गुरुवार को, वेदांता के वरिष्ठ वकील, सी आर्यमा सुंदरम, ने मद्रास उच्च न्यायालय को बताया कि चीनी कंपनियों ने स्टरलाइट के विरोध प्रदर्शन को फंड दिया था जिसके परिणामस्वरूप थिपुकुडी में SIPCOT में अपनी तांबा गलाने की इकाई को बंद कर दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि ये चीनी कंपनियाँ भारतीय तांबा बाजार (कॉपर मार्केट) पर कब्ज़ा करने में रुचि रखती थीं।
सुंदरम ने तमिलनाडु सरकार द्वारा तूतीकोरिन में अपनी तांबा गलाने की इकाई को बंद करने के आदेश को चुनौती देते हुए ये आरोप लगाए। उन्होंने डिवीज़न बेंच को बताया, “इन कंपनियों ने स्टरलाइट के ख़िलाफ़ आंदोलन और विरोध-प्रदर्शन को बढ़ावा दिया और फंड भी दिया। तांबे के लिए भारत का आयात बिल $ 2 बिलियन है, यह माँग स्टरलाइट द्वारा पहले से की जा रही थी।”
उन्होंने कहा कि स्टरलाइट भारत के तांबे की माँग का लगभग 38% आपूर्ति कर रहा था। संयंत्र को बंद करने के दबाव में, यह माँग विदेशी कंपनियों द्वारा पूरी की गई।
बाद में सुंदरम ने बताया कि SIPCOT औद्योगिक परिसर में 63 कंपनियाँ थीं। इसमें 10 लाल श्रेणी की कंपनियाँ शामिल थीं जो ख़तरनाक सामग्री को संभालने का काम करती थीं।
इसके अलावा सुंदरम ने इस बात पर भी संदेह व्यक्त किया कि स्टरलाइट विरोधी- प्रदर्शनकारियों ने 20,000 लोगों को इकट्ठा करने का प्रबंधन कैसे किया। सुंदरम ने कहा कि 13 लोगों की मौत के बाद प्लांट को सरकार ने बंद कर दिया था। फिर भी, अदालत में अपनी दलीलों में, सरकार ने इसका कारण पर्यावरण प्रदूषण बताया।
उन्होंने यह भी कहा कि सीबीआई, जो अब तक फायरिंग की जाँच कर रही थी, अब तक कंपनी को जाँच के लिए नहीं बुलाया गया। इसके बावजूद, दंड स्वरूप कंपनी को बंद करने का आदेश दे दिया गया।
कल (27 जून), वेदांता ने मद्रास उच्च न्यायालय को बताया था कि निहित स्वार्थ वाले एनजीओ और कार्यकर्ताओं ने स्टरलाइट विरोधी-प्रदर्शनों का आयोजन किया था। स्टरलाइट विरोधी प्रदर्शन के कारण पुलिस ने फायरिंग की जिसमें 13 प्रदर्शनकारी मारे गए। इसके चलते मई 2018 में प्लांट बंद हो गया था।
एनजीटी ने साबित किया था कि कंपनी सभी पर्यावरण मानदंडों का पालन कर रही थी और सरकार को इसे फिर से खोलने का निर्देश दिया। हालाँकि, मद्रास उच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया और संयंत्र को फिर से खोलने के आदेश को वापस ले लिया।