिखा गया है कि ऐसा कहा जाता है कि चीन में, एक बच्चे की नीति को कभी भी आधे से अधिक भावी माता-पिता पर लागू नहीं किया गया था। चीन की एक दशक में एक बार की गई जनगणना से पता चला था कि 1950 के दशक के बाद से पिछले दशक के दौरान जनसंख्या सबसे धीमी दर से बढ़ी है। अकेले 2020 में महिलाओं ने औसत रूप से 1.3 बच्चों को जन्म दिया है। 2016 में चीन ने अपनी दशकों पुरानी एक बच्चे की नीति को समाप्त कर दिया था।

विश्व हिन्दू परिषद द्वारा कहा गया है कि असम, केरल जैसे राज्यों में जनसंख्या के ग्रोथ में असंतुलन देखा गया है। ऐसे में उत्तर प्रदेश को इस तरह के कदम से बचना चाहिए और लाई गई ताजा जनसंख्या नीति में बदलाव करना चाहिए। उन्होंने इन राज्यों में बढ़ती असमानता का उदाहरण देते हुए कहा कि जहाँ हिंदुओं का टीएफआर 2.1 की प्रतिस्थापन दर से नीचे गिर गया वहीं, मुसलमानों का टीएफआर क्रमशः 2.33 और 3.16 था, जो एक समुदाय के सिकुड़ने और दूसरे के विस्तार को उजागर करता है।

जनसंख्या नियंत्रण विधेयक पर विहिप का पत्र

पत्र को समाप्त करते हुए, विहिप ने प्रस्तावित विधेयक के प्रासंगिक खंड की ओर इशारा किया, जिस पर पुनर्विचार की आवश्यकता थी।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के जनसंख्या नियंत्रण बिल 2021 के तहत जिनके पास दो से अधिक बच्चे होंगे, उन्हें न तो सरकारी नौकरी के लिए योग्य माना जाएगा और वे न ही कभी चुनाव लड़ पाएँगे। दरअसल, उत्तर प्रदेश की राज्य विधि आयोग ने सिफारिश की है कि एक बच्चे की नीति अपनाने वाले माता-पिता को कई तरह की सुविधाएँ दी जाएँ, वहीं दो से अधिक बच्चों के माता-पिता को सरकारी नौकरियों से वंचित रखा जाए।

इसके अलावा, एक संतान पर नसंबदी करवाने वाले दंपति को सरकार द्वारा एकमुश्त राशि के भुगतान का प्रस्ताव रखा गया है। एक मात्र बच्चा अगर लड़का है तो 80 हजार रुपए और लड़की है तो एक लाख रुपए दिए जाने की सिफारिश की गई है।

एक बच्चे के लिए लाभों की पूरी सूची

बता दें कि इस तरह के लाभों में स्नातक तक मुफ्त शिक्षा, आईआईएम और एम्स जैसे प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में एकल बच्चे को वरीयता और सरकारी नौकरी शामिल है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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