सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद बिहार के सबसे लोकप्रिय फिल्म कलाकार शत्रुघ्न सिन्हा से सवाल पूछने का मन करता है कि आपने कितने बिहारी युवाओं को बॉलीवुड में प्रोमोट किया और संरक्षण दिया? सोचता हूँ कभी शत्रुघ्न सिन्हा ने सुशांत की फिल्में देखकर, उसकी सफलता के बारे में सुनकर फोन पर शाबासी दिया होगा या फिर उसे बुलाकर मिले होंगे!
बिहार के बॉलीवुड में स्थापित अन्य लोग मसलन मनोज बाजपेयी, पंकज त्रिपाठी, शेखर सुमन, प्रकाश झा, संजय मिश्रा आदि से भी यह स्वाभाविक सवाल उठता है कि सुशांत जैसे युवा कलाकारों के प्रति इन लोगों का क्या रूख होता होगा! यह सब इसलिए जानना चाहता हूँ क्योंकि ये सभी लोग अपने-अपने वक्त के सुशांत रहे हैं, जिन्होंने बॉलीवुड में बड़ा वजूद बनाया। फिर इन सबसे यह प्रश्न भी उठता है कि मुम्बई में अपने बिहारी भाई सुशांत के दाह संस्कार के वक्त ये सभी लोग क्या नैतिक तौर पर वहाँ उपस्थित होने या परिवार से मिलने का फर्ज नहीं निभा सकते थे? इन सबके बीच शुक्र है कि सुशांत के अंतिम यात्रा में पार्श्व गायक उदित नारायण न सिर्फ बहुत भावुक दिखे बल्कि पूरे तौर पर मौजूद भी रहे।
क्या मायानगरी में इतनी जानलेवा स्पर्धा है कि अपने ही जड़-जमीन से जुड़े दूसरे भाई के लिए आप खड़े तक नहीं हो सकते हैं! अगर ऐसा है तो फिर ये रंगीन पर्दे की शोहरत महज झूठ और छल- प्रपंच की बुनियाद पर खड़ी एक मायाजाल है।
प्रतिभाशाली सुशांत की लोकप्रियता और अहमियत का अंदाजा इससे भी लगा सकते हैं कि बिहार के बेटे की मृत्यु पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी गहरी संवेदना प्रकट करते हुए दुख व्यक्त किया है। लेकिन आश्चर्य होता है जब सुशांत की मौत के बाद दुख, पीड़ा, आक्रोश का इज़हार करने वालों को सोनाक्षी सिन्हा राजनीति न करने की सलाह देकर चुप रहने को कहती हैं। क्या वो अप्रत्यक्ष तौर पर खास बॉलीवुड ब्रिगेड के आकाओं का प्रवक्ता होने का संदेश देना चाहती हैं?
स्पष्ट है कि संघर्ष करके बड़े स्टार बने लोगों के मुम्बईया सिल्वर स्पून लॉलीपॉप बेटे-बेटी एक आम संघर्षशील बिहारी की भावना से नावाकिफ हैं, जिसका सोनाक्षी भी एक उदाहरण है। माफियाओं की चमचागिरी कर, उनके आगे नतमस्तक होकर बॉलीवुड में सफल होना अलग बात है लेकिन सुशांत सिंह राजपूत होना अलग बात है।
बिहार के छोटे से शहर का लड़का सुशांत आज के हर संघर्षशील बिहारी और पूर्वांचली युवाओं का प्रतिनिधि था, जिसके पाँव जमीन पर होते हैं और वो आसमान छूने के सपने देखता है। अपने सपने को पूरा करने का जज़्बा लिए वो किसी भी हद तक जा सकता है। इस पूरे उपर्युक्त संदर्भ में सुशांत सिंह राजपूत की मौत एक संघर्षशील बिहारीयत की मौत भी कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए।
सुशांत सिंह राजपूत के पास 7 फिल्में थीं लेकिन साजिश के तहत संबंधित डायरेक्टर-प्रोड्यूसरों ने अपनी फिल्मों से उन्हें निकाल दिया। सुशांत को माफियाओं के दबाव में फिल्मों से निकाल बाहर करने वाले लोगों की पहचान भी सार्वजनिक होनी चाहिए। आखिर ये कौन लोग हैं, जो बॉलीवुड में स्टारडम और सफलता-असफलता को तय करते हैं!
