मीडिया सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि भाजपा और एनडीए छोड़ यूपीए में शामिल हुई शिव सेना की कॉन्ग्रेस और एनसीपी के साथ डील पक्की हो गई है। सत्ता के समझौते के कथित मसौदे के मुताबिक शिव सेना को मुख्यमंत्री की कुर्सी और 16 मंत्री पद मिलेंगे, वहीं एनसीपी को 14 और कॉन्ग्रेस को 12 विधायकों को मंत्री बनवाने का मौका मिलेगा।
शिवसेना – मुख्यमंत्री, 16 मंत्री
— Aadesh Rawal (@AadeshRawal) November 15, 2019
कांग्रेस – उप-मुख्यमंत्री, विधानसभा स्पीकर और 12 मंत्री
एनसीपी – उपमुख्यमंत्री और 14 मंत्री
#Maharashtra: @ShivSena May Get 16 Cabinet Berths, @NCPSpeaks 14, #Congress 12; Sharad Pawar Rules Out Mid-Term Elections https://t.co/xzQUgXJr1h
— LatestLY (@latestly) November 15, 2019
शिव सेना प्रवक्ता संजय राउत ने पत्रकारों से बात करते हुए दावा किया है कि सेना अब 25 साल तक महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज रहेगी।
कल यानि गुरुवार, 14 नवंबर को शिवसेना, कॉन्ग्रेस और एनसीपी के बीच एक संयुक्त बैठक हुई थी जिसमें न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर चर्चा की गई। मीडिया खबरों के अनुसार इस बैठक में तीनों पार्टियों के बीच एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार किया गया है। जिसे तीनों पार्टियों के शीर्ष के नेतृत्व के पास भेजा गया। अब अगर तीनों पार्टी के शीर्ष नेता इस कार्यक्रम पर अपनी सहमति देते हैं, तो जल्द ही महाराष्ट्र में सरकार बन सकती है। कहा जा रहा है कि इस साझा मसौदे में शिवसेना कट्टर हिंदुत्व की वैचारिक प्रतिबद्धता का त्याग करेगी यानी शिवसेना वीर सावरकर का नाम लेने से भी बचेगी।
इसके अलावा जनसत्ता की खबर के मुताबिक कॉन्ग्रेस और एनसीपी ने इस बैठक में शिवसेना को शिक्षा के क्षेत्र में मुस्लिमों को पाँच प्रतिशत आरक्षण देने वाली उस योजना के लिए तैयार कर लिया गया है, जिसे पूर्व में कॉन्ग्रेस और एनसीपी सरकार द्वारा उनके कार्यकाल में शुरू किया गया था। लेकिन जब नई सरकार आई तो इसे आगे लागू नहीं किया गया।
ऐसे में अब पूरी उम्मीद है कि शिवसेना-कॉन्ग्रेस-एनसीपी का गठबंधन होता है तो ये योजना दोबारा लागू होगी। साथ ही कॉन्ग्रेस-एनसीपी द्वारा चुनावी घोषणा पत्र में कुछ अतिरिक्त वादों पर भी काम होगा। जिसमें किसानों की कर्जमाफी, बेरोजगार युवाओं को मासिक भत्ता, नए उद्योगों में स्थानीय युवाओं का नौकरी के लिए कोटा आदि लागू होने के कयास है।
288-सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनाव में भाजपा को 105 और शिवसेना को 56 सीटें मिली। युति सरकार बननी तय थी, लेकिन भाजपा के पास अपने दम पर बहुमत नहीं होने के कारण शिवसेना ढाई साल के लिए सीएम पद मॉंग रही थी।
उसका दावा था कि उद्धव ठाकरे से अमित शाह ने इसका वादा किया था, लेकिन सेना ने ऐसे किसी वादे का सबूत पेश नहीं किया। फिर शिव सेना ज़्यादा सीटें मिलने पर भाजपा की नज़र बदल जाने का आरोप लगाने लगी। उसका कहना था कि पहले यह तय हुआ था कि चाहे जिसे जितनी सीटें मिलें, भाजपा और शिव सेना के मुख्यमंत्री ढाई-ढाई साल रहेंगे, और आधे-आधे मंत्रालय बाँटे जाएँगे, और अब ज्यादा सीटें जीतने पर राष्ट्रीय दल अपनी बात से पीछे हटना चाहता है।
फिर चुनाव नतीजों के दो हफ्ते बाद पूर्व भाजपा अध्यक्ष और महाराष्ट्र के कद्दावर नेता कहे जाने वाले नितिन गडकरी के हवाले से न्यूज़ 18 ने दावा किया था कि न केवल भारतीय जनता पार्टी 50-50 फॉर्मूले पर तैयार नहीं है, बल्कि चुनावों के पहले दोनों पार्टियों के बीच ऐसी कोई डील थी ही नहीं।
इसके बाद शिव सेना ने भाजपा-एनडीए के बाहर सरकार बनाने की कोशिश तेज कर दी, जिसका नतीजा सत्ता का यह नया समीकरण सबके सामने है।