गृह मंत्री अमित शाह के अनुच्छेद 370 हटाने और लद्दाख को अलग केंद्र-शासित प्रदेश बनाने की घोषणा के साथ घाटी और जम्मू के राजनीतिक भविष्य पर अटकलें शुरू हो गईं हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक जहाँ लद्दाख केंद्र-शासित प्रदेश के तौर पर चंडीगढ़-मॉडल के अनुरूप ढलेगा, वहीं दिल्ली और पुडुचेरी जैसी व्यवस्था जम्मू-कश्मीर में चलेगी, जहाँ सीमित शक्तियों वाली विधानसभाएँ अस्तित्व में हैं।
इस विधानसभा के लिए अलग से परिसीमन निर्वाचन आयोग द्वारा किए जाने की भी बात मीडिया में चल रही है। 21 नवंबर, 2018 को भंग की गई अंतिम विधानसभा में 111 सदस्य थे, जबकि आगामी विधानसभा, जिसमें लद्दाख शामिल नहीं होगा, में 107 सदस्यों के होने की संभावना है। पिछली विधानसभाओं में इनमें से 24 सीटें POK (पाकिस्तान के कब्ज़े का कश्मीर) की होतीं थीं, जिन्हें फ़िलहाल खाली छोड़ दिया जाता है, और बहुमत के गणित में नहीं गिना जाता।
अभी तक की विधानसभाओं में कम जनसंख्या के बावजूद कश्मीर घाटी के अधिक विधायक होते थे। परिसीमन में इसी विसंगति को दूर कर जनसांख्यिकीय संतुलन बैठाया जाएगा, ताकि हर विधायक कमोबेश एक ही संख्या के लोगों का प्रतिनिधित्व करे और प्रतिनिधि लोकतंत्र (representative democracy) की आत्मा के अनुरूप जनसंख्या विधानसभा में प्रतिबिम्बित हो।