महाराष्ट्र में सरकार का गठन हो जाने के बाद जिस अगले बड़े विधानसभा चुनाव पर देश की नज़रें टिकीं हैं, वह है झारखण्ड। बिहार से अलग होकर पिछले दशक के शुरुआती वर्षों में अलग राज्य का दर्जा पाने वाले इस सूबे में पिछले 5 सालों से भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, और मुख्यमंत्री की नियुक्ति में भाजपा नेतृत्व ने राज्य की लीक तोड़कर एक गैर-आदिवासी रघुबर दास को ज़िम्मेदारी सौंपी थी। और आज उनके पाँच साल के कामकाज को चुनौती देने के लिए कॉन्ग्रेस ने जिस विधानसभा प्रत्याशियों की ‘फ़ौज’ को टिकट थमाया है, उनमें से दूसरे दौर के चुनाव में जा रहे दो तिहाई (67%) ‘दागी’ हैं– यानि कि उन पर किसी न किसी किस्म के आपराधिक कृत्य के मामले विभिन्न अदालतों में लंबित हैं।
राज्य में दूसरे दौर का चुनाव आगामी रविवार (7 दिसंबर, 2019) को होने हैं। पहले दौर के चुनाव 30 नवंबर, 2019 को हुए थे। 23 दिसंबर को मतगणना के बाद 5 चरणों के चुनाव का नतीजा 26 दिसंबर, 2019 को आएगा।
राजनीतिक दलों की शुचिता पर नज़र रखने वाली गैर-सरकारी संस्था (एनजीओ) एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के अनुसार इस चरण के प्रत्याशियों में कुल 26% दागी हैं, जिनमें से 17% के खिलाफ लंबित मामले गम्भीर प्रकृति के हैं। इस दूसरे चरण में औद्योगिक नगरी जमशेदपुर की दो सीटों समेत 20 सीटों पर 260 प्रत्याशी चुनाव में खड़े हैं।
पार्टीवार बात करें तो कॉन्ग्रेस के प्रत्याशियों में 67%, पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के 50%, ऑल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के 42% प्रत्याशी दागी हैं। भाजपा और झारखण्ड विकास मोर्चा-प्रजातान्त्रिक (झाविमो-पी) के महज़ 40-40% प्रत्याशी मुकदमों का सामना कर रहे हैं। गंभीर अपराधों की भी बात करें कॉन्ग्रेस 50% के साथ चोटी पर है, और भाजपा 25% के साथ नीचे से दूसरे पायदान पर है। यह आँकड़े इन प्रत्याशियों द्वारा ही दाखिल हलफ़नामे के मुताबिक हैं।
दागी प्रत्याशियों में से 8 के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास के मुकदमे चल रहे हैं। 4 के खिलाफ हत्या के भी मुकदमे हैं। 3 ऐसे भी प्रत्याशी कानून बनाने वाले बनने के इच्छुक हैं जिनको अदालतें कानून तोड़ने के आरोप में दोषी पा चुकी हैं।
नक्सलवाद से पीड़ित झारखण्ड में भाजपा की सरकार दिसंबर, 2014 में 81 में से 37 सीटें जीतकर बनी थी। झाविमो के 6 के 6 विधायकों ने 11 फरवरी 2015 को सरकार बनने के कुछ ही समय बाद भाजपा की सदस्यता ले ली थी।