भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने जब से गृह मंत्रालय सम्भाला है, तब से यह देखा जा रहा है कि जम्मू कश्मीर पर उनका विशेष ध्यान है। राज्य में विधानसभा क्षेत्रों के नए सिरे से परिसीमन किए जाने की बात सामने आ रही है, जिसके बाद कश्मीरी नेताओं में हाहाकार मच गया है। राज्य के नेताओं ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि वो सांप्रदायिक रास्ते पर चलते हुए कश्मीर का विभाजन करना चाहती है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, परिसीमन के बाद जम्मू और कश्मीर को बराबर का हक मिलेगा। अभी विधानसभा सीटों की संख्या की बात करें तो कश्मीर का पलड़ा ज्यादा भारी है। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने ये ख़बर सुन कर कहा कि वो व्यथित हैं।
It’s rather surprising that the BJP, which talks about bringing J&K at par with other states by removing 370 & 35-A now wants to treat J&K differently from other states in this one respect.
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) June 4, 2019
मह्बूब्स मुफ़्ती ने ट्विटर पर लिखा, “केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर में विधानसभा क्षेत्रों का नए सिरे से परिसीमन किए जाने की ख़बर सुन कर व्यथित हूँ। जबरदस्ती थोपा जाने वाला परिसीमन सांप्रदायिक राह पर चलते हुए राज्य का भावोत्तेजक विभाजन करने का प्रयास है। केंद्र सरकार हमारे पुराने घाव भरने की बजाए हमें नया दर्द दे रही है।” हालाँकि, अधिकारियों ने कहा कि किसी तरह का गठन या उनसे सलाह लेने सम्बन्धी कोई चर्चा अभी तक नहीं हुई है। राज्य भाजपा लगातार कई दिनों से परिसीमन की माँग कर रही है लेकिन अभी तक इस पर कुछ ठोस कार्य नहीं हुआ है।
Distressed to hear about GoIs plan to redraw assembly constituencies in J&K. Forced delimitation is an obvious attempt to inflict another emotional partition of the state on communal lines.Instead of allowing old wounds to heal, GoI is inflicting pain on Kashmiris
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) June 4, 2019
वहीं जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी कहा कि वह ऐसे किसी भी प्रयास का विरोध करेंगे। उन्होंने कहा कि जनता की राय लिए बिना ऐसे किसी भी निर्णय का विरोध करने के लिए उनकी पार्टी पूरा ज़ोर लगा देगी। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि आर्टिकल 370 और 35A को ख़त्म कर जम्मू कश्मीर को भारत के बाकी राज्यों की तरह बनाने की बात करने वाली भाजपा अब राज्य के साथ अलग तरह का व्यवहार कर रही है, यह आश्चर्यजनक है। उन्होंने कहा कि अगर परिसीमन किया जाता है तो देश के सभी राज्यों में किया जाना चाहिए। वहीं पीपल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने कहा कि वो इस ख़बर की झूठी होने की आशा करते हैं।
आखिरी बार जम्मू कश्मीर में 1995 में परिसीमन किया गया था। राज्य के संविधान (जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान है) के मुताबिक यहाँ हर 10 साल के बाद परिसीमन होना तय था। मगर तत्कालीन फारुक अब्दुल्ला सरकार ने 2002 में इस पर 2026 तक के लिए रोक लगा दी थी। ऐसे में उमर अब्दुल्ला जो यह तर्क दे रहे हैं कि “अगर परिसीमन किया जाए तो पूरे देश में किया जाए” क्या वो अपने पिताजी और पूर्व मुख्यमंत्री से पूछेंगे कि क्यों उन्होंने 2026 तक इस पर रोक लगा दिया था, क्या यह रोक पूरे देश में एक साथ लगा था?
Requesting the central government @PMOIndia @HMOIndia to address the anxieties of the people of J&K on the proposed Delimitation exercise in violation of the Constitutional provisions. pic.twitter.com/H9HAbzs58B
— Shah Faesal (@shahfaesal) June 4, 2019
सज्जाद लोन ने कहा, “मैं आशा करता हूँ कि कश्मीर के बारे में मीडिया में चल रही ख़बरें झूठी हैं। मैं इतनी ज्यादा जल्दबाज़ी का कारण नहीं समझ पा रहा हूँ।” वहीं पूर्व आईएएस अधिकारी शाह फैसल ने इसे गंभीर और विक्षुब्ध करने वाला बताया। उन्होंने कहा कि अगर राज्य के सभी हिस्सों को बराबर हक़ देना है तो इसका निर्णय राज्य की जनता को ही करना चाहिए।
Hope and pray that media reports about Kashmir aren’t true. Don’t understand the earth shattering hurry. And this perception of being wronged at a provincial level. If thousands of graves in Kashmir dont add up to people being wronged. Wonder what wronged means.
— Sajad Lone (@sajadlone) June 4, 2019
बता दें कि राज्य में आखिरी बार 1995 में परिसीमन किया गया था, जब गवर्नर जगमोहन के आदेश पर जम्मू-कश्मीर में 87 सीटों का गठन किया गया था। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में अभी कुल 111 सीटें हैं, लेकिन 24 सीटों को रिक्त रखा गया है। जम्मू-कश्मीर के संविधान के सेक्शन 47 के मुताबिक, इन 24 सीटों को पाक अधिकृत कश्मीर के लिए खाली छोड़ गया है और बाकी बची 87 सीटों पर ही चुनाव होता है। बता दें कि जम्मू-कश्मीर का अलग से भी संविधान है। हर 10 साल बाद परिसीमन किए जीने की व्यवस्था पर फारूक अब्दुल्ला सरकार ने रोक लगा दी थी।
राज्य में राजनीतिक असंतुलन की बात करें तो कश्मीर में 346 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर एक विधानसभा है, जबकि जम्मू में 710 वर्ग किलोमीटर पर। अगर परिसीमन किया गया तो जम्मू में क्षेत्रफल व मतदाता के आधार पर 15 सीटें बढ़ सकती हैं।