दिलचस्प तो यह है कि बड़े नाम वाले अभिनेता भी डर से बॉलीवुड माफियाओं के खिलाफ नहीं बोलते हैं बल्कि उन्हें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष मान्यता प्रदान करते हैं।
बॉलीवुड आत्म-केंद्रित लोगों का जमावड़ा है। यहाँ माफिया सफलता-असफलता और भविष्य तय करते हैं। हकीकत है कि बॉलीवुड में सफलता सिर्फ मेहनत और संघर्ष के बूते ही तय नहीं होती है। बॉलीवुड में इंट्री बहुत मुश्किल है, घुस गए तो टिकना नामुमकिन है। जीवनयापन या गुजारा करने के लिए दाल-रोटी का जुगाड़ है लेकिन स्टारडम तक पहुँचना, फिर स्थापित होकर टिक जाना किसी के बूते की बात नहीं है।
यहाँ माफियाओं का खेमा काम करता है, जिनके चेले-चमचे बनकर और फिर मोहरे बन भी लोग सफल होते हैं। कुछ संघर्ष की राह में साजिशन मार दिए जाते हैं और कुछ धीरे-धीरे मर जाते हैं। सुशांत सिंह राजपूत बॉलीवुड के बने-बनाए किसी खाँचे में फिट नहीं बैठता था, जिसने बॉलीवुड माफियाओं के गिरोह को जाने-अनजाने चुनौती देने की हिमाकत कर दी थी।
सुशांत ने यह दिखलाने की कोशिश की कि वो बॉलीवुड में सफलता के मानकों से अलग है और विशुद्ध मेहनत, संघर्ष, जज़्बे की बदौलत स्थापित हो सकता है। सवाल तो यही है कि बिहार की धूल-माटी में खेलकर मुम्बई की फिल्म नगरी में अपने बूते वजूद बनाने वाले सुशांत सिंह राजपूत को नापसंद करने वाला माफिया कौन था?
शर्मनाक पहलू यह है कि सुशांत की मृत्यु के बाद भी शातिर माफियाओं ने उसे न बख्शने की कसम खा ली है। मृत्यु उपरांत प्रोफेशनली मीडिया के सहयोग से पब्लिसिटी एवं प्रोपेगेंडा करके सुशांत का चरित्र हनन कर पूरे मामले को भटका कर दूसरा रंग देने का प्रयास भी जारी है।
आज तक बॉलीवुड में जितने भी आत्महत्या के शक्ल में संदेहास्पद मौतें हुई हैं, किसी के निष्कर्ष के तौर पर सजा की बात तो दूर, कोई दोषी तक साबित नहीं हुआ है। क्या सचमुच बॉलीवुड एक माफिया गिरोह है, जो लाभ-हानि, सफलता-असफलता और फ्लॉप-हिट के कारोबार से ज्यादा कुछ नहीं। यहाँ मौतों पर संवेदना की हल्की ज्वार तो उठती है लेकिन थोड़ी हलचल के बाद माहौल फिर से यथावत पूरी तरह प्रोफेशनल हो जाता है।
बॉलीवुड की रंगीन गलियों में सुशांत की मौत का सच घूम रहा है, जिसके बारे में कंगना रनौत ने बेबाक कहा, अभिनव कश्यप ने खुलकर लिखा और शेखर कपूर ने दिल से महसूस किया लेकिन तथाकथित बड़े नाम वाले लोगों ने जान या करियर खत्म होने के डर से चुप्पी साध रखी है।
सुशांत की मृत्यु पर देश भर से प्रतिक्रिया आई, जिसे सोशल मीडिया पर एक स्वाभाविक स्वत:स्फूर्त आक्रोश के तौर पर देखा जा सकता है। बॉलीवुड माफियाओं ने सुशांत को नहीं बख्शा लेकिन सुशांत की मौत ने उन सभी का चेहरा पब्लिक डोमेन के आम चर्चे में ला दिया है।
मायानगरी के बेबी-बाबा एवं माफिया ब्रिगेड से हाथ जोड़कर गुजारिश है कि सुशांत सिंह राजपूत के निधन पर फोटो-ऑप एवं खबरों में सुर्खियाँ बटोरने के लिए घड़ियाली आँसू न बहाएँ और न दाँत निपोर कर फर्जी इमोशन की पब्लिसिटी कराएँ।
सुशांत के खिलाफ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष साजिश करने वाले सभी लोगों का और उनकी फिल्मों का बहिष्कार करने की बिहार एवं पूर्वांचलवासियों से अपील भी करता हूँ।
सुशांत के परिवार सहित हर संवेदनशील व्यक्ति और खासकर बिहार के लोगों की माँग है कि सुशांत की मृत्यु की निष्पक्ष जाँच होनी चाहिए। इस साजिश का खुलासा भी बेहद जरूरी है ताकि मायानगरी के रौनकदार खुशबूदार कपड़ों और रंगीन चश्मे में छिपे बदनाम चेहरे बेनकाब हों और कोई दूसरा सुशांत साजिश की मौत न मरे।