गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को कॉन्ग्रेस ने राज्य में पार्टी का अध्यक्ष (कार्यकारी) बनाया है। लेकिन, हुआ यूँ कि हार्दिक पटेल अपनी नियुक्ति के बाद किए गए ट्वीट में गणित ही भूल बैठे।
हार्दिक ने राज्य में एक तिहाई बहुमत से कॉन्ग्रेस की सरकार बनाने का दावा कर दिया। इसके बाद उनकी खूब किरकिरी हुई। बाद में उन्होंने अपनी ट्वीट को डिलीट किया और सुधार कर उसे दो तिहाई बनाया।
लोगों ने उनसे पूछा कि क्या वो कॉन्ग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद की ख़ुशी में गणित भी भूल बैठे हैं? एक ने तो पूछा डाला कि एक तिहाई से सरकार बनाने वाले हार्दिक अब दो तिहाई की बातें कर रहे हैं, इतने विधायक इतनी जल्दी कहाँ से जुगाड़ लिए?
बता दें कि सरकार बनाने के लिए विधानसभा सीटों की कुल संख्या के आधे से एक सीट ज्यादा लानी होती है लेकिन नेतागण प्रचंड बहुमत के लिए दो तिहाई सीटों की बात करते हैं। हार्दिक ने अध्यक्ष बनने के बाद जारी किए गए बयान में कहा:
“गुजरात कॉन्ग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में पार्टी ने मुझे जो ज़िम्मेदारी दी है वो मेरे लिए पद नहीं लेकिन चुनौती है। मेरे जैसे ग़रीब किसान परिवार से आए व्यक्ति को इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी मिली है, उससे साबित हो गया की पार्टी सामान्य परिवार एवं नौजवान को आगे बढ़ाती हैं। लोकतंत्र एवं संविधान के बचाव के लिए कॉन्ग्रेस पार्टी लड़ती रहेगी। गुजरात के विभिन्न मुद्दों को महत्व दिया जाएगा और 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव में 1/3 बहुमत के साथ कॉन्ग्रेस सरकार बनाएगी। मुझ पर भरोसा जताने के लिए मैं पुनः सभी का आभार व्यक्त करता हूँ।”
इस दौरान हार्दिक पटेल ने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी को धन्यवाद दिया और कहा कि गुजरात में पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल, प्रदेश प्रभारी राजीव सातव, प्रदेश अध्यक्ष अमित चावड़ा और नेता प्रतिपक्ष परेश धनानी के नेतृत्व में आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेगी। बता दें कि गुजरात में कुछ ही दिनों में 8 सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं, जिसे आगामी विधानसभा चुनाव का सेमीफइनल माना जा रहा है।
युवा और सक्रिय हार्दिक पटेल को गुजरात का प्रदेश अध्यक्ष बना कर कॉन्ग्रेस अब लड़ाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के गृह राज्य में में जाकर भाजपा पर एक प्रकार का मानसिक दबाव बनाना चाहती है। 2017 विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा था और इसके लिए हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर की तिकड़ी को जिम्मेदार माना गया था, जो राज्य में राहुल गाँधी की टीम के प्रमुख चेहरे थे।
अब इन तीनों में हार्दिक पटेल ही हैं जो हाल तक कॉन्ग्रेस के साथ खड़े रहे हैं और उनके अध्यक्ष चुने जाने वाले फैसले पर राहुल गाँधी की छाप नज़र आ रही है। हाल ही में सोनिया से कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेताओं व सांसदों ने राहुल की वापसी की माँग की थी। सीएए विरोधी आन्दोलनों में भी हार्दिक पटेल कॉन्ग्रेस के लिए सक्रिय रहे थे। राहुल गाँधी पार्टी के पुराने सिपहसालारों के हस्तक्षेप के खिलाफ रहे हैं, ऐसे में क्या ये राहुल के लिए ज़मीन तैयार करने की कवायद है?
सोनिया गाँधी अब तक गुजरात ही नहीं बल्कि पार्टी के कई आंतरिक मामलों में अहमद पटेल पर निर्भर रही हैं, जो ईडी के शिकंजे में बुरे फँसे हुए हैं और कहा जाता है कि अहमद पटेल को पसंद न करने वाले राहुल गाँधी राज्य में नया समीकरण बनाना चाहते हैं। अब तक गाँधी परिवार से एक भी व्यक्ति के अहमद पटेल के पक्ष में आवाज़ नहीं उठाई है, क्या इसे रणनीति में बदलाव के रूप में देखा जा सकता है?
आप गौर करेंगे तो पाएँगे कि तिहाड़ में रहने के दौरान भी कॉन्ग्रेस का शीर्ष परिवार और बड़े नेता पी चिदंबरम और डीके शिवकुमार के लिए मुखर रहे थे। हार्दिक पटेल को चुने जाने के बाद वरिष्ठ नेताओं को एक सन्देश देने की कोशिश की गई है और भाजपा पर भी उपचुनाव से पहले दबाव बनाने का प्रयास किया गया है। अब देखना है कि गुजरात में कॉन्ग्रेस का गणित एक तिहाई और दो तिहाई के बीच कहाँ जाकर अटकता है?