धारा-370 हटने और केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद जम्मू-कश्मीर में पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। यह चुनाव इस साल के अंत तक होने की संभावना है और इसको लेकर चुनाव आयोग ने तैयारियाँ भी शुरू कर दी हैं। राज्य में मतदाता सूची को अपडेट करने का काम जारी है।
जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने के बाद सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करने की कोशिश की जा रही है। इसमें ऐसे लोगों के मतदान का अधिकार देना भी शामिल है, जो 1947 में भारत बँटवारे के बाद पाकिस्तान से आकर प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में बसे थे। इसके अलावा वहाँ रहने वाले देश के दूसरे हिस्से के लोगों को भी मतदान का अधिकार देने की बात कही गई है।
राज्य चुनाव आयोग की इस घोषणा के बाद इस्लामी आतंकी संगठनों से लेकर विशेषाधिकार के तहत सत्ता सुख भोग रहे लोग तिलमिला उठे हैं। इसको लेकर तमाम तरह की भ्रामक खबरें भी चल रही हैं, जिनका आयोग ने खंडन किया है। बता दें कि हर काम कोई नियम या प्रक्रिया के तहत किए जाते हैं। मतदाता सूची में नामों को भी प्रक्रिया के तहत शामिल किया जा रहा है।
आयोग के निर्णय के बाद एक तरफ आतंकी नागरिकों को निशाना बनाने की चेतावनी दी है तो दूसरी तरफ पीढ़ियों से सत्ता का सुख भोगते आ रहे लोग ‘मतदाताओं का आयात’ बताकर मनमाफिक बदलाव करने की बात कह रहे हैं। ऐसे बयान देने वालों में फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती शामिल हैं।
क्या कहा था मुख्य चुनाव अधिकारी ने
जम्मू-कश्मीर के मुख्य चुनाव अधिकारी (CEO) हृदेश कुमार सिंह ने 17 अगस्त 2022 को कहा था कि इस बार जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव में राज्य के बाहर के लोग भी वोट डाल सकेंगे। इनमें वैसे लोग शामिल हैं, जो राज्य में कर्मचारी, छात्र, मजदूर या कारोबारी हैं और जम्मू-कश्मीर में सामान्य रूप से रह रहे हैं।
मुख्य चुनाव अधिकारी हृदेश कुमार सिंह ने कहा था, “अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से पहले कई लोग जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में मतदान नहीं कर सकते थे, लेकिन अब वे भी मतदाता बन सकते हैं।” प्रदेश में ऐसा पहली बार होगा, जब गैर-कश्मीरी भी वोट डाल सकेंगे।
हृदेश कुमार सिंह ने था कि जम्मू-कश्मीर में इस बार करीब 25 लाख नए वोटरों के नाम वोटर लिस्ट में शामिल होने के उम्मीद है। 15 सितंबर से वोटर लिस्ट में नाम शामिल करने की प्रक्रिया शुरू होगी, जो 25 अक्टूबर तक चलेगी।
हालाँकि, कुछ रिपोर्ट्स और सोशल मीडिया पर बताया कि जम्मू-कश्मीर की मतदाता सूची में 25 लाख अतिरिक्त मतदाता जोड़े जाएँगे। इसका राज्य की प्रशासन की ओर से खंडन किया है। इसके साथ प्रवासियों कश्मीरियों के नाम को सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया में किसी तरह के बदलाव को भी खारिज किया है।
राज्य के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग (DIPR) ने बताया कि ये 25 लाख जिन मतदाताओं की बात हो रही है वे राज्य के वर्तमान निवासी हैं। ये ऐसे मतदाता हैं, जिन्होंने 1 अक्टूबर 2022 या इससे पहले 18 साल की उम्र पूरी कर ली है। जम्मू-कश्मीर में आखिरी मतदाता सूची में संशोधन तीन साल पहले 1 जनवरी 2019 को किया गया था। इन तीन सालों में राज्य में मतदाताओं की संख्या बढ़ी है। विभाग का कहना है कि भ्रामक खबरें कुछ निहित स्वार्थ के लिए फैलाए जा रहे हैं।
DIPR ने आगे कहा, “कश्मीरी प्रवासियों के लिए उनके मूल मूल निर्वाचन क्षेत्रों की मतदाता सूची में नामांकन के लिए विशेष प्रावधानों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। जम्मू-कश्मीर सरकार में संपत्ति और नौकरियों की खरीद के संबंध में नियमों में भी कोई बदलाव नहीं है और मतदाताओं के प्रतिनिधित्व से इसका कोई लेना-देना नहीं है।”
DIPR J&K: There’s no change in special provisions for Kashmiri migrants for their enrolment in electoral rolls of their original native constituencies. There’s no change in rules regarding buying of property& jobs in the J&K govt & no link to representation of voters or otherwise pic.twitter.com/cyg2RU26ts
— ANI (@ANI) August 20, 2022
कश्मीर में क्यों कर सकेेंगे बाहरी लोग भी मतदान
जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद के जम्मू-कश्मीर की विशेष दर्जा खत्म हो गई। इस तरह भारत के जो कानून पहले जम्मू-कश्मीर छोड़कर अन्य राज्यों में लागू होते थे, वे भी अब जम्मू-कश्मीर में लागू होते हैं।
इस तरह जम्मू-कश्मीर में भी पीपल एक्ट 1950 और 1951 लागू हो गया है। यह ऐक्ट जम्मू-कश्मीर में रहने वाले देश के अन्य के अन्य हिस्सों के लोगों को केंद्र शासित प्रदेश की मतदाता सूची में शामिल होने की अनुमति देता है। अगर कोई व्यक्ति जम्मू-कश्मीर की मतदाता सूची में अपना नाम शामिल कराना चाहता है और पहले से किसी दूसरे राज्य के निर्वाचन क्षेत्र में पंजीकृत है तो उसे वहाँ से अपना नाम हटाना होगा।
मतदाता सूची में नाम शामिल करने की प्रक्रिया
जम्मू-कश्मीर में मतदाता सूची को लेकर जिस तरह भ्रामक खबरें फैलाई जा रही हैं, उससे लगता है कि भारत के किसी हिस्से का कोई भी व्यक्ति वहाँ जाएगा और वोट देकर चला आएगा, जबकि ऐसा नहीं है। किसी राज्य में कोई भी व्यक्ति तभी मतदान कर सकता है, जब वहाँ के मतदाता सूची में नाम हो। ये नाम भी एक प्रक्रिया के तहत शामिल किए जाते हैं।
भारत का कोई भी व्यक्ति सिर्फ एक ही राज्य में मतदान कर सकता है। अगर दिल्ली का कोई व्यक्ति उत्तर प्रदेश में रहता है और उसका नाम उत्तर प्रदेश की मतदाता सूची में है तो वह दिल्ली में मतदान नहीं कर सकता। यदि वह अपने गृह राज्य दिल्ली में मतदान करना चाहता है तो उसे अपना नाम उत्तर प्रदेश की मतदाता सूची से हटना होगा।
यहाँ बताना आवश्यक है कि किसी भी व्यक्ति के नाम को मतदाता सूची में शामिल करने से पहले चुनाव आयोग के अधिकारी आवेदक के सभी दस्तावेजों की जाँच करते हैं। अब नए नियम में आधार नंबर से यह पहचान हो जाएगी कि कहीं वह अन्य राज्य का मतदाता तो नहीं है।
चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक, एक ही व्यक्ति के दो अग-अलग राज्यों की मतदाता सूची में भी नाम नहीं हो सकता। हालाँकि, देश में ऐसे हजारों-लाखों लोग हैं, जिनके पास दो राज्यों के वोटर आईडी हैं, लेकिन वे अवैध हैं। इसी खामी को दूर करने के लिए चुनाव आयोग ने वोटर आईडी को आधार से जोड़ने का काम शुरू किया है, ताकि जिनके पास दोहरे वोटर कार्ड हैं उनकी पहचान की जा सके।
सूची में नाम शामिल कराने के लिए क्या करना होगा
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में मतदान करने के लिए वहाँ की मतदाता सूची में नाम होना आवश्यक है। मतदाता सूची में नाम शामिल कराने के लिए कुछ प्रक्रिया हैं, जिनका पालन करना आवश्यक होता है। अगर कोई व्यक्ति वहाँ या किसी राज्य की मतदाता सूची में अपना नाम शामिल कराना चाहता है तो उसे फॉर्म 6 (Form 6) भरना होगा।
इसके अलावा, अगर कोई मतदाता सूची से अपना नाम हटाना चाहता है तो उसे फॉर्म 7 (Form 7) भरना होगा। अगर किसी व्यक्ति के विवरण (नाम या पता में सुधार) में किसी तरह का सुधार कराना है तो उसे फॉर्म 8 (Form 8) भरना होगा। इसके साथ ही फॉर्म 6B भरना अनिवार्य है। इस फॉर्म के जरिए आधार को वोटर आईडी से लिंक किया जाएगा।
पाकिस्तान से आए विस्थापितों का नाम होगा शामिल
इस चुनाव की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें उन लोगों को भी मतदान का मौका मिल सकता है, जो 1947 में देश का बँटवारा होने के बाद पाकिस्तान के सियालकोट से विस्थापित होकर आए थे। पिछले 75 सालों में उन्हें स्थानीय चुनावों से दूर रखा गया। वे लोकसभा चुनावों में मतदान तो कर सकते हैं, लेकिन विधानसभा और पंचायत चुनावों में नहीं।
उम्मीद है कि इस बार हो रही मतदाता सूची संशोधन में उनके नाम को शामिल किया जाएगा। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, लगभग 5,400 परिवार पाकिस्तान से जम्मू के सीमावर्ती इलाकों में आकर बसे थे। इनमें अधिकांश हिंदू और सिख हैं।
ये सभी लोग जम्मू संभाग के कठुआ, सांबा और जम्मू जिलों में रहते हैं। समुदाय के नेताओं का कहना है कि ये परिवार बढ़़कर अब 22,000 से अधिक हो गए हैं। इनमें कुल 4 लाख लोग शामिल हैं। वहीं, माना जा रहा है कि इन परिवारों के 1.5 लाख से अधिक वयस्कों को मतदाता सूची में शामिल किया जाएगा।
पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी एक्शन समिति के अध्यक्ष लाभा राम गाँधी का कहना है कि मतदाता सूची में विस्थापितों के नामों को शामिल करने से कश्मीर की पार्टियों को दिक्कत है। यह प्रदेश के चुनावी परिदृश्य को बदल देगा, इसलिए वे ऐसा नहीं चाहते।
उन्होंने कहा, सरकार को यह स्वीकार करने में लगभग 75 साल लग गए कि विस्थापितों भी जम्मू-कश्मीर का हिस्सा हैं। हमें कभी भी जम्मू-कश्मीर का हिस्सा नहीं माना गया। अब जब हमें जम्मू-कश्मीर में वोटिंग का अधिकार मिलने जा रहा है तो कश्मीरी नेता इसे मुद्दा बना रहे हैं। फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या हम ‘बाहरी’ हैं।”
गैर-स्थानीय को मतदाता बनाने पर फारूक-महबूबा बेचैन
गैर-स्थानीय लोगों को मतदान का अधिकार देने पर जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रीय दलों ने आपत्ति जताई है। नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) ने इस पर चर्चा के लिए 22 अगस्त को सर्वदलीय बैठक भी बुलाई है।
वहीं, पीडीपी (PDP) प्रमुख महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) ने कहा कि जम्मू-कश्मीर भाजपा के लिए राजनीतिक लेबोरेटरी बन गया है। उन्होंने कहा कि गैर-स्थानीय लोगों का नाम मतदाता सूची में जोड़ना जम्मू-कश्मीर में चुनावी लोकतंत्र के ताबूत में आखिरी कील होगा।
महबूबा ने कहा कि भ्रामकों खबरें फैलाते हुए कहा कि भाजपा राज्य में बाहर से 25 लाख अपने मतदाता ला रही है। उन्होंने कहा कि बाहरी लोगों को मतदान का अधिकार देकर जम्मू-कश्मीर के स्थानीय लोगों को शक्तिहीन बनाने की साजिश रची जा रही है।
आतंकियों ने भी नागरिकों को निशाना बनाने की दी चेतावनी
शरणार्थियों को विधानसभा चुनाव में भी हिस्सा लेने देने और राज्य में रहने वाले देश के अन्य क्षेत्रों के लोगों को भी मतदाता सूची में शामिल करने के फैसले से सिर्फ फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे राजनीतिक लोग ही नहीं व्याकुल हैं। राज्य में शरण पा रहे और अपनी गतिविधयाँ चला रहे इस्लामी आतंकी भी बेचैन हैं।
पाकिस्तान से संचालित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) समर्थित आतंकी ग्रुप कश्मीर फाइटर ने गैर-कश्मीरियों पर हमले करने की धमकी दी है। आतंकी वेबसाइट दी गई धमकी में उसने कहा, “सभी गैर-कश्मीरियों को वोट देने के अधिकार के बाद यह सामने आ गया है कि दिल्ली में गंदा खेल खेला जा रहा है। ऐसे में यह आवश्यक हो गया है कि हम अपने हमलों को तेज करें और अपने लक्ष्यों को प्राथमिकता दें।”