मैसूर में बीते 10 सितंबर को मंदिर तोड़ने की कार्रवाई के बाद उपजे आक्रोश के देखते हुए कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 2009 के आदेश को निष्प्रभावी बनाने के लिए कानून बनाने का फैसला किया है। इस कड़ी में मंगलवार (21 सितंबर 2021) को विधानसभा से कर्नाटक रिलिजियस स्ट्रक्चर (प्रोटेक्शन) बिल 2021 पास किया गया। इस विधेयक का मकसद शीर्ष अदालत के आदेश की पृष्ठभूमि में राज्य में धार्मिक संरचनाओं पर जारी कार्रवाई को रोकना है।
सदन में विधेयक पेश करते हुए मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ने कहा, “इसका उद्देश्य इस अधिनियम के लागू होने की तारीख से पहले सार्वजनिक स्थानों पर बने धार्मिक स्थलों की रक्षा करना है ताकि सामुदायिक सद्भाव औऱ जनता की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुँचे।” इस विधेयक के कानून बनने की तारीख से अदालती आदेश के बावजूद निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार धार्मिक संरचना की सुरक्षा करने की बात कही गई है। बिल में ‘धार्मिक संरचना’ को मंदिर, चर्च, मस्जिद, गुरुद्वारा, बौद्ध विहार, मजार वगैरह के तौर पर परिभाषित किया गया है। साथ ही कहा गया है कि भविष्य में सार्वजनिक स्थान पर किसी भी धार्मिक संरचना के निर्माण की अनुमति नहीं दी जाएगी।
यह बिल सदन ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया। कॉन्ग्रेस और जेडीएस ने इसका विरोध तो नहीं किया लेकिन विपक्ष ने मैसूर की घटना के बाद जिस तरह से जल्दबादी में यह बिल लाया गया उसके लिए सरकार की आलोचना की।
विधानसभा में राज्य सरकार ने इस बात को स्वीकार किया कि मैसूर में मंदिर पर कार्रवाई की उसे जानकारी ही नहीं थी। कानून और संसदीय मामलों के मंत्री जेसी मधुस्वामीव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने के लिए ‘अति उत्साही’ अधिकारियों ने सरकार को बिना बताए ही कार्रवाई की।
मंदिर पर कार्रवाई को लेकर सरकार की कड़ी आलोचना करने वाले विपक्षी नेता सिद्धारमैया ने आरोप लगाया कि दक्षिणपंथी समूहों के दबाव में भाजपा सरकार बिल लेकर लाई है। सिद्धारमैया ने कहा, “वे हिंदू जागरण वैदिक और दक्षिणपंथी समूहों के दबाव के कारण अब बिल ला रहे हैं। मैंने ट्वीट किया था और कहा था कि मंदिर को तोड़ा नहीं जाना चाहिए था। उन्होंने मंदिर को तोड़ा और अब इसकी सुरक्षा चाह रहे हैं जो अजीब है।”
सिद्धारमैया की दलीलों को खारिज करते हुए सीएम बासवराज बोम्मई ने कहा कि 2010 से 2019 तक कर्नाटक में कॉन्ग्रेस के शासनकाल में मैसूर में 161 मंदिरों, मस्जिदों और दरगाहों को ध्वस्त किया गया था। उन्होंने विपक्ष से सवाल किया, “यदि आप मैसूर में एक मंदिर को तोड़ने के लिए भाजपा सरकार को जिम्मेदार मानते हैं तो उन विध्वंसों के लिए किसे जिम्मेदार ठहराएँगे।” सीएम ने आगे कहा, “शब्द बहुत ही खतरनाक होते हैं, हमें संवेदनशील मुद्दों पर इनका सावधानी से उपयोग करना चाहिए।”
मंदिर तोड़ने का ठीकरा जिला प्रशासन
कर्नाटक के मैसूर जिले में हिंदू मंदिर के विध्वंस मामले ने राज्य सरकार को जिला प्रशासन के खिलाफ खड़ा कर दिया था। विध्वंस का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद मैसूर-कोडागु के भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा सहित कई राजनेताओं और कई हिंदू संगठनों ने तहसीलदार द्वारा रात में किए गए इस कार्रवाई का विरोध किया था।
सिम्हा ने जिला प्रशासन पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या और चुनिंदा मंदिरों को निशाना बनाने का आऱोप लगाया था। उन्होंने कहा था, “सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 2009 के बाद सार्वजनिक स्थानों पर जो संरचनाएँ बनी हैं, वे ही उसके आदेश के तहत आएँगी। कोर्ट ने यह भी कहा था कि इन संरचनाओं को तभी गिराया जाना चाहिए जब इनका स्थानांतरण या नियमितीकरण संभव न हो।”
अगस्त में राज्य के मुख्य सचिव पी. रविकुमार द्वारा की गई जाँच के बाद मंदिर पर कार्रवाई की गई थी। इसमें जिला प्रशासन से सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय के फैसलों को लागू करने में देरी पर जवाब माँगा गया था। इस मामले में मुख्य सचिव ने 1 जुलाई 2021 को उपायुक्तों को एक पत्र लिखा था, जिसमें कहा गया था कि कर्नाटक में सार्वजनिक स्थानों पर 6,395 गैरकानूनी तरीके से धार्मिक संरचनाएँ स्थित हैं। 29 सितंबर 2009 तक ऐसी संरचनाओं की संख्या 5,688 थी। हालाँकि, 12 सालों में राज्य उनमें से केवल 2,887 को ध्वस्त, स्थानांतरित और विनियमित कर पाया है। कथित तौर पर निर्देशों के अनुसार, जिला प्रशासन को हर सप्ताह हरेक तालुक और मंडल में कम से कम एक अवैध धार्मिक संरचना पर कार्रवाई करने को कहा गया था।