मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार द्वारा किसानों की क़र्ज़माफ़ी की घोषणा के बाद किसानों की मुश्किलें ख़त्म होने के बजाए बढ़ती ही जा रही हैं। क़र्ज़माफ़ी को लेकर सरकारी दफ़्तरों में चिपकाई जा रही सूची में किसी के नाम ₹13 तो किसी के नाम के आगे ₹30 की क़र्ज़माफ़ी है। क़र्ज़माफ़ी के मुद्दे पर 15 साल बाद सत्ता में आई कॉन्ग्रेस की कमलनाथ सरकार के इस रवैये से जनता बेहद परेशान है।
किसानों के लिए जारी क़र्ज़माफ़ी की लिस्ट में निपानिया के रहने वाले एक किसान शिवपाल का भी नाम है। शिवपाल पर बैंक के ₹20,000 से ज्यादा का कर्ज़ है। लेकिन सरकार द्वारा जारी लिस्ट में उनके नाम के आगे ₹13 की क़र्ज़माफ़ी की गई है। शिवपाल ने अपने बयान में कहा, “सरकार क़र्ज़ माफ़ कर ही रही है तो मेरा पूरा क़र्ज़ माफ़ होना चाहिए, ₹13 की तो हम बीड़ी पी जाते हैं।”
निपानिया के शिवलाल और शिवनारायण के नाम पर कर्जमाफी की लिस्ट में 13 रु. आये. हैं दोनों पर 20000 से ज्यादा का कर्ज़ है @ndtvindia @shailendranrb @ajaiksaran @shailgwalior pic.twitter.com/lEp0TFkukg
— Anurag Dwary (@Anurag_Dwary) January 22, 2019
मध्य प्रदेश में क़र्ज़माफ़ी एक तरह से फ़र्ज़ी किसान घोटाला है
कॉन्ग्रेस ने किसानों की क़र्ज़माफ़ी के अपने चुनावी जुमले को जनता के बीच जमकर भुनाया था, अब इस प्रकार के प्रकरणों से किसान ऋणमाफ़ी मात्र एक कॉन्ग्रेस का चुनावी पैंतरा बनकर रह गया है। इस रणनीति के तहत कॉन्ग्रेस ने भले ही 3 राज्यों (राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़) की सत्ता अपने हाथों ले ली हो, लेकिन उसकी असलियत अब धीरे-धीरे सामने आ रही है।
हाल ही में राजस्थान में फ़र्ज़ी कर्ज़माफ़ी के आँकड़े भी सामने आए थे, जिसमें कॉन्ग्रेस पार्टी का क़र्ज़माफ़ी का झूठ पकड़ा गया था। इस प्रकरण में राज्य सरकार द्वारा जारी की गई सूची में उन किसानों के नाम शामिल थे, जिन्होंने कभी बैंक से लोन लिया ही नहीं था।
ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश सरकार में भी देखने को मिला है, जिसका असर आगामी चुनावों में कॉन्ग्रेस सरकार पर यक़ीनन देखने को मिलेगा। ख़बरों के अनुसार, मध्य प्रदेश में क़र्ज़माफ़ी की घोषणा के बाद वहाँ के किसानों ने इस बात पर आपत्ति जताई थी कि जब कर्ज़ लिया ही नहीं तो फिर माफ़ी कैसी?
मध्य प्रदेश के ग्वालियर में किसानों की क़र्ज़माफ़ी की प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही विवादों में छा गई है। दरअसल हुआ यूँ कि क़र्ज़माफ़ी के लिए जब समितियों की तरफ से पंचायत पर कर्ज़दारों की सूची जारी की गई तो उनमें जिन किसानों के नाम शामिल थे, उन्होंने ऐसा कोई क़र्ज़ लिया ही नहीं था जिसकी माफ़ी से वे ख़ुश हो सकें।
इसके बाद उन किसानों ने जिले की सहकारी केंद्रीय बैंक की शाखा व समितियों पर जाकर क़र्ज़ लेने सम्बन्धी आपत्ति दर्ज़ कराई, साथ ही इस बात पर भी जोर दिया कि जब उन्होंने बैंक से कोई क़र्ज़ ही नहीं लिया तो फिर उनका नाम ऐसी किसी सूची में कैसे शामिल हो सकता है जिसके लिए कर्ज़ माफ़ी का प्रावधान किया जा रहा है। बता दें कि किसानों को फ़सल के लिए ऋण कृषि साख सहकारी समीतियों द्वारा ही दिया जाता है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, जिला सहकारी बैंक की चीनौर शाखा उर्वा सोसायटी का घोटाला सबसे अधिक चर्चित रहा। लगभग 1,143 किसानों के नाम फ़र्ज़ी ऋण वितरित किया गया, जिससे बैंक को लगभग साढ़े पाँच करोड़ रुपए का चूना लगा। इस संबंध में जब पूर्व विधायक बृजेंद्र तिवारी ने एक किसान की जाँच कराई, तो पता चला कि ऐसे 300 किसानों के पते ही फ़र्ज़ी थे। बाकी किसानों के पास जाकर पाया कि उन्होंने किसान संबंधी कोई क़र्ज़ लिया ही नहीं।
ऐसे में यही सवाल उठता है कि क़र्ज़माफ़ी से जुड़ा यह विवाद अभी और कितने फ़र्ज़ी घोटालों को सामने लाएगा? उम्मीद यह की जा रही है कि जल्द ही इस तरह के क़र्ज़माफ़ी के और भी प्रकरणों का पर्दाफ़ाश होगा।