लोकसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच बिहार से खबर है कि चुनाव के बाद जदयू ने अपने कम से कम छह नेताओं पर कार्रवाई का मन बना लिया है। उनपर एनडीए उम्मीदवारों के विरोध में खुले तौर पर प्रचार करने का आरोप है। जदयू के अनुसार इन नेताओं ने पार्टी लाइन से अलग जाकर गठबंधन धर्म का उल्लंघन किया है।
गौरतलब है कि जदयू के इन नेताओं ने उन्हीं क्षेत्रों में विरोध किया, जहाँ राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह, मुन्ना शुक्ला, अनु शुक्ला और जदयू के प्रदेश महासचिव देव कुमार चौरसिया पार्टी की अनुशासनिक कार्रवाई के दायरे में आ सकते हैं।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह भी कहा जा रहा है कि इन नेताओं को लेकर लोजपा ने जदयू के समक्ष अपनी नाराजगी दर्ज कराई है। बता दें कि जदयू नेता नरेंद्र सिंह ने जमुई में लोजपा उम्मीदवार चिराग पासवान के खिलाफ खुलेआम प्रचार किया। इतना ही नहीं उनके पुत्र अजय सिंह भी चिराग के विरोध में शामिल थे। नरेंद्र सिंह इस बात से नाराज हैं कि लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान ने विधानसभा के पिछले चुनाव में उनके पुत्र की उम्मीदवारी का विरोध किया था।
रिपोर्ट के अनुसार, हाजीपुर में मतदान के दिन जदयू के पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला ने नोटा का बटन दबाया और उन्होंने इसे स्वीकार भी किया। उन्होंने वैशाली लोकसभा क्षेत्र के अपने जाति के मतदाताओं से भी नोटा का बटन दबाने की अपील की। बता दें कि वैशाली में लोजपा उम्मीदवार वीणा देवी चुनाव लड़ रही थीं। जदयू के प्रदेश महासचिव देव कुमार चौरसिया पर भी आरोप है कि उन्होंने हाजीपुर में लोजपा के बदले राजद उम्मीदवार के लिए वोट देने की अपील की।
रिपोर्ट के अनुसार, कहा जा रहा है कि देव कुमार चौरसिया ने प्रदेश नेतृत्व को जानकारी देकर लोजपा उम्मीदवार पशुपति कुमार पारस का विरोध किया। विरोध का कारण यह बताया जा रहा है कि 2014 में चौरसिया हाजीपुर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उपचुनाव लड़ रहे थे। उस समय पारस ने उनके खिलाफ वोट देने की अपील की थी। चौरसिया ने इस चुनाव में उसी का बदला लिया है।
पार्टी में ही इस तरह से खुलेआम विरोध को देखते हुए जदयू का अपने इन बागी नेताओं पर कार्रवाई की उम्मीद की जा रही है। अब देखना यह है कि लोकसभा चुनाव के बाद क्या होता है।