Sunday, December 22, 2024
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जम्मू-कश्मीर में रौशन हुआ वंशवाद का एक और चिराग: महबूबा मुफ्ती ने छोटी बेटी को बनाया मीडिया सलाहकार, जानिए कौन हैं इल्तिजा जिनके पासपोर्ट को लेकर भी उठे थे सवाल

इल्तिजा मुफ्ती ने कहा था कि दिवंगत पीडीपी संरक्षक मुफ्ती मोहम्मद सईद की पोती होने के नाते उन्होंने अपने जन्म के बाद से राजनीति को करीब से देखा है। उन्होंने कहा था, "अन्य लोगों के लिए यह आकर्षक हो सकता है। मुझे इसके लिए कोई आकर्षण नहीं है।"

जम्मू-कश्मीर आधारित राजनीतिक दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) में अगली पीढ़ी को शामिल करने की पहल 30 अगस्त 2023 दिन बुधवार को शुरू हो गई। पार्टी सुप्रीमो महबूबा मुफ्ती ने अपनी 36 साल की बेटी इल्तिजा मुफ्ती को अपना मीडिया सलाहकार नियुक्त किया है।

इल्तिजा की बहाली की ये खबर अचानक ही सही, लेकिन अनपेक्षित नहीं थी। बीते 4 साल में इस बात के पर्याप्त संकेत मिले हैं कि वह पीडीपी के संस्थापक और जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम रहे अपने नाना मुफ्ती मोहम्मद सईद और अम्मी महबूबा मुफ्ती की राहों पर चलने के लिए कदम बढ़ा चुकी हैं।

इल्तिजा साल 2019 से महबूबा मुफ्ती के सोशल मीडिया हैंडल की प्रभारी हैं। इसी साल केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को रद्द किया था। उस वक्त उनकी अम्मी महबूबा सहित जम्मू-कश्मीर के मुख्यधारा के नेता गिरफ्तार हुए थे। तब सरकार के फैसले के खिलाफ उन्होंने मोर्चा सँभाला था। इसके साथ ही उन्होंने राजनीति में आने के अपने इरादे जाहिर कर दिए थे।

राजनीति की तरफ बढ़ाया उनका ये कदम भले ही औपचारिक तौर पर छोटा हो, लेकिन इससे साफ है कि वह आने वाले समय में अपनी अम्मी महबूबा मुफ्ती की राजनीतिक विरासत सँभालने जा रही हैं। आखिर वंशवाद की राजनीति की उड़ान में वो कहाँ तक पंख फैलाएँगी, उसके लिए उनके व्यक्तित्व और नजरिए पर नजर डालना जरूरी हो जाता है।

बनना चाहती थी अंतरिक्ष यात्री

कश्मीर में लेखक, राजनीतिक विश्लेषक एवं कारोबारी जावेद इकबाल शाह और महबूबा मुफ्ती के घर साल 1987 में छोटी बेटी इल्तिजा पैदा हुई थीं। उनकी बड़ी बहन का नाम इरतिका मुफ्ती है। इल्तिजा की पैदायश होने के एक साल बाद ही उनके पैरेंट्स में अलगाव हो गया। इकबाल शाह कुछ वक्त तक जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्य भी रहे थे।

इल्तिजा का निक नाम सना है। वो दो साल तक कश्मीर में पढ़ीं। उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चली गईं। हालाँकि, बचपन से ही अंतरिक्ष यात्री बनने की चाह रखने वाली इल्तिजा ने युवा होने पर दिल्ली विश्वविद्यालय के वेंकेटश्वेर कॉलेज से राजनीति विज्ञान में ऑनर्स की डिग्री ली।

इसके बाद वो यूके चली गईं, वहाँ इंग्लैंड के वारविक विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मास्टर डिग्री की। अपने निजी जिंदगी के बारे में खुलकर बात न करने वाली इल्तिजा ने लंदन में सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर के तौर पर काम किया। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया-भारत के एक इंस्टीट्यूट में भी काम किया।

कुछ समय के बाद इल्तिजा वापस कश्मीर आ गईं। वो अपने लफ्जों के इस्तेमाल के हुनर का क्रेडिट अपने दादा मुफ्ती मोहम्मद सईद को देती हैं। सईद देश के पहले मुस्लिम गृहमंत्री थे। इसके अलावा, वह जम्मू-कश्मीर के सीएम भी रहे हैं। राजनीति और कश्मीर के अलावा वो लेखक और मनोवैज्ञानिक बनने की चाह रखती हैं।

‘उम्मीद है कि मैं बदलाव ला सकती हूँ’

पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती के मीडिया सलाहकार के पद पर तैनाती के बाद ही इल्तिजा ने खुद को बदलाव की बयार बताया। उन्होंने नियुक्ति के बाद पीटीआई से कहा, “ऐसे समय में जब जम्मू-कश्मीर के लोग खुद को पूरी तरह से अराजकता, निराशा और अंधेरे में फँसा हुआ पाते हैं, उनकी हरसंभव मदद करना मेरे लिए फक्र की बात है। मुझे उम्मीद है कि मैं बदलाव ला सकती हूँ।”

हालाँकि, उन्होंने कहा कि वो अपनी नई पोजिशन को राजनीति में औपचारिक प्रवेश की तरह नहीं देखती हैं। पीडीपी चीफ की नवनियुक्त मीडिया प्रभारी ने कहा, ”मैं इस बात पर सहमत नहीं हूँ कि मैं औपचारिक तौर पर राजनीति में शामिल हो रही हूँ। मेरी भूमिका पूर्व मुख्यमंत्री मीडिया के साथ कैसे डील करें, इस पर उन्हें सलाह देने तक सीमित है।”

उन्होंने कहा, “मीडिया संवाद का प्राथमिक और अहम जरिया बन गया है। मेरा मानना है कि यह एक ऐसी जगह है, जहाँ बहुत कुछ किया जा सकता है। अगर मैं उनकी (मुफ्ती की) आवाज को लोगों तक पहुँचाने में मदद कर सकती हूँ और अपना दो फीसदी भी योगदान दे सकती हूँ, तो क्यों ना दूँ? मेरी भूमिका मीडिया से उनकी (मुफ्ती की) हर तरह से मदद करने की है।”

इल्तिजा इस बात से राजी थीं कि उनकी भूमिका और राजनीतिक हालातों के बीच एक पतली रेखा है। उन्होंने कहा, “मैं संगठन में नहीं जा रही हूँ। वह मेरी भूमिका नहीं है। मैं जानती हूँ कि कश्मीर जैसी जगह में सब कुछ राजनीतिक है।” उन्होंने कहा, “मैं शुतुरमुर्ग की तरह हर चीज की राजनीतिक प्रकृति को नकारने वाली नहीं हूँ। जब मैं औपचारिक राजनीति में कदम रखूँगी तो यह सबके सामने होगा।”

राजनीति का पहला सबक

इल्तिजा का राजनीतिक सफर 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद उनकी माँ महबूबा मुफ्ती के हिरासत में लेने के साथ ही शुरू हो गया था। उस वक्त वह टेलीविजन बहसों में भाग लेकर घाटी में एक मुख्यधारा की आवाज बनकर उभरीं। इल्तिजा ने अपनी माँ की सोशल मीडिया अकाउंट, खासकर एक्स (पहले ट्विटर) की जिम्मेदारी संभाली और इसका नतीजा ये हुआ कि उनका सार्वजनिक प्रोफ़ाइल बढ़ता गया।

महबूबा की रिहाई के 14 महीने बाद मीडिया से बातचीत करते हुए और बैठकों के दौरान इल्तिजा को साथ देखा गया था। तभी ये एक बड़ा संकेत था कि महबूबा की छोटी बेटी पार्टी में अधिक औपचारिक भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। ये जून 2022 में साबित हो गया। उन्होंने ट्विटर (अब एक्स) पर 15 दिन की वीडियो बातचीत ‘आपकी बात इल्तिजा के साथ’ सीरीज शुरू की। इसमें वो जम्मू-कश्मीर के लोगों पर असर डालने मुद्दों और फैसलों पर बात करती थीं।

‘कहा था राजनीति में शामिल नहीं होना चाहती’

इल्तिजा ने पिछले साल सितंबर में कहा था कि वह जम्मू-कश्मीर में मौजूदा “भयभीत माहौल” के तहत राजनीति में शामिल नहीं होना चाहती हैं। हालाँकि, उन्होंने इसे पूरी तरह से खारिज नहीं किया था और कहा था कि भविष्य कोई नहीं जानता।

इल्तिजा मुफ़्ती ने जम्मू में एक सम्मेलन में कहा था, “मौजूदा माहौल में जहाँ राजनेता, पत्रकार और बाद में स्टेनोग्राफर बन गए हैं, मैं ऐसे में राजनीति नहीं करना चाहती। राजनीति जनता के साथ अपना रिश्ता बनाने के बारे में है। आपके जीवन में कुछ परिस्थितियाँ आती हैं, जो आपका मार्गदर्शन करती हैं।”

उन्होंने ये भी कहा था कि दिवंगत पीडीपी संरक्षक मुफ्ती मोहम्मद सईद की पोती होने के नाते उन्होंने अपने जन्म के बाद से राजनीति को करीब से देखा है। उन्होंने कहा था, “अन्य लोगों के लिए यह आकर्षक हो सकता है। मुझे इसके लिए कोई आकर्षण नहीं है।”

मुद्दा बनाने में भी हैं माहिर

इस साल की शुरुआत में इल्तिजा ने अपने पासपोर्ट के नवीनीकरण को लेकर अधिकारियों को निशाने पर लिया था। उनका पासपोर्ट 2 जनवरी 2023 को खत्म हो रहा था। इसके लिए उन्होंने 8 जून 2022 को नए पासपोर्ट के लिए पहले ही दरख्वास्त दी थी।

क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय (आरपीओ) श्रीनगर द्वारा पासपोर्ट जारी नहीं करने पर वो फरवरी में जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट पहुँच गई थीं। आरपीओ ने सीआईडी की बताई गई गुप्त प्रतिकूल सत्यापन रिपोर्ट के बावजूद अप्रैल में उन्हें पासपोर्ट जारी किया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